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शिक्षा से बनायें बेहतर समाज...

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 18, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, दोस्तों मेरा मानना है शिक्षा और संस्कार दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अर्थात् सही शिक्षा, सही संस्कार सिखाती है और संस्कारवान लोग मिलकर एक अच्छे समाज का निर्माण करते हैं। इसलिए मैं शिक्षा को जीवन निर्माण के साथ-साथ एक अच्छे समाज और एक अच्छे देश के निर्माण का महत्वपूर्ण चरण मानता हूँ। इसीलिए दोस्तों मैं हमेशा अच्छी शिक्षा का पक्षधर रहता हूँ, जिससे हम ईमानदार, सभ्य और समानुभूति पूर्ण समाज का निर्माण कर पाएँगे। अपनी बात को मैं आपको एक छोटी सी बच्ची की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात लगभग ५-७ वर्ष पुरानी है, रोज़ की ही तरह गुड्डी विद्यालय जाने के लिए घर से पैदल निकली। अभी वह कुछ दूर ही चली थी कि सड़क किनारे उसे किसी चमकती हुई चीज ने आकर्षित किया। गुड्डी दौड़ कर वहाँ गई और उस चमकती चीज को देख कर हैरान रह गई। असल में उसे वहाँ एक सोने का झुमका मिला था। वह कुछ देर वहीं खड़ी रही और इंतज़ार करने लगी कि झुमके का मालिक उसे खोजते हुए वहाँ तक आ जाएगा। लेकिन जब कोई भी झुमका लेने नहीं आया तो गुड्डी ने सोने के झुमके को अपने साथ विद्यालय ले जाने का निर्णय लिया।


विद्यालय पहुँचकर गुड्डी सबसे पहले प्राचार्य के पास गई और उन्हें सोने का झुमका देते हुए बोली, ‘आचार्य जी, यह झुमका मुझे रास्ते में पड़ा मिला था।। कृपया इसे इसके सही मालिक तक पहुँचा दीजिए।’ प्राचार्य ने गुड्डी की प्रशंसा करी और उसे आश्वस्त किया कि वे अपनी ओर से झुमके को उसके सही मालिक तक पहुँचाने का हर संभव प्रयास करेंगे। विद्यालय पूर्ण होने के बाद प्राचार्य ने सभी आचार्यों को सोने का झुमका दिखाते हुए पूरी घटना बताई और फिर सब मिलकर यह क़यास लगाने लगे कि यह झुमका किसका है। तभी एक शिक्षक ने सुझाव देते हुए कहा, ‘देखिए यह झुमका बिलकुल नया है, इसलिए संभावना है कि दो दिन पूर्व हमारे गाँव में जो दो शादियाँ हुई थी, यह उनमें से किसी का हो।’


मंत्रणा के पश्चात प्राचार्य ने शिक्षकों की मदद से गाँव में यह संदेश भिजवा दिया कि अगर किसी की कोई मूल्यवान या ज़रूरी वस्तु गुम हो गई हो तो वह सरस्वती विद्यालय में आकर ले जाए। अगले दो दिनों तक तो विद्यालय में कोई नहीं आया। लेकिन जैसा कि अनुमान था, दो दिनों बाद एक लड़की आई, जिसका विवाह कुछ दिन पूर्व ही हुआ था और कहने लगी, ‘मुझे गाँव वालों से पता चला है कि आप लोगों को कुछ मिला है।’ प्राचार्य ने तुरंत हाँ में सिर हिलाया और उस लड़की से पूछा कि तुम्हारा कौन सा सामान खो गया है? लड़की बोली, ‘मेरे कान का झुमका कहीं गिर गया है। काफ़ी ढूँढने पर भी अभी तक नहीं मिला है।’


लड़की की बात की सच्चाई जानने के लिए जब प्राचार्य ने उसे दूसरे कान का झुमका दिखाने के लिए कहा तो वो बोली, ‘आप मुझे दस मिनिट दीजिए मैं अभी घर जाकर लेकर आती हूँ।’ कुछ ही देर में वह लड़की झुमका लेकर आ गई। प्राचार्य अब उस खोये हुए झुमके के असली मालिक को पहचान चुके थे। इसलिए उन्होंने अपनी अलमारी में से झुमका निकाल कर उस लड़की को दे दिया। अपना खोया झुमका पाकर लड़की बहुत खुश थी। उसने प्राचार्य से कहा कि वह गुड्डी को उसकी ईमानदारी के लिए कुछ इनाम देना चाहती है। प्राचार्य ने तुरंत गुड्डी को बुलवाया।


गुड्डी के आते ही उस लड़की ने पहले तो उसे प्यार से दुलारा, फिर उसे २००० रुपये इनाम स्वरूप देने लगी। जिसे गुड्डी ने लेने से इनकार करते हुए कहा, ‘मैंने तो सिर्फ़ वही किया है जो हमारे विद्यालय ने हमें सिखाया है।’ बालिका पर शिक्षा का प्रभाव देख प्राचार्य सहित सभी आचार्य और वह लड़की प्रभावित थी। वे खुश थे कि विद्यालय द्वारा दी जा रही शिक्षा से बच्चे अच्छे संस्कार सीख रहे हैं और उससे उनके चरित्र का निर्माण ठीक तरीक़े से हो रहा है। इतनी देर में उस लड़की ने बाज़ार से मिठाई मँगवाई और उसे सभी छात्रों और कर्मचारियों में बँटवाया।


दोस्तों, इस घटना का असर उस लड़की पर इतना अधिक हुआ कि आज घटना के कई साल बीत जाने के बाद भी वह विद्यालय आती है और किसी ना किसी तरह से वहाँ अपना सकारात्मक योगदान देती है। अब आप समझ ही गए होंगे कि मैंने शिक्षा और संस्कार को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में क्यों बताया था। जिस तरह गुड्डी ने विद्यालय से ली शिक्षा से सही संस्कार सीखकर अपने चरित्र को बेहतर बनाया और उसके प्रभाव ने गाँव में शादी कर आई एक नई लड़की को शिक्षा में अपने योगदान को देने के लिए मजबूर करा ठीक उसी तरह दोस्तों, हम शिक्षा को मज़बूत बनाकर एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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