Sep 8, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हमारे देश को पर्वों की भूमि भी कहा जाता है। इसकी मुख्य वजह शायद जीवन को प्रकृति (ईश्वर) का धन्यवाद देते हुए उत्साह और ख़ुशी के साथ जीना सिखाना होगा। चलिए, आज हम अपने इस लेख की शुरुआत ब्रह्मा जी के सृष्टि निर्माण के दौरान बताई जाने वाली चार युगों की धारणा के साथ करते हैं। ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना करते वक़्त इसे चार युगों याने सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में बाँटा था। अगर आप इन चारों युगों में इंसान की सोच में आये परिवर्तन याने उसके व्यवहार और जीवन मूल्यों के आधार पर देखेंगे तो पायेंगे कि बदलते युगों के साथ जीवन मूल्य और इंसानियत गिरती गई और अत्याचार, पाप एवं बुराई बढ़ती गई। लेकिन मेरी नज़र में यह सब इतिहास और कही सुनी बातों के हिस्से से अधिक कुछ नहीं है।
मेरी अधूरी बात सुन कर कोई धारणा मत बनाइयेगा, मुझे भी अपने धर्म, अपने इतिहास, अपनी गौरवशाली परंपराओं पर बहुत गर्व है। मैं ना सिर्फ़ मानता हूँ बल्कि गर्वित भी महसूस करता हूँ कि पूर्व जन्मों में किए गये कुछ अच्छे पुण्यों के कारण मुझे भारतवर्ष की धरती पर जन्म लेने का मौक़ा मिला। लेकिन मैंने उपरोक्त बात एक विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए कही थी। असल में साथियों, मेरा जन्म इस घोर कलयुग में हुआ है और इसका अंत भी कलयुग में ही होगा। ऐसी स्थिति में सतयुग, त्रेता और द्वापर युग कैसे थे सीधे-सीधे मेरे जीवन को तब तक प्रभावित करने वाले नहीं है, जब तक मैं इनसे सीख लेकर अपने इसी कलयूगी जीवन को सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग के आनंद के साथ जीने लायक़ ना बना लूँ। सही है ना साथियों… तो चलिए सीखने की इस यात्रा की शुरुआत सर्वप्रथम चारों युगों के मुख्य अंतर को समझ कर करते हैं।
अगर आप सतयुग की घटनाओं को बारीकी से देखेंगे तो पायेंगे कि उस युग में देव और दानवों के बीच जंग हुई थी याने दो लोकों के बीच शत्रुता थी। इसके बाद अगर आप त्रेतायुग की घटनाओं पा गौर करेंगे तो पायेंगे कि इसमें यह जंग राम और रावण के बीच थी अर्थात् यह दो लोकों से निकल कर, दो देशों के बीच आ गई और द्वापर युग में यह एक परिवार के बीच थी। इसे आप भाई द्वारा बहन के बच्चों को मारने की घटना से महाभारत तक देख सकते हैं। अब अगर आप शत्रुता के स्तर को तार्किक आधार पर देखेंगे तो पायेंगे कि बदलते युग के साथ शत्रुता दो लोकों से लेकर एक परिवार के अंदर तक आ गई है। अब युग एक बार और बदल चुका है याने हम कलयुग में आ चुके हैं। इसका अर्थ हुआ शत्रुता अब एक परिवार से निकल कर और क़रीब आ गई है याने अब यह हमारे अंदर ही है। अर्थात् अब हमारा शत्रु हमारे अंदर ही है।
इस आधार पर कहा जाये तो इस युग में अंतर द्वन्द को जीत कर ही जीवन को सही मायने में जिया जा सकता है और ईश्वर ने इसका तरीक़ा हमें पूर्व युगों के नायकों की जीवनशैली से हमें सिखाया है। जैसे सतयुग में समुद्र मन्थन के दौरान जब विष निकला था, तब भगवान शिव ने महसूस किया कि देव और दानव दोनों ही जब इस विष का हल निकालने में असमर्थ थे तब इस सृष्टि की रक्षा करने के लिए देवों के देव महादेव ने इस विष को पीने का बीड़ा उठाया। इसका अर्थ हुआ परिवार, समाज, देश को एक रखने के लिए हमें भी अपने दैनिक जीवन में कुछ नकारात्मक बातों या घटनाओं को नज़रंदाज़ करते हुए जीना होगा याने कुछ नकारात्मक बातों या जीवन अनुभवों को विष के रूप में स्वीकारना होगा।
इसी तरह अगर त्रेतायुग और द्वापर युग को देखेंगे तो पायेंगे कि राम ने मर्यादा को प्राथमिकता दी वहीं कृष्ण ने सिद्धांतों को। इसलिए राम करुणा के साथ, तो कृष्ण कूटनीति के साथ घर छोड़ते नज़र आते हैं। इसी तरह जहाँ आपको भगवान राम आदर्शों के कारण कष्ट में नज़र आते हैं तो कृष्ण आदर्शों को चुनौती देते हुए नई परिपाटी को जन्म देते नज़र आते हैं। इसका अर्थ हुआ श्री राम से कृष्ण की यात्रा एक परिवर्तन की यात्रा है। मेरी बात को आप उस युग की कई घटनाओं से समझ सकते हैं जैसे राम का लक्ष्मण के मूर्छित होने पर परेशान होना और कृष्ण का बड़े लाभ के लिए अभिमन्यु का दांव पर लगाना। अगर अपने ज़रा से ज्ञान के आधार पर कहूँ, तो जहाँ राम ने मानवीय मूल्यों को समझाया है, वहीं कृष्ण ने मानवता के विषय में।
इसे ही आप दूसरी नज़र से देखेंगे तो पायेंगे कि कृष्ण तक आते-आते ही पूरी मानवता ख़तरे में थी। अब तो कलयुग है याने अब पूरी सृष्टि ही ख़तरे में है। इसलिए अब हमें मानवता के भी और आगे सोचना होगा याने जिस तरह त्रेता से द्वापर में हमने राम से कृष्ण तक के परिवर्तन को देखा था। ठीक उसी तरह कलयुग की यात्रा को सफलता पूर्वक करने के लिए हमें शिव से राम और राम से कृष्ण तक की परिवर्तन यात्रा से सीखते हुए अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा। याने हमारे जीवन की यात्रा तब तक अधूरी रहेगी, जब तक हम अपने अंदर शिव से यात्रा शुरू कर, राम से होते हुए कृष्ण तक ना पहुँच जाएँ। दूसरे शब्दों में कहूँ तो कलयुग की हमारी यात्रा का उद्देश्यपूर्ण सुखद समापन तब तक नहीं हो पाएगा, जब तक हम खुद को प्रभु याने (शिव, राम और कृष्ण) के साथ ना जोड़ लें। आइये, इस जन्माष्टमी याने भगवान कृष्ण के अवतरण दिवस को अपने लिये सार्थक करने के लिए उपरोक्त आधार पर एक नई पहल करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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