top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

विनम्रता ना हो, तो ज्ञान का नाश हो जाता है…

Nov 26, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

ईर्ष्या, द्वेष और अहंकार तीन ऐसे नकारात्मक भाव है, जो आपसे आपकी सारी विशेषताएं, सारी उपलब्धियां और सारा सम्मान छीन सकते हैं। जी हाँ दोस्तों, अगर सहमत ना हों तो जरा आज की कहानी पर गौर फ़रमाएँ। बात कई सौ साल पुरानी है एक गाँव में चंद्रभूषण और नांबियार नाम के दो विद्वान कथाकार रहा करते थे। चंद्रभूषण की वाणी में ग़ज़ब का आकर्षण था और वे भागवत सुनाने में निपुण भी थे। इसलिए वे जहाँ भी जाते थे लोग उनकी वाणी से कथा का सार सुनकर मन्त्र मुग्ध हो जाते थे। इसलिए दूर-दूर से लोग उनके यहाँ कथा सुनने आते थे और उनके यहाँ कथा सुनने वालों की भीड़ लगी रहती थी।


दूसरे कथावाचक नांबियार जी काफ़ी पढ़े लिखे थे और इस बात का उनको बड़ा घमंड भी था। इसलिए वे ख़ुद को गाँव का सबसे बड़ा विद्वान माना करते थे। घमंड और ख़ुद को सबसे बेहतर मानने के कारण वे अक्सर सोचा करते थे कि ‘कहाँ यह अटक-अटक कर कथा पढ़ने वाला कल का छोकरा चंद्रभूषण और कहाँ मैं शास्त्रों का मर्म जानने वाला। ये क्या बराबरी करेगा मेरी।’ लेकिन उनकी यह धारणा अक्सर उस वक्त ध्वस्त हो जाया करती थी, जब वे चंद्रभूषण के घर पर कथा सुनने वालों की अधिक भीड़ देखा करते थे। यही भीड़ अक्सर उनके मन को ईर्ष्या से भर देती थी और वे मन ही मन सोचने लगते थे कि चंद्रभूषण ऐसा कौन सा जादू करता है जो इसके यहाँ दिनोंदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही है।


बीतते समय के साथ उन्हें महसूस होने लगा था कि अगर इसी गति से चंद्रभूषण की कथा में भीड़ बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं है, जब गाँव वालों की नजरों में मेरी नाक नीची हो जाएगी। अब वक्त आ गया है जब मुझे कुछ कठोर करना चाहिए। एक दिन नांबियार जी थक-हार कर, भूख से बेहाल, अपने घर पहुँचे तो पत्नी को वहाँ ना पा थोड़ा बेचैन हो गए। कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उनका मन इस आशंका से भर गया कि कहीं मेरी पत्नी भी तो चंद्रभूषण के यहाँ कथा सुनने तो नहीं गई है? विचार आते ही नांबियार ईर्ष्या और क्रोध से भर गए और उसी पल चन्द्रभूषण के कथा स्थल की ओर चल दिए।


चंद्रभूषण के कथा स्थल पर पहुँच कर वे यह देख ठिठक गए कि वहाँ अपार भीड़ है और सभी लोग मंत्रमुग्ध हो कथा सुन रहे हैं। तभी उनकी नजर श्रोताओं की भीड़ के बीच बैठी अपनी पत्नी पर गई। बस फिर क्या था, वे क्रोध से भड़क उठे और लगभग चिल्लाते हुए बोले, ‘चंद्रभूषण, तुम दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख हो और तुमसे बड़े मूर्ख ये सारे लोग हैं, जो यहां इकट्ठा होकर तुम्हारी बकवास सुन रहे हैं।’ ज्ञानी कथावाचक नांबियार की कहीं बात ने चंद्रभूषण को आश्चर्य में डाल दिया। वे एकदम चुप हो गए और उस दिन कथा बीच में ही छूट गई। सारे श्रोता नांबियार को भला-बुरा कहते हुए वहाँ से चले गए।


नांबियार भी अपनी पत्नी को लेकर घर लौट आए और उस पर अपना गुस्सा निकालते हुए बोले, ‘क्या जरूरत थी तुम्हें वहाँ जाने की? क्या चंद्रभूषण मुझसे बड़ा विद्वान है? मैं उससे कई गुना ज्यादा ज्ञानी हूँ। मेरे पास शास्त्रों का भंडार है, मगर तुम्हें कौन समझा सकता है? मुझे तो लगता है तुम्हारी खोपड़ी में भूसा भरा हुआ है।’ नांबियार के व्यवहार से दुखी पत्नी बोली, ‘क्यों अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते हो? अगर वाक़ई इतने ज्ञानी और योग्य हो, तो चंद्रभूषण की तरह अपनी कथा में भी इतनी भीड़ इकट्ठी करके बताओ। मैं तुम्हारे ज्ञान का लोहा मान लूंगी। अभी तक तो तुम सिर्फ़ मुझे जली-कटी, चुभने वाली बातें सुनाया करते थे। लेकिन अब तो हद हो गई, अब तुम दूसरों को अपमानित करने पर उतर आए हो। मुझे तो लगता है तुम्हारे पास ईर्ष्या करने के अलावा कोई और काम नहीं है।’


उस रात नांबियार और उसकी पत्नी, दोनों ने ही भोजन नहीं किया और बिना एक-दूसरे से कुछ बोले वे सोने चले गए। उस रात नांबियार को एक पल के लिए भी नींद नहीं आई। शाम की सारी घटना उनकी आँखों के सामने घूम रही थी। वे रह-रहकर यह सोच रहे थे कि मैंने चंद्रभूषण का अपमान क्यों किया? जितना ज़्यादा वे इस विषय में सोच रहे थे, उतनी ही उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी और वे ग्लानि के भाव से भरते जा रहे थे। इसी वजह से कुछ घंटों की सोच ने नांबियार के गुस्से को पश्चाताप में बदल दिया। अब वे सोच रहे थे कि 'मेरे मन में भगवान की भक्ति के नाम पर इतना द्वेष और चंद्रभूषण के स्वभाव में इतनी विनम्रता। इतना अपमान सहने के बाद भी वह एक शब्द न बोला।’


सुबह की पहली किरण के साथ जैसे ही नांबियार ने चंद्रभूषण के घर जाने के लिए घर का दरवाजा खोला, वे यह देख हैरान रह गए कि उनके घर के बाहर एक व्यक्ति ठंड में काँपते हुए, सर तक कंबल ओढ़े बैठा हुआ है। जैसे ही नांबियार ने पहला कदम बढ़ाया, वह व्यक्ति उनके पैर छूने के लिए झुक गया। नांबियार ने जैसे ही उसे उठाया तो वे यह देख हैरान रह गए कि वह इंसान और कोई नहीं चंद्रभूषण था। नांबियार कुछ बोलते उसके पहले ही चंद्रभूषण बोला, ‘अच्छा हुआ आपने मुझे मेरा दोष बता दिया। मैं रात भर से आपके घर से बाहर आने का इंतज़ार कर रहा था जिससे मैं आपसे क्षमा माँग सकूँ।’ नांबियार तो पहले से ही लज्जित थे। उन्होंने लपककर चंद्रभूषण को अपने गले से लगाया और बोले, ‘भाई, दोष मेरा है तुम्हारा नहीं। मैं घमंड में अंधा हो गया था। तुमने अपनी विनम्रता से मेरा घमंड चूर चूर कर दिया। सच कहता हूँ, तुमने मेरी आंखें खोल दी।’


कहने की जरूरत नहीं है दोस्तों कि इस पल दोनों की आँखों में आँसू होंगे क्योंकि दोनों विनम्रता से भरे हुए थे और जहाँ विनम्रता होती है, वहाँ ईर्ष्या, द्वेष, घमंड आदि का अपने आप नाश हो जाता है। इसीलिए हमारे यहाँ कहा जाता है कि ‘विनम्रता ना हो, तो ज्ञान का नाश हो जाता है।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

2 views0 comments

Comments


bottom of page