Jan 28, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, बिल्डिंग जितनी बड़ी हो उसे बनाने में समय भी उतना ही ज़्यादा लगता है। ठीक इसी तरह, बड़ी सफलता पाने के लिए भी बड़े धैर्य के साथ लगातार प्रयास करना पड़ता है, फिर भले ही रास्ते में आपको कितनी ही विषमताओं या असफलताओं का सामना करना पड़े। जी हाँ दोस्तों, सफलता के लिए कार्य करते वक़्त बीच में मिली असफलताएँ असल में ईश्वर द्वारा हमें कुछ नया सिखाने का ज़रिया होती हैं। लेकिन अक्सर लोग असफलताओं से सीख कर जीवन में आगे बढ़ने के स्थान पर उसे पकड़ कर बैठ जाते हैं और कभी क़िस्मत को; तो कभी परिस्थितियों को; तो कभी किसी और को दोष देना शुरू कर देते हैं और जीवन के एक पड़ाव को ही अपनी नियति याने डेस्टिनी बना लेते हैं। यह स्थिति दोस्तों, अक्सर तब निर्मित होती है जब आप अपना ध्यान क्या है के स्थान पर; क्या नहीं है पर लगाना शुरू कर देते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-
शहर में रहने वाले राजू को व्यापार में बड़ा नुक़सान हुआ और जीवन भर की मेहनत से खड़ा किया गया व्यवसाय पूरी तरह डूब गया। हालाँकि राजू ने अपनी ओर से व्यवसाय को बचाने का हर संभव प्रयास किया था, लेकिन आशातीत परिणाम ना मिलने के कारण अब वह थक-हार कर बैठ गया था। एक दिन राजू बड़े ही नकारात्मक भावों के साथ मंदिर गया और ईश्वर को देखते हुए मन ही मन बोला, ‘हे प्रभु, अपनी ओर से तो प्रयास कर-कर के मैं हार चुका हूँ। मुझे समझ ही नहीं आ रहा है कि मैं अब क्या करूँ। बार-बार मिली इस असफलता ने मेरा सब कुछ लूट लिया है। अब आप ही कोई एक वजह बताइए, जिसे देख मैं जीवित रहूं। कृपया मेरी मदद कीजिए।’
इतना कह कर राजू आँखें बंद कर भगवान के सामने बैठ गया। तभी अचानक राजू के कानों में एक आवाज़ गूंजी, ‘वत्स, इतना क्यों घबरा रहे हो। समय के साथ सब-कुछ ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हें अपने जीवन की एक घटना सुनाता हूँ। मैंने एक बगीचे में घास और बांस दोनों के बीज लगाये और दोनों की ही अच्छे से देखभाल करना शुरू कर दिया। दोनों को धूप दी, दोनों को पानी दिया, दोनों को खाद दी, दोनों को बचा कर रखने का हर संभव प्रयास किया। जल्द ही मुझे इसका परिणाम घास पर दिखने लगा और वह जल्दी-जल्दी बड़ी होने लगी, लेकिन बांस का बीज तो आज भी ज़मीन के अंदर ही पड़ा था अर्थात् वह अभी तक उगा नहीं था। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी और पूर्व की ही तरह उसका ध्यान रखता रहा। दूसरे साल घास और घनी हो गई लेकिन बांस का बीज नहीं उगा, पर मैंने तब भी हिम्मत नहीं हारी।
ऐसे ही तीसरा और चौथा साल भी गुजर गया और मेरे तमाम प्रयासों के बाद बांस का बीज अंकुरित नहीं हुआ। पर मैं ना तो नाराज़ हुआ और ना ही मैंने हिम्मत हारी। इसका परिणाम यह हुआ कि पाँचवें साल बांस के बीज में से एक छोटा सा पौधा अंकुरित होता हुआ दिखा, जो घास की तुलना में बहुत छोटा और कमजोर था। लेकिन अगले ६ माह होते-होते इस घास से भी छोटे पौधे ने १०० फीट की ऊँचाई पकड़ ली। अगर तुम गंभीरता पूर्वक इस पर विचार करोगे या इसे वैज्ञानिक आधार पर परखोगे तो पाओगे कि बांस के पेड़ ने इतने ऊँचे बांस को सँभालने के लिए पहले पाँच सालों में सिर्फ़ अपनी जड़ों को विकसित किया था।’
ठीक ऐसा ही कुछ दोस्तों, हमारे जीवन में भी घटता है। अर्थात् जब ईश्वर हमें बड़ी सफलताएँ देना चाहता है तब वह हमारी जड़ों को मज़बूत बनाने के लिए हमारा सामना बड़े-बड़े संघर्षों से करवाता है। इसलिए साथियों जीवन में कभी भी संघर्षों का सामना करना पड़े तो यही समझना कि ईश्वर आपकी जड़ों को मज़बूत बना रहा है, ताकि आप अपने भविष्य को सुखद और सफल बना सको।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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