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व्यापार में दया और दया का व्यापार दोनों ही ग़लत है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Aug 1, 2024
  • 3 min read

Aug 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

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दोस्तों, चलिए आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, रामपुर के रहने वाले सेठ अमीर चंद की गिनती देश के बड़े और मझे हुए व्यापारियों में होती थी। वैसे तो वे कई फ़ैक्टरियों, शोरूम आदि के मालिक थे, लेकिन उम्र अधिक हो जाने के चलते अब वे अपने घर के पास स्थित अपने डिपार्टमेंटल स्टोर पर बैठा करते थे। एक दिन सेठ अमीरचंद के डिपार्टमेंटल स्टोर पर एक ग्राहक ज़रूरत का कुछ सामान लेने के लिए आया। उस ग्राहक की हालत, उसके द्वारा लिया गया सामान देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह सीमित पैसों में ज़रूरत का सारा सामान ले लेना चाहता था।


सामान लेने के पश्चात वह ग्राहक बिलिंग काउंटर पर पहुँचा। बिल बनते ही उस ग्राहक के माथे पर सिलवटें आ गई। असल में उसने जितने का सामान लिया था, उतने पैसे उसके पास नहीं थे। सारी जेब टटोलने और सारी चिल्लर बटोरने के बाद भी उसे १० रुपये कम पड़ रहे थे। वह सेठ अमीर चंद से डिस्काउंट देने की विनती करने लगा। इस पर सेठ ने उसे स्पष्ट ना करते हुए कहा कि हमारी दुकान पर सामान एकदम फिक्स रेट पर ही दिया जाता है। अगर तुम्हारे पास पैसे कम हैं तो मैं इसमें से १० रुपये का सामान कम कर देता हूँ क्योंकि हम सामान उधारी में भी नहीं देते हैं।


ग्राहक को सेठ अमीर चंद की बात बहुत बुरी लग गई। वह धीमे से बुदबुदाता हुआ बोला, ‘एक तो तीन दिन से घर में खाना नहीं बना है और माँ, बाबा, पत्नी और बच्चे सब भूखे हैं और इस सेठ को अपने दस रुपये की पड़ी है।’ सेठ आमिर चंद ने उस व्यक्ति की बात सुन ली, वे एकदम से खड़े हुए और उस व्यक्ति से बोले, ‘तुम ५ मिनिट रुको, मैं अभी घर से आया।’ इतना कहकर सेठ डिपार्टमेंटल स्टोर के पास स्थित अपने घर गये और पत्नी से कहकर भोजन की एक शानदार थाली लगवा कर लाए और उस ग़रीब ग्राहक से बोले, ‘पहले तो भोजन करो, बाक़ी बात हम बाद में कर लेंगे और हाँ, मैंने तुम्हारे परिवार के लिए भी भोजन पैक करवा दिया है।’


ग्राहक हतप्रभ सा सेठ को देख रहा था और सोच रहा था कि कहाँ तो १० रुपये का उधार करने को राज़ी नहीं था और अब इतना स्वादिष्ट भोजन करवा रहा है। लेकिन उस वक़्त अत्यधिक भूख के कारण उसने पहले खाना खाने का निर्णय लिया। भोजन के पश्चात सेठ ने उसे उसके परिवार के लिए खाना दिया और साथ में कुछ रुपए भी दिए और बोला, ‘अब तुम दुकान के बिल का भुगतान करके अपना सामान ले जा सकते हो।’ उस ग्राहक ने ऐसा ही किया और सेठ को दुआ देते हुए वहाँ से चला गया।


ग्राहक के जाने के बाद सेठ अमीर चंद के बेटे उसके पास आए और बोले, ‘पिता जी ये कैसा व्यवहार, 10 रूपये कम पड़ने पर तो आपने उस ग्राहक का सामान कम करने का निर्णय सुना दिया था और बाद में उसे भरपेट भोजन करवाने के साथ-साथ आपने घर ले जाने के लिए भोजन और पैसे भी दिये। इतना ही नहीं आपने उससे अपने पैसे से ही अपना हिसाब चुकता करवाया, आखिर ऐसा क्यों? मुझे तो कुछ समझ नहीं आया।’ सेठ भी ख़ानदानी था। बच्चों की बात सुन धीमे से मुस्कुराते हुए बोला, ‘बच्चों! मेरी यह सीख हमेशा याद रखना, व्यापार करते समय, दया मत करना और सेवा करते समय, व्यापार मत करना!’


बात तो दोस्तों, सेठ अमीर चंद की लाख टका सही थी। मैंने भी अपने व्यवसायिक जीवन के अनुभव से सीखा है कि व्यापार में सेवा और सेवा में व्यापार, हमेशा नुकसान ही देता है। ठीक इसी तरह, ‘रिश्तों में व्यापार’ और ‘व्यापार का रिश्ता’ भी हानिकारक ही है। इसलिए दोस्तों अगर जीवन में सफलता चाहते हो तो इन विरोधाभासी बातों को कभी मिक्स मत करो, अन्यथा पछतावे के अलावा कुछ और हाथ नहीं लगेगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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