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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

शब्दों से आप दिल में या दिल से उतर सकते हैं…

Jun 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप मुझसे कोई एक कौशल पूछें जो विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी आपको बेहतर स्थिति में लाने में मदद कर सकता है तो वह है, ‘संचार कौशल’ याने कम्युनिकेशन स्किल। इसीलिए संचार की शक्ति को मनुष्यों का सबसे शक्तिशाली टूल माना जाता है। दोस्तों, अगर आप भी इस शक्तिशाली टूल या स्किल से अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं तो हर परिस्थिति में क्यों, कैसे, कब और क्या प्रश्नों के जवाब ढूँढे। अपनी बात को मैं आपको एक काल्पनिक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कई साल पुरानी है, एक गाँव में राज नाम का युवा अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ रहता था। जीवन-यापन के लिए यह परिवार खेती पर निर्भर था।


एक बार राज को चोरी के आरोप में जेल की सजा हो गई और उसके बुजुर्ग माता-पिता अब गाँव में अकेले रह गए। कुछ समय तो उन्होंने अपने जीवन को अभी तक की गई बचत और पूर्व के रखे अनाज से चलाने का प्रयास किया। लेकिन बीतते समय के साथ उनकी हालत ख़राब होती जा रही थी। एक दिन राज के पिता ने अपने पुत्र को बड़ा भावनात्मक पत्र लिखा और बोला, ‘प्रिय राज, आजकल मेरी और तुम्हारी माँ की स्थिति कुछ अच्छी नहीं चल रही है। तुम्हारे जेल जाने के बाद से समाज हम से पूरी तरह कट गया था और अब धीमे-धीमे बुढ़ापे के कारण शरीर भी साथ छोड़ रहा है। अभी तक तो जैसे-तैसे समय काट लिया था, लेकिन अब भूखे मरने की नौबत आती जा रही है क्योंकि खेत जोतना अब मेरे बस की बात नहीं है और सारी बचत व् घर में रखा अनाज लगभग ख़त्म हो चुका है। अब एक ही आस बची है कि किसी तरह तुम जेल से ३-४ दिन की छुट्टी लेकर आजाओ और खेत की जुताई करके चले जाओ। जिससे हम किसी तरह ज़रूरत की सब्ज़ी और अनाज उगालेंगे।’


पत्र पढ़ते ही राज चिंता में पड़ गया। वह जानता था कि जेल से इस तरह छुट्टी लेकर जाना संभव नहीं है। उसने अपनी दुविधा बताते हुए, पिता को पत्र लिखा और कहा, ‘पूज्य पिताजी, सादर चरण स्पर्श, आपकी वर्तमान स्थिति जानकर बहुत दुख हुआ। जेल के नियमों के अनुसार मेरा छुट्टी लेकर आना संभव नहीं है। दूसरी बात, मेरा आपसे निवेदन है कि भले ही आपको दूसरों से मदद लेकर या माँग कर अपना काम चलाना पड़े तो भी संकोच मत कीजिएगा और खेत को बिलकुल भी मत छेड़ियेगा; उसे वैसा ही ख़ाली पड़ा रहने दीजियेगा क्योंकि मैंने सारा माल उसी में गाड़ रखा है।’ पत्र लिखने के बाद राज ने उसे जेल प्रहरी को यह कहते हुए दे दिया कि इसे वे उसके घर भिजवा दें।


कुछ ही दिनों बाद राज के पास पिता का दूसरा ख़त आया, जो इस प्रकार था, ‘प्रिय राज, तुम ठीक तो होना? दो दिन पूर्व काफ़ी सारे पुलिसवाले आये थे और वे पता नहीं क्यों हमारे पूरे खेत को खोद कर चले गये। इस विषय में तुम्हें कुछ पता हो तो मुझे बताना।’ पत्र पढ़ते ही राज मुस्कुराने लगा। वह आगे कुछ कह पाता या पत्र का जवाब लिख पाता उससे पहले ही जेलर उसके पास पहुँचे और उसको डाँटते हुए बोले, ‘तुमने पिता को लिखे पत्र में लिखा था कि सारा माल तुमने खेत में गाड़ रखा है। लेकिन हमने तो सारा खेत खुदवा कर देख लिया। हमें तो वहाँ कुछ नहीं मिला।’ इतना सुनते ही राज मुस्कुराया और फिर माफ़ी माँगते हुए बोला, ‘सर, मैंने पिताजी से झूठ कहा था।’ इतना सुनते ही जेलर वहाँ से चिढ़ते हुए वापस चले गये और राज अपने पिता को पत्र लिखने लगे, ‘पूज्य पिताजी, सादर चरण स्पर्श, मैंने पुलिस से निवेदन करके खेत जुतवा दिया है। अब आप आराम से उसमें फसल बो सकते हैं।’


दोस्तों, विपरीत परिस्थितियों में भी राज अपने पिता की समस्या का समाधान इसलिए निकाल पाया था क्योंकि उसने समस्या को अच्छी तरह समझने के पश्चात क्यों, कैसे, कब और क्या प्रश्नों का हल खोजा था और फिर उसी को आधार बनाकर सारा कम्युनिकेशन किया था। सिर्फ़ समस्या ही नहीं एक अच्छा और स्वस्थ मन से किया गया संचार या संवाद याने कम्युनिकेशन रिश्तों को भी सुंदर बना सकता है और नकारात्मक या अस्पष्ट मन से किया गया संवाद रिश्तों में नकारात्मकता, अनादर, शिकायतें और दोषारोपण जैसे भाव पैदा कर सकता है। सब कुछ खत्म कर सकता है।


इसलिए साथियों, सकारात्मक और अच्छे संवाद के लिए एक जागरूक दिमाग और स्वच्छ शब्दावली का होना आवश्यक है। इसके साथ ही संवाद के दौरान अपनी भावनाओं को प्रामाणिक रूप से व्यक्त करने का प्रयास करें। इसके विपरीत अगर आप दूसरी तरफ़ से किए जाने वाले संवाद को समझने में दिक़्क़त महसूस कर रहे हैं तो तर्क-वितर्क या कुतर्क करने के स्थान पर चुप्पी साधें। चुप्पी आपको गहराई से सोचने और समझने का मौक़ा देती है। इसी तरह जब शब्द आपके नियंत्रण से बाहर होने लगें, तो तुरंत स्थिति से दूर चले जाएं और चीजों को स्वाभाविक रूप से घटने दें। याद रखियेगा, इंसान, इंसान का मन और उसकी समझ कभी भी एक जैसी नहीं होती। शायद इसीलिए कहा गया है ‘ठीक से चलना सीखने में केवल एक साल लगता है लेकिन ठीक से बोलना सीखने में पूरी जिंदगी लग जाती है!’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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