Sep 9, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जब तक मनुष्य के मन में आस्था, श्रद्धा और समर्पण ना हो, वह ईश्वर के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिह्न लगा देता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। कई साल पहले, एक गाँव में एक साधु महाराज रहते थे। वे जहाँ भी जाते थे, हमेशा ईश्वर के नाम जपने का उपदेश दिया करते थे। नाम जपने पर उनकी अगाध श्रद्धा को देख कई लोगों ने उनसे दीक्षा लेकर ‘राम’ जपना शुरू किया था। उनके शिष्यों में तो कुछ ऐसे शिष्य भी थे, जो उनके सानिध्य में रहकर ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिए साधना कर रहे थे।
एक बार साधु महाराज ने शिष्यों को नाम की महिमा सुनाते हुए कहा, ‘अगर श्रद्धा हो, तो राम का नाम जपने मात्र से मनुष्य सभी संकट से पार हो जाता है। याने उसकी सारी परेशानियों दूर हो जाती हैं।’ यह सुनकर साधु महाराज का एक शिष्य ख़ुशी से उछल पड़ा। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसे तो हर संकट से उबरने का रामबाण मिल गया है। रोज़ की ही तरह जब वह शिष्य भिक्षा माँगने के लिये निकला तो रास्ते में पड़ने वाली नदी को उफान पर देख आश्चर्यचकित रह गया। असल में उफान के कारण आज वह पुल से नदी को पैदल पार नहीं कर सकता था और नाविक ने भी इस तेज उफान में नदी को पार कराने से मना कर दिया था।
अभी वह नदी किनारे खड़े-खड़े इस उलझन से निकलने का रास्ता खोज ही रहा था कि उसे गुरु द्वारा एक दिन पहले दिया गया उपदेश याद आ गया, ‘राम का नाम जपने मात्र से मनुष्य सभी संकट से पार हो जाता है।’ उपदेश आते ही शिष्य ने सोचा, ‘जब राम का नाम इस भवसागर को पार करा सकता है, तो यह नदी कौन सी बड़ी चीज है?’ लेकिन तभी उसके चंचल मन में इस विचार के प्रति संशय उत्पन्न हुआ और उसने इस विषय में अपने गुरु से राय लेना उचित समझा। वह वापस गुरूजी के पास गया और उनसे बोला, ‘गुरूजी! नदी में बाढ़ आने की वजह से आज मैं पुल से नदी पार नहीं कर सका और साथ ही साथ नाविक ने भी नदी पार करवाने से मना कर दिया। अब आप बताइए मैं क्या करूँ?’ गुरुजी बोले, ‘कोई बात नहीं वत्स आज हम जल पीकर ही गुज़ारा कर लेंगे।’ लेकिन यह शायद उस शिष्य को मंज़ूर नहीं था। इसलिए उसने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘गुरूजी! कल आपने बताया था कि ‘राम नाम जपने मात्र से सभी संकटों से पार हुआ जा सकता है।’, तो क्या राम नाम से नदी भी पार हो सकती है?’ गुरूजी बोले, ‘अवश्य! श्रद्धा पूर्वक लिया गया राम नाम सभी संकटों से पार कर देता है।’
फिर क्या था, गुरूजी की बात सुनते ही शिष्य फिर से नदी की ओर चल दिया। हालाँकि उसे अभी भी राम नाम की शक्ति पर पूरा विश्वास नहीं था, लेकिन फिर भी गुरु की बात पर विश्वास कर उसने राम नाम परखने का निर्णय लिया और एक बार राम नाम लेकर नदी में उतर गया। इसके बाद उसने कुछ बार और राम नाम बोला और कुछ कदम आगे बढ़ा। अभी तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन नदी का पानी गले तक आने के कारण उसके विचार बदल गये और वह सोचने लगा कि ‘राम नाम से कुछ होने वाला नहीं है। यह सब बेकार की बातें हैं।’ विचार आते ही नदी के पानी में उसका पैर फिसला और वह तेज बहाव में बहने लगा। अब वह सोच रहा था कि यह सब बातें सिर्फ़ उपदेश देने के लिए हैं। गुरूजी तो झूठ बोलते है। इतने में एक बड़ी लहर आई और उसे बहा कर वापस किनारे पड़ छोड़ गई।
