June 08, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, शाम के समय सर्दी के मौसम में गरजते बादलों को देख एक मैना, जो अपने घोंसले की ओर जा रही थी, ने रास्ते में एक नीम के पेड़ पर रुक कर रात गुज़ारने का निर्णय लिया। नीम के इस पेड़ पर बहुत सारे कौवे बैठ हुए थे और आपस में झगड़ते हुए कांव-कांव कर रहे थे। एक अप्रत्याशित मेहमान को अपने पेड़ पर देख सभी कौवे एक मिनिट के लिये चौंके और फिर सब एक साथ मैना के पास पहुँच गये और उससे कहने लगे कि वो इसी पल इस पेड़ को छोड़कर चली जाए। मैना ने कौओं से विनती करते हुए कहा, ‘भैया, आज मौसम बहुत ख़राब है। किसी भी पल तेज बारिश हो सकती है। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप मुझे पेड़ की इस शाख़ पर रात गुज़ारने दो। सुबह होते ही मैं यहाँ से चली जाऊँगी।’
कौवों ने कांव-कांव करते हुए कहा, ‘नहीं! यह पेड़ हमारा है। तू भाग यहाँ से।’ मैना बोली, ‘कौवे भैया, पेड़ तो ईश्वर या इस प्रकृति की देन हैं। इस सर्द और बारिश की संभावना वाली रात में हमें ईश्वर या प्रकृति ही बचा सकती है। मैं तो तुम सभी से बहुत छोटी हूँ; तुम्हारी छोटी बहन समान हूँ। मुझ पर दया करो और मुझे आज रात यहीं गुज़ार लेने दो।’ सभी कौवे लगभग एक साथ बोले, ‘बिलकुल नहीं! हमें नहीं चाहिए तेरी जैसी बहन। तू हमेशा ईश्वर का नाम लेती है ना? अब उसी से बोल वही बचाएगा तुझे।’ मैना कुछ कहने का विचार कर ही रही थी कि एक कौवा ज़ोर से चिल्लाया और बोला, ‘अगर तू इसी वक़्त यहाँ से नहीं गई तो हम सब मिलकर तुझे मारेंगे।’ कौवों को सद्बुद्धि देने की प्रार्थना करते हुए मैना वहाँ से उड़ गई और थोड़ी दूर जाकर आम के एक पेड़ पर बैठ गई।
उस रात पहले काफ़ी तेज आंधी आई और बारिश के साथ काफ़ी बड़े-बड़े ओले भी बरसने लगे। नीम के पेड़ पर बैठे कौवे बारिश और ओलों से बचने के लिए कांव-कांव करते हुए इधर-उधर उड़ने लगे, लेकिन जल्द ही ओलों की मार से घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। उस रात मौसम की मार की चपेट में आने के कारण बहुत सारे कौवे मारे गये। मैना आम के पेड़ की जिस डाल पर बैठी थी, वह डाल एक बड़े मकान के छज्जे के नीचे थी, जिसके कारण उस मैना को एक भी ओले की मार नहीं लगी और उसने ईश्वर को याद करते हुए उस भयावह रात को आराम से गुज़ार लिया।
सवेरा होते ही चमकीली धूप निकलने पर मैना ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और पंख फैलाकर, चहकते हुए वहाँ से उड़ गई। उड़ते हुए उसने देखा कि धरती पर बहुत सारे कौए घायल पड़े हैं। उन्हें इस हाल में देख मैना बहुत दुखी हुई और उनकी मदद करने की इच्छा से नीचे उतरी। तभी एक घायल कौए ने मैना से पूछा, ‘मैना बहना तुम रात भर कहाँ रही और तुमको ओलों की मार से किसने बचाया?’ मैना उस कौए को पीने के लिए पानी और चुगने के लिए दान देते हुए बोली, ‘भैया, मैं पास ही के एक आम के पेड़ पर बैठ कर अपने प्रभु को याद कर रही थी, उन्होंने ही मेरी रक्षा करी है।’
दोस्तों, कौओं ने जीवन की इस सच्चाई कि कोई भी पल हमारा इस जहां में अंतिम पल हो सकता है, को नकारते हुए मैना के सामने ‘मैं’ और ‘मेरा’ का दंभ भरते हुए कहा था कि ‘यह पेड़ हम कौओं का है।’ आज वे ही कौए ज़मीन पर पड़े उसकी मदद के मोहताज थे। यक़ीन मानियेगा दोस्तों इस जहां में हमारा होना या ना होना ईश्वरीय योजना पर निर्भर करता है। वो जैसा चाहता है यहाँ सब कुछ वैसा ही घटता है। इसलिए दंभ में जीने के स्थान पर ईश्वर की प्रार्थना करते हुए; हमें सुरक्षित और अच्छा रखने के लिए धन्यवाद देते हुए जीना ही जीने का सही तरीक़ा है।
इसीलिए कहा गया है, ‘दुःख में पड़े असहाय जीव को ईश्वर ही बचा सकता है। जो भी ईश्वर पर विश्वास करता है और ईश्वर को याद करता है, उसकी ईश्वर सभी आपत्ति-विपत्ति में सहायता करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। बस ईश्वर का बचाने या मदद करने के कृत्य अनोखे होते हैं और कई बार हम उन्हें पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं। लेकिन विश्वास रखियेगा उनकी मदद और आशीर्वाद में कभी कोई कमी नहीं होती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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