Aug 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, एक प्रश्न के साथ शुरुआत करना चाहूँगा। शिक्षा क्या परीक्षा उत्तीर्ण करने का नाम है? या फिर अच्छे नंबर, अच्छी शिक्षा की निशानी है? मेरी नज़र में तो बिलकुल भी नहीं क्योंकि शिक्षा का अर्थ, इससे कई गुना ज़्यादा व्यापक है, तभी तो इसे इंसान की दूसरी आँख कहा जाता है। हमारी आँख जहाँ हमें सीमित चीजों को दिखाती है, वहीं शिक्षा रूपी हमारी दूसरी आँख हमें हमारे अतीत को, हमारे वर्तमान को और हमारे भविष्य को देखने में मदद करती है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो शिक्षा वह काबिलियत है, जो हमें, जो सामने नहीं है और जो हमारे आसपास के वातावरण में नहीं है, उन्हें देखने में मदद करती है। जैसे, पुस्तकों, दूसरों के अनुभवों, इतिहास, प्रयोग, आदि के माध्यम से हम हमारे अतीत को; भूत को देख और समझ सकते हैं। ठीक इसी तरह वर्तमान की दुनिया में क्या हो रहा है; हमारी दुनिया का आज का स्वरूप कैसा है; भविष्य की संभावनाएँ क्या-क्या है, जैसी बातों को जानने, समझने और उससे लाभ लेने लायक़ भी हमें शिक्षा ही बनाती है। अर्थात् इन सब बातों को जानने, समझने और उससे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमें शिक्षा की नितांत आवश्यकता है।
कुल मिलाकर कहा जाये तो शिक्षा नज़रिए को व्यापक बनाती है और अशिक्षा संकीर्ण। आप स्वयं सोच कर दीखिये अगर इंसान शिक्षित नहीं होता तो क्या उसे उपरोक्त सभी जानकारियाँ होती? मेरी नज़र में तो नहीं क्योंकि शिक्षा के बिना इंसान कुएँ का मेंढक बन कर ही रह जाता और जितना उसकी आँखें देख पाती, उतनी ही उसकी दुनिया बन कर रह जाती और ऐसा इंसान कुछ ना होते हुए भी ख़ुद को सब कुछ मानने लगता है।
इसके विपरीत शिक्षा इंसान का बौद्धिक विकास करती है; इंसान को सभ्य बनाने के साथ सभ्यता को स्थापित करने के लिए भी प्रेरणा देती है। इंसान को अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक उपार्जन करने के लिए तैयार करती है। कुल मिलाकर कहा जाए दोस्तों, तो कारण कुछ भी क्यों ना हो या फिर शिक्षा को किसी भी दृष्टि से क्यों ना देख लिया जाए यह इंसान और सभ्यता दोनों के विकास के लिए नितांत आवश्यक है।
इसलिए दोस्तों, मेरा मानना है कि शिक्षा का जितना ज़्यादा संभव हो हमें विस्तार करना चाहिये। इसके बिना मनुष्य के लिए ज्ञान के दरवाज़े खोलना संभव नहीं होगा। वैसे भी दोस्तों, आप स्वयं सोच कर देखिए अशिक्षित समाज के साथ क्या भारत को विकसित देश बनाना संभव है? या अशिक्षित समाज के साथ समाज में व्याप्त बुराइयाँ, भेदभाव, ग़रीबी आदि को मिटाया जा सकता है? शायद नहीं! यक़ीन मानियेगा दोस्तों, इस दुनिया में जितने भी देश हम से आगे हैं, वहाँ हमसे ज़्यादा शिक्षित लोग हैं। अर्थात् विकसित देशों के मुक़ाबले हमारे यहाँ कम शिक्षित लोगों का प्रतिशत काफ़ी ज़्यादा है, इसीलिए हमारे यहाँ शिक्षा के सन्दर्भ में चेतना लाने की आवश्यकता है।
वैसे दोस्तों, अगर आप प्राचीन भारत के इतिहास को देखेंगे तो पायेंगे कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहली से दसवीं शताब्दी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी और यही वह समय था जब हमारे यहाँ की गुरुकुल शिक्षा पद्धति भी दुनिया की सबसे सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पद्धति थी। इसलिए दोस्तों मेरा मानना है कि आज के युग में हमें एक बार फिर शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय, नैतिक और धार्मिक शिक्षा को बढ़ाना होगा; उसे सामान्य लोगों तक पहुँचाना होगा और इसके लिए सर्वश्रेष्ठ तरीक़ा इन्हें शिक्षा का हिस्सा बनाकर, लोगों को शिक्षित बनने के लिए प्रेरित करना होगा। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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