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श्रेष्ठ आचरण से बसाएँ अपना सुखी संसार…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Oct 29, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

जब इंसान ही हैवान, रक्षक ही भक्षक और मानव ही दानव बनने लगे तो मानवता, इंसानियत, रिश्तों का ख़तरे में आना या उन पर से विश्वास उठना सामान्य ही है। ऐसा मैं पिछले दिनों घटी कई घटनाओं को देख कह रहा हूँ, जिसमें पिता द्वारा अपनी बच्ची से ग़लत व्यवहार करना, पत्नी द्वारा फाँसी लगाने का पति द्वारा विडियो बनाना, तात्कालिक लाभ के लिए मित्र द्वारा व्यापार में धोखा देना, प्रसिद्ध मॉडल व टीवी कलाकार का रिश्तों में धोखा खाने पर आत्महत्या करना, प्रॉपर्टी विवाद में भतीजों द्वारा अपने चाचा की हत्या का प्रयास करना जैसी वो घटनाएँ शामिल हैं, जो पिछले कुछ दिनों में समाचार पत्र की सुर्ख़ियाँ बनी थी। सोच कर देखिएगा साथियों, मानवता को शर्मसार करने वाली इन घटनाओं के कारण एक सामान्य व्यक्ति का हर इंसान पर शक करना स्वाभाविक है या नहीं?


असल में साथियों, अवसरवादी भौतिक युग में जहाँ हर कोई सब कुछ तत्काल पाना चाहता है वहाँ जीवन मूल्यों पर ध्यान ना देना या उसकी कमी, आग में घी का काम करती है। जी हाँ, जीवन मूल्यों की कमी लोगों को शॉर्ट कट में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। हालाँकि ऐसी सफलता अक्सर लम्बे समय में दुखदायी ही साबित होती है क्यूँकि ऐसे सफलता प्राप्त करने वाला व्यक्ति खुद को लम्बे समय में खुद की नज़रों में ही गिरा हुआ पाता है।


मेरा तो मानना है, ऐसे कार्यों किये ही क्यूँ जाए जिनसे लम्बे समय में ना तो कीर्ति प्राप्त होती है और ना ही लाभ मिलता है। अगर आपका लक्ष्य जीवन में तेज़ी से ऊपर जाना है, अपना नाम बनाना है तो आपको हर कार्य को इस तरीके से करना होगा जिससे आपकी शान में बट्टा लगने की सम्भावना शून्य के बराबर हो। श्रेष्ठ या सफल व्यक्तियों का साथ आपको सफल बना सकता है, आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में मदद कर सकता है, लेकिन अंत में इससे आपको सुख और शांति मिलेगी यह कहना मुश्किल ही है। अगर आपकी प्राथमिकता सफलता के साथ सुख-शांति है तो आपको अपने आचरण को अच्छा बनाना होगा।

जी हाँ साथियों, लम्बे समय में आचरण ही आपकी, आपके परिवार की, आपके ख़ानदान की पहचान बनता है। इसीलिए मैं हमेशा सभी से कहता हूँ ऐसा कोई कार्य ना करें जिससे आपके माता-पिता को कभी भी कलंकित होना पड़े। वैसे यहाँ यह बताने की ज़रूरत बिलकुल भी नहीं है कि आचरण का आपकी शक्ल-सूरत, आपकी सुंदरता से कोई लेना-देना नहीं है। सूरत से कोई आदमी बुरा या अच्छा नहीं हो जाता है। इसी तरह काला-पिला-लाल-केसरिया-हरा रंग होना भी भले-बुरे की पहचान नहीं है। अच्छे या बुरे का लेन-देना तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके आचरण से है। श्रेष्ठ पुरुष या इंसान वही है जिसका आचरण श्रेष्ठ है।


दोस्तों, यही वह बात है जो हमें हमारे बड़े-बुजुर्ग या शिक्षा सिखाना चाहती है। इसीलिए हमेशा कहा जाता है कि अधर्म से धन कमा कर सफल होना, अथाह सम्पत्ति बनाने से अच्छा है कि मनुष्य श्रेष्ठ आचरण करता हुआ गरीब बना रहे। याद रखिएगा, पैसा जैसे आता है वैसे ही जाता है। इसीलिए तो शायद पंडित श्री रामा शर्मा आचार्य जी ने कहा था, जो पैसा दूसरों को रुला कर इकट्ठा किया जाता है। वह क्रन्दन कराता हुआ विदा होता है।’


तो आईए दोस्तों, आज से हम इस समाज को बेहतर बनाने के लिए एक निर्णय लेते हैं कि आज से सफलता प्राप्त करने के लिए नीति अनुसार ही मार्ग चुनेंगे क्यूँकि नीतिगत तरीके से जो धन प्राप्त किया जाता है, अंत में वही सच्चा आनंद देता है। इसी असली आनंद के लिए हमें अन्याय से बचना होगा और दया और न्याय आधारित कार्य करना होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


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