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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

विश्वगुरू और विकसित राष्ट्र के लिये मजबूत राष्ट्रीय चरित्र का होना आवश्यक है…

August 15, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को 77वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। वैसे तो दोस्तों पिछले ७६ वर्षों में हमने लगभग हर क्षेत्र में ज़बरदस्त प्रगति की है, जिसके कारण हमारा देश एक बार फिर विश्वगुरू बनने की ओर अग्रसर है, जो निश्चित तौर पर हम सभी भारतीयों के लिये बड़े गर्व की बात है। लेकिन अगर आप सिक्के का दूसरा पहलू देखेंगे तो पायेंगे कि विश्वगुरू बनने के लिये हमें अभी कुछ आंतरिक समस्याओं से भी निपटना है। जैसे अशिक्षा, ग़रीबी, भ्रष्टाचार, जातिवाद, गिरते जीवन मूल्य, सत्ता या ताक़त का दुरूपयोग, ख़ुद के हित को देश हित से बड़ा मानना, ग़लत मूल्यों के आधार पर व्यवसायीकरण होना, नियमों की अवहेलना, जैसे सिग्नल तोड़ना, आदि। यह सूची बहुत लंबी है साथियों जो कहीं ना कहीं हमारी राष्ट्रीय छवि और आगे बढ़ने की गति को प्रभावित करती है। इसलिये मैं हमेशा कहता हूँ बिना आंतरिक सुधार के विश्वगुरु बनना असंभव है। अपनी बात को मैं हमारे पड़ोसी देश चीन की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूं।


बात कई सौ साल पुरानी है, चीनी शासक और वहाँ के निवासियों ने मिलकर फ़ैसला लिया कि अब हमें अनावश्यक युद्ध या किसी भी तरह की घुसपैठ से बचकर शांति के साथ रहना चाहिए। अपने इस निर्णय को अमल में लाने के लिये सभी ने मिलकर एक बहुत ऊँची और लंबी दीवार बनाई, जिसे आज हम चीन की महान दीवार (द ग्रेट चायना वॉल) के नाम से जानते हैं। इस दीवार को बनाने का मुख्य उद्देश्य देश की सीमाओं को सुरक्षित बनाना था। वे मानते थे कि दीवार की ऊँचाई के कारण इस पर चढ़ना, इसे पार करना नामुमकिन रहेगा और शायद वे सही थे।


लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दीवार के अस्तित्व में आने के सौ वर्षों के दौरान तीन बार चीन पर आक्रमण हुआ और तीनों बार दुश्मन की पैदल सेना चीन के अंदर घुसने में सफल हो गई। अब आप सोच रहे होंगे कि अगर दीवार पर चढ़ना असंभव था तो दुश्मन सैनिंक अंदर कैसे आ गए? असल में साथियों उन सैनिकों को दीवार पर चढ़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि हर बार वे दीवार में बने दरवाज़ों की रक्षा करने वाले सैनिंकों को रिश्वत देकर अंदर आ गये।


अब अगर आप उपरोक्त घटनाक्रम को बारीकी से देखेंगे तो पायेंगे कि सैनिकों की योजना में कोई कमी नहीं थी, उन्होंने अपनी योजना पर बहुत अच्छे से कार्य किया तथा योजनाबद्ध तरीक़े से दीवार का निर्माण किया। परंतु वे अपने सैनिकों के चरित्र निर्माण में असफ़ल रह गये, जो उनकी हार का मुख्य कारण बन गया। हाँ,यह सही है कि आज, वर्षों बाद भी, चीन की दीवार, चीन की एक स्थायी ताक़त और भावना का शक्तिशाली प्रतीक बन गई है, जिस पर चीन का हर नागरिक गर्व करता है। लेकिन अगर आप इसके दूसरे पहलू पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि वास्तव में यह चीनियों को याद दिलाता है कि मानव चरित्र क्यों श्रेष्ठ होना चाहिये।


दूसरे शब्दों में कहा जाये तो तीन असफलताओं के बाद मिली सीख से चीनियों को एहसास हुआ कि दुश्मन के खिलाफ सबसे अच्छा बचाव दीवार बनाना याने लड़ने या बचने के संसाधन इकट्ठा करना नहीं अपितु अच्छे और सच्चे चरित्र का होना है। इस आधार पर साथियों मानव चरित्र का निर्माण होना बाक़ी सब बातों के मुक़ाबले सबसे महत्वपूर्ण है। इसीलिये तो शायद विलियम शेक्सपियर ने कहा है कि, ‘दोष हमारे सितारों में नहीं, बल्कि हममें है।’


इसलिये दोस्तों, बिना चरित्र को अच्छा बनाये शांति के साथ बड़ी सफलता प्राप्त करना असंभव है। इसलिये मेरा मानना है, बिना राष्ट्रीय चरित्र को अच्छा और मूल्य आधारित बनाये बिना विश्वगुरु और विकसित राष्ट्र की कल्पना करना एक कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं होगा। आइये साथियों इस ७७ वें स्वतंत्रता दिवस पर हम सब मिलकर एक प्रण लेते हैं कि आज नहीं अभी से ही नियमों का सम्मान करते हुए मूल्य आधारित जीवन जियेंगे। एक बार फिर आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!!

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