top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

संगत का प्रभाव…

May 12, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हाल ही में एक युवा ने मुझसे प्रश्न किया, ‘सर, बड़े लोग हमें हमारे दोस्तों के विषय में बार-बार क्यों टोकते हैं? हमें भी अपना अच्छा और बुरा पता होता है?’ उस युवा के प्रश्न में मुझे बड़ों की रोका-टोकी के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था। असल में वह युवा उसके जीवन में सत्संग या अच्छी संगत के लाभ और बुरी संगत के नुक़सान को समझ नहीं पा रहा था। वैसे दोस्तों, यह किसी एक युवा की परेशानी नहीं है, हर दूसरा युवा हमें इससे ग्रसित दिख जाएगा। मेरी नज़र में इस समस्या से बचने का एक ही उपाय है, बचपन से ही बच्चों को अच्छे सत्संग या संगत का लाभ कहानियों के माध्यम से समझाना और साथ ही उसे हमेशा अच्छी संगत में रखने का प्रयास करना। ख़ैर! मैंने तुरंत उस युवा को एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी-


बात कई साल पुरानी है राजा के महल में चोरी करके चोर नगर से बाहर की ओर भागा ही था कि सैनिकों को महल में चोरी के विषय में पता चल गया। सैनिकों ने बिना समय गँवाए चोर के पदचिह्नों का पीछा करना शुरू कर दिया। पदचिह्नों का पीछा करते-करते वे कुछ देर पश्चात एक गाँव में पहुँच गए, जहाँ एक संत का सत्संग चल रहा था और सभी ग्रामवासी उसे सुन रहे थे। सैनिकों ने सोचा, हो ना हो चोर इसी भीड़ में छुप कर बैठ गया होगा। वे सब वहीं खड़े रह कर सत्संग समाप्त होने का इंतज़ार करने लगे।


उस दिन सत्संग में संत; भगवान कृष्ण की शिक्षाओं को बताते हुए कह रहे थे कि जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान कृष्ण की शरण में चला जाता है, भगवान उसके सभी पापों को माफ़ कर देते हैं। इसलिए गीता के अध्याय १८ के श्लोक ६६ के अनुसार इंसान को सभी धर्मों का परित्याग कर भगवान की शरण में चले जाना चाहिये। जिससे वे हमें समस्त पापों से मुक्त कर सकें; हमारा उद्गार कर सकें। ठीक इसी तरह वाल्मीकि रामायण में कहा गया है, ‘जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ, यह मेरा वचन है।’


इसके पश्चात संत ने उपरोक्त दोनों प्रसंगों की व्याख्या करते हुए बताया कि ‘जो भगवान का हो गया, मानो उसका दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा है, वह तो अब साधु हो गया है।’ चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर संत की बातों का प्रभाव इतना ज़्यादा पड़ा कि उसने वहीं बैठे-बैठे निर्णय लिया कि ‘मैं इसी पल भगवान कृष्ण की शरण लेता हूँ क्योंकि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है। अब मैं रोजाना ‘हरे कृष्ण, हरे कृष्ण; कृष्ण कृष्ण, हरे हरे; हरे राम, हरे राम; राम राम, हरे हरे;’, महामंत्र का जप भी करूंगा।


सत्संग समाप्त होने पर जब सब लोग उठ कर जाने लगे तो सिपाहियों ने उनके सभी के पदचिह्नों को ध्यान से देखना शुरू कर दिया और कुछ ही पलों में चोर को पहचान लिया और उसे पकड़कर राजा के सामने पेश किया। राजा ने जब चोर से चोरी के विषय में पूछा तो वो बोला, ‘महाराज, मैंने इस जन्म में कोई चोरी नहीं की है।’ चोर को मुकरता देख सिपाही बोला, ‘महाराज, इसके और चोर के पदचिह्न एकदम समान है। इससे साफ़ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।’ मामला उलझता देख राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी जिससे पता चल सके कि वह झूठा है या सच्चा। अगले ही पल चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रख दिया। लेकिन इसके बाद भी चोर का हाथ जलना तो दूर, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लेकिन गर्म लोहा ज़मीन पर रखते ही सारी ज़मीन काली हो गई।


राजा ने उसी पल अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, ‘वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।’ इसके पश्चात राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ और बोला, ‘तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।’ इतना सुनते ही चोर बोला, ‘नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।’ राजा को लगा कि वह सिपाहियों को दंड से बचाने के लिए चोरी का आरोप अपने सिर ले रहा है। इसलिए वे चोर से बोले, ‘तुम नाहक ही इनपर दया दिखा रहे हो।’ राजा अपनी बात पूर्ण कर पाता उसके पहले ही चोर बोला, ‘महाराज, मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी और चोरी का सारा सामान पास ही के जंगल में छुपाया था। आप इन सैनिकों को मेरे साथ भेजिए मैं अभी सारा सामान लाकर देता हूँ।’ राजा ने ऐसा ही किया और चोर ने भी सारा चोरी का सामान वापस लाकर राजा के सामने रख दिया, जिसे देख राजा आश्चर्यचकित रह गए। राजा ने चोर से जब हाथ ना जलने के विषय में पूछा तो चोर ने चोरी करने से लेकर धन को जंगल में छिपाने और फिर गाँव में सत्संग के बारे में सब-कुछ विस्तार से कह सुनाया और अंत में बोला, ‘महाराज, जो भगवान कृष्ण की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान कृष्ण सब पापों से मुक्त कर देते हैं और उसका नया जन्म हो जाता है। मेरे साथ ऐसा ही हुआ है। मैंने अपने पिछले जन्म में आपके महल में चोरी की थी। इस नये जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की है। इसलिए आपके द्वारा ली गई परीक्षा में मेरा हाथ भी नहीं जला।’


दोस्तों, मुