July 12, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, गणित की भाषा में बात की जाए तो सामान्य लोगों के लिए ‘ख़ुशी’ और ‘भौतिक व वित्तीय सफलता’ विपरीत समानुपाती याने इनवरस्ली प्रपोरश्नेट नज़र आती है। याने सामान्य इंसान जितना भौतिक और वित्तीय रूप से सफल होता जाता है, उतना ही असली ख़ुशी से दूर होता जाता है। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह ख़ुशी को बाहरी वस्तुओं से जोड़ कर देखना है। जबकि हक़ीक़त में ख़ुशी का लेना-देना बाहरी वस्तुओं या भौतिक सुख-सुविधाओं से है ही नहीं। अपनी बात को मैं आपको एक प्यारी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कुछ समय पूर्व की है, एक बेहद ही खूबसूरत महिला समुद्र किनारे घूमते हुए प्रकृति का आनंद ले रही थी। उसी वक्त वहीं पर बैठे एक चिंतित से लग रहे बुजुर्ग सज्जन भी आती-जाती लहरों को देख रहे थे। उनकी बेचैनी उनके चेहरे से साफ़ देखी जा सकती थी। ऐसा लग रहा था मानो वे किसी बड़ी परेशानी या चिंता से गुजर रहे हैं और उससे बाहर आने के रास्ते पर गहन चिंतन कर रहे हैं।
अचानक ही वहाँ एक बड़ी अप्रत्याक्षित सी घटना घटी, लहरों के साथ बहते हुए एक बड़ा ही नायाब सा हीरा किनारे तक आ गया। जिसे उस खूबसूरत महिला और थोड़ा दूरी पर बैठे बुजुर्ग व्यक्ति दोनों ने देखा। चूँकि महिला लहरों के समीप ही टहल रही थी इस लिए उसने लहरों के साथ बह कर आए हीरे को पहले उठाया और अपने पर्स में रख लिया। ऐसा करते वक्त उस महिला के हाव-भाव पहले की ही तरह पूरे शांत थे। ऐसा लग रहा था मानो उसे इतना नायाब हीरा मिलने से कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा हो।
इसके ठीक विपरीत दूर बैठे बुजुर्ग व्यक्ति, जो बड़े कौतूहल या यूँ कहूँ आश्चर्य के साथ इस घटना को देख रहे थे, कि बेचैनी और बढ़ गई थी। वे अपनी जगह से एकदम से उठे और उस महिला के पास पहुँच कर अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘मैडम, मैं बहुत परेशान हूँ, पिछले कुछ दिनों से मुझे कुछ खाने को नहीं मिला है। क्या आप मेरी मदद कर सकती हैं?’, बुजुर्ग व्यक्ति की बात सुन महिला के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वह अपना पर्स खोल उसमें खाने का कुछ सामान और पैसे ढूँढने लगी। इस दौरान, उस बुजुर्ग व्यक्ति की निगाह उस पत्थर समान नायाब हीरे पर ही थी। उक्त महिला को सारा माजरा तुरंत समझ में आ गया। उसने बिस्कुट के पैकेट के साथ वह नायाब हीरा निकाल कर उस बुजुर्ग व्यक्ति को दे दिया और वहाँ से चल दी।
महिला के ऐसा करते ही बुजुर्ग व्यक्ति सोच में पड़ गया। उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे, जैसे, ‘कोई भी इंसान इतनी क़ीमती चीज़ भला इतनी आसानी से कैसे दे सकता है?’, आदि। बुजुर्ग व्यक्ति ने एक बार फिर उस चमकते पत्थर याने हीरे को गौर से देखा और यह सुनिश्चित किया कि हीरा असली ही है। इसके पश्चात वह बुजुर्ग तेजी से चलता हुआ उस महिला के पास पहुँचा और बोला, ‘मैडम, क्या आप जानती हैं जो पत्थर आपने अभी मुझे दिया है, वह वास्तव में एक बहुमूल्य नायाब हीरा है।’ वह महिला उसी मुस्कुराहट और शांति के साथ बोली, ‘जी हाँ! मुझे पता है।’ जवाब सुनते ही बुजुर्ग व्यक्ति आश्चर्य से भर गया और बोला, ‘फिर आपने इसे मुझे इतना आसानी से, ख़ुशी-ख़ुशी कैसे दे दिया?’ इस बार महिला थोड़ा खिलखिलाकर हंसी और बोली, ‘क्योंकि मैं जानती हूँ दौलत और शोहरत इन लहरों के भाँति आती-जाती रहती है। इसलिए मैंने अपनी शांति और ख़ुशी को इससे जोड़ कर नहीं रखा है। अन्यथा वह भी लहरों के समान आती-जाती रहेगी। मुझे बहुत अच्छे से पता है कि मेरी ख़ुशी इस हीरे में नहीं अपितु मेरे अंदर है।’
बात तो दोस्तों, उस महिला की बिलकुल सही है अगर हमारी शांति और ख़ुशी किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से जुड़ी है तो उसके छूट जाने की सम्भावना बहुत ज़्यादा है और अगर आप उसे अपने अंदर महसूस करते हैं, तो फिर इससे कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आपकी स्थिति क्या है और आप किस हाल में रह रहे हैं। यक़ीन मानिएगा, ऐसा करते ही ख़ुशी और शांति, आपकी भौतिक और वित्तीय सफलता के इनवरस्ली नहीं बल्कि ड़ाईरेक्टली प्रपोरश्नेट याने सीधे आनुपातिक हो जाएगी। एक बार विचार कर देखिएगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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