Aug 6, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हमारी सामाजिक व्यवस्था में परिवार में बँटवारा होना एक प्रकार से एक रस्म ही है। जी हाँ आपको मेरी बात सुनने में थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन अगर आप गंभीरता पूर्वक इसपर सोचेंगे तो शायद सहमत ही नज़र आएँगे। कुछ वर्ष पूर्व मुझे मेरे एक परिचित ने इसी विषय पर सलाह लेने के लिए मुझे बुलाया गया। उन सज्जन के दो पुत्र थे और वे अपने जीते जी ही अपने व्यवसाय को उन दोनों में बराबर से बाँट देना चाहते थे। मैंने उन्हें व्यवहारिक पक्षों का विधि सम्मत ध्यान रखते हुए आगे बढ़ने की सलाह दी, तो वे सज्जन बोले, ‘उस विषय में तो मेरी चर्चा मेरे वकील से हो गई है, मैं आपसे बस व्यवहारिक और व्यापारिक पक्ष पर चर्चा करना चाहता हूँ।’
मैंने उन्हें पूरी बात विस्तारपूर्वक बताने के लिए कहा तो वे बोले, ‘सर आप जानते ही हैं, मेरे दो बेटे हैं और शहर में दो शोरूम हैं। मैं दोनों बेटों को एक-एक शोरूम दे देना चाहता हूँ, जिससे वे मेरे सामने ही अपने-अपने व्यवसाय पर पकड़ जमा लें। मैंने बड़े बेटे को नया वाला और छोटे बेटे को पुराना वाला शोरूम देने का निर्णय लिया है। इसकी मुख्य वजह बस इतनी सी है कि अभी भी उन दोनों के पास क्रमशः इन्हीं शोरूम को चलाने की ज़िम्मेदारी है। लेकिन बड़ा बेटा इसके लिए तैयार नहीं है। उसका मानना है कि उसे पुराना शोरूम मिलना चाहिए क्योंकि उसे जमाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। अर्थात् जब हमने अपनी इस पुश्तैनी दुकान का कायाकल्प करके इसे शोरूम में तब्दील किया था, तब बड़ा बेटा इसे ही सम्भाला करता था। जब यह सेट हो गया और छोटे बेटे ने पढ़ाई पूरी कर व्यवसाय में हाथ बँटाना शुरू कर दिया, तब हम सबने निर्णय लेकर नये शहर में एक नया शोरूम खोला। अब उसका मानना है कि पुराने शोरूम पर उसका हक़ है क्योंकि उसे सेट करने में सबसे ज़्यादा मेहनत उसने करी है। वो हमारी संस्था की साख, मेरे पूरे जीवनभर की मेहनत और उसके व छोटे बेटे की जीवनशैली, स्थिति आदि सभी को नज़रंदाज़ कर रहा है। अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ?’
चूँकि मैं उस परिवार से भली भाँति परिचित था इसलिए मैंने एक पल भी गँवाए बिना उन्हें सीधे कह दिया, ‘आप पुराना, सेट व्यवसाय और शोरूम बड़े बेटे को और नया वाला छोटे बेटे को दे दीजिए। फिर देखियेगा 1-2 साल में नया शोरूम भी पुराने जैसा अच्छा व्यवसाय करने लगेगा।’ उन सज्जन ने मुझसे जब इस निर्णय के पीछे की वजह पूछी तो मैंने उन्हें सिर्फ़ इतना कहा आप मेरी बात मानिए तो सही, जल्द ही आपको अच्छे परिणाम मिलने लगेंगे।
उस वक़्त तो उन सज्जन ने मेरी बात नहीं मानी और सब कुछ वैसे ही चलने दिया, जैसा पहले से चल रहा था। लेकिन बड़े बेटे की ज़िद के आगे और छोटे बेटे की सहमति के कारण एक दिन उन्होंने पुराने शोरूम को बड़े बेटे को और नये शोरूम को छोटे बेटे को अनमने मन से सौंप दिया। उनके इस निर्णय के बाद, मेरी उनसे दो-तीन मुलाक़ातें और हुई लेकिन वे हर बार अपने इस निर्णय के कारण चिंतित और परेशान नज़र आए।
समय का पहिया ऐसे ही चलता रहा और मैं इस बात को लगभग भूल ही गया। लेकिन कुछ दिन पूर्व यह सज्जन अचानक ही मेरे पास आए और बोले, ‘सर, मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। छोटे बेटे ने इस डेढ़ वर्षों में नये शोरूम पर अपना व्यवसाय बहुत अच्छे से जमा लिया है। अब तो स्थिति यह है कि हमारे पुराने ग्राहक भी नये शोरूम पर आने लगे हैं। लेकिन इसके विपरीत बड़ा बेटा अब थोड़ा अपने निर्णय पर पछता रहा है। उसका मानना है कि अगर वह मेरी सलाह पर नये शोरूम पर ही कार्य करता रहता तो अच्छा रहता।’ इतना कहकर वे सज्जन एक मिनिट के लिये चुप हुए फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘सर, मैं सिर्फ़ यह जानना चाहता हूँ कि आपने इतने वर्ष पहले कैसे कह दिया था कि छोटा बेटा नये शोरूम को अच्छे से सम्भाल लेगा।’ उन सज्जन की बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला, ‘वह छोड़िये, अब आप अगर छोटे बेटे को पुराना शोरूम दे देंगे तो भी वह उसे वापस से पुरानी स्थिति में ले आयेगा।’
मेरी बात सुन वे सज्जन एकदम चौंक से गये और एक पल बाद, माथे पर कुछ लकीरों को लिए बोले, ‘आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?’ मैंने मुस्कुराते हुए बात का पटाक्षेप करते हुए कहा, ‘आपका छोटा बेटा सभी से बड़ा अच्छा व्यवहार करता है। उसका व्यवसाय का तरीक़ा थोड़ा भिन्न है। वह ख़ुद के मुनाफ़े के स्थान पर व्यक्ति की ज़रूरत को प्राथमिकता देता है। उनकी ज़रूरत को, अपनी ज़रूरत; उनकी परेशानी को अपनी परेशानी; उनकी ख़ुशी को अपनी ख़ुशी समझता है। उसका यह व्यवहार ही ग्राहकों को उसकी ओर आकर्षित करता है।’ मेरी यह बात अब उन सज्जन को समझ आ गई थी और बड़े बेटे को यह समझाइश देने का वादा कर वे सज्जन वहाँ से चले गये।
दोस्तों, याद रखियेगा, हमारा व्यक्तित्व हमारे बाहरी रंग-रूप से नहीं, हमारे व्यवहार से निर्धारित होता है। बिलकुल एक समान; सामान क़ीमत और वैरायटी होने के बाद भी कष्ट सहकर ग्राहक उसी शोरूम पर गये जहाँ उनसे अधिक संवेदनशीलता के साथ व्यवहार किया गया। यही वह कारण था जिसकी वजह से मैंने उन सज्जन से कहा था कि ‘छोटे बेटे को आप कोई सा भी व्यवसाय दे दीजिए, वह उसे जमा लेगा।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments