top of page
  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

विवेक और संयम है ज़रूरी…

June 16, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम, टेक्नोलॉजी का उपयोग या फिर दिखावटी वर्चूअल दुनिया के प्रति आकर्षण, ज़्यादातर माता-पिता, पालकों और शिक्षकों के लिए परेशानी का एक विषय बनता जा रहा है। एक ओर जहाँ हमें विशेषज्ञ आभासी दुनिया के फ़ायदे गिना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमें अपनी निजता छिनने या बच्चों के इसमें खो जाने का डर भी साफ़ नज़र आ रहा है। ठीक इसी तरह की अनिश्चितता हमें समय के साथ बच्चों की बदलती पसंद-नापसंद में भी नज़र आ रही है। जहाँ बच्चे गेमिंग, यूट्यूबर, सोशल मीडिया इंफलुएंसर आदि जैसे नए कैरियर को लाभप्रद बताकर अपना अधिकतम समय इन चीजों के लिए लगा रहे हैं, वहीं हमें इसमें जोखिम ही जोखिम नज़र आ रहा है।


असल में दोस्तों, इस बदलते वक्त में हमें हर क्षेत्र में अति ज़्यादा नज़र आ रही है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मध्यप्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर के पास स्थित एक क़स्बे धामनोद के एक विद्यालय में ट्रेनिंग के दौरान ऐसा ही एक वाक़या मेरे सामने आया। ब्रेक के दौरान एक शिक्षक मेरे पास आए और बोले, ‘आज आपकी ट्रेनिंग के दौरान एहसास हुआ कि समय के साथ बदलती इस दुनिया में सही और ग़लत के पैमाने भी बदल रहे हैं। पहले हम जिन बातों को ग़लत मानते थे, आज वे बातें लोगों के लिए सामान्य हो गई है और जो बातें हमें सामान्य लगती थी, उनमें से कई बातों को आज ग़लत माना जाने लगा है।’


हालाँकि उन शिक्षक की कही हुई हर बात शब्दशः सही थी लेकिन फिर भी उक्त बात कहने की वजह या उसमें छुपा प्रश्न मुझे स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ रहा था। इसलिए मैंने उनसे पूरी बात स्पष्ट तौर पर बताने का निवेदन किया तो वे बोले, ‘सर, मेरा बच्चा इस वक्त कक्षा 10वीं पास कर 11वीं में आया है। वो पूरा दिन लैपटॉप या मोबाइल पर इंटरनेट चलाते हुए बिताता है। जब भी इस विषय में उसको टोको तो कहता है, ‘पापा, आपको पता नहीं है, आने वाला समय इसी का है। आप फ़ालतू में मुझे टोका मत करो।’ और यह सिर्फ़ मेरे घर की कहानी नहीं है। विद्यालय में मिलने वाले ज़्यादातर माता-पिता इसी बात से चिंतित हैं।’


दोस्तों, उन शिक्षक की चिंता जायज़ थी और हममें से ज़्यादातर लोग ऐसा ही कुछ ना कुछ अपने आस-पास महसूस कर रहे हैं। असल में दोस्तों, ना तो तकनीकी और ना ही इंटरनेट ग़लत है। असल में समस्या है तो उसके उपयोग करने की आदत में। जैसे, एक ओर जहाँ बच्चों में आभासी दुनिया का क्रेज़ नज़र आता है, तो युवाओं में नशे, अभद्र भाषा को भी बढ़ते हुए साफ़-साफ़ देखा जा सकता है। अगर आप गहराई से अपने आस-पास देखेंगे तो पाएँगे कि हर चीज़ की अति आजकल सामान्य होती जा रही है, जो निश्चित तौर पर एक बड़ी समस्या है। ज़हर अगर थोड़ी मात्रा में किसी विशेष उद्देश्य के लिए दिया जाए तो वो दवा का काम करता है और अगर किसी दवा को ज़्यादा मात्रा में दे दिया जाए तो वो ज़हर का काम करती है। शायद यही बात हम आज की युवा पीढ़ी को समझा नहीं पा रहे हैं।


मेरी नज़र में तो अन्य कारणों के साथ-साथ इसका दोष हमारी आज की भटकी हुई शिक्षा प्रणाली और लालन-पालन के तरीके को भी जाता है क्योंकि कहीं ना कहीं हम अपने बच्चों को सिखा नहीं पा रहे हैं कि विवेक और संयम से अगर जहां में उपलब्ध चीजों का भोग किया जाए तो कहीं समस्या नहीं है। सही है ना दोस्तों! एक बार विचार कर देखिएगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

8 views0 comments
bottom of page