शिष्य को अब गुरु पर बहुत तेज गुस्सा आ रहा था। वह तुरंत दौड़ता हुआ गुरु के पास गया और उन्हें पूरी बात बताकर ग़ुस्सा करने लगा। जब इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो उसने गुरु को गालियाँ देना शुरू कर दिया और अंत में बोला, ‘अरे ढोंगी! पाखंडी! कोई मरे या जिये तुझे क्या फर्क पड़ता है। उपदेश के रूप में कुछ भी अनाप-शनाप बकता रहता है। आज तेरे उपदेश के चक्कर में, मैं मरते–मरते बचा। ये ले तेरी कंठी माला, आज मैं तुझे पूरी दुनिया के सामने नंगा करूँगा।’
शिष्य की बात सुनने के बाद भी गुरूजी शांत बैठे, पूर्व की ही तरह मुस्कुरा रहे थे। यह देख शिष्य का ग़ुस्सा और ज़्यादा बढ़ गया। वह लगभग चिल्लाते हुए बोला, ‘मैं अभी जाकर गाँव वालों को तेरी असलियत बताता हूँ।’ इतना कहकर शिष्य एक बार फिर गाँव की ओर चल दिया और उसके पीछे-पीछे गुरुजी। जब वे दोनों नदी किनारे पहुँचे तब भी नदी उफान पर थी। इसलिए शिष्य ने वहीं बैठकर इंतज़ार करने का निर्णय लिया। लेकिन गुरुजी बिना रुके नदी में उतर गये और नदी ने उन्हें रास्ता दे दिया।
गुरु को आराम से नदी पार करता देख शिष्य दंग रह गया। उसे अपनी भूल समझ आ गई। वह पश्चाताप की आग में जलता हुआ नदी में कूद पड़ा। उस समय उसे जीवन की कोई परवाह नहीं थी। वह बेसुध सा दौड़ता हुआ नदी पार कर गया और गुरुदेव के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा। साधु महाराज ने उसे उठाया और गले लगा लिया। जब उसे सुध आई तो उसने पीछे मुड़कर देखा। नदी ज्यों की त्यों बह रही थी।
उसने आश्चर्य पूर्वक गुरूजी से पूछा, ‘गुरूजी! ये क्या रहस्य है? जब मैंने राम नाम जपा था, तब नदी पार नहीं कर पाया और अब जब मैंने नाम नहीं जपा, तब भी मैं नदी पार कर गया, ऐसा क्यों?’ गुरूजी बोले, ‘वत्स! सब श्रद्धा का चमत्कार है। नाम तो श्रद्धा को साधने का जरिया मात्र है। तुम राम कहो या कृष्ण, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर श्रद्धा है, तो कोई भी नाम या विचार तुम्हें संकटों से पार कर सकता है और यदि श्रद्धा नहीं है तो सारे नाम बेकार है। जब तुम पहली बार नदी पार कर रहे थे। उस समय तुम्हें नाम में श्रद्धा नहीं, संदेह था। लेकिन अब जब तुमने उसी नाम से मुझे पार होते देखा, तो तुम्हें अपनी भूल का अहसास हो गया और तुमने अपने जीवन की परवाह किये बिना समर्पण कर दिया। यही श्रद्धा है।’
बात तो दोस्तों, गुरुजी की सौ प्रतिशत सत्य और जीवन को राह दिखाने वाली थी। जब भी अपने जीवन में हम अंतःकरण से उपजे प्रेम से किसी भी लक्ष्य को साधने का प्रयास करेंगे, तब-तब मन में उपजी श्रद्धा से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे। याद रखियेगा जिस तरह श्रद्धा और समर्पण के साथ ही ईश्वर के नाम की सार्थकता है, ठीक वैसे ही अगर आप लक्ष्य से प्रेम करेंगे तो निश्चित ही उसे साध पायेंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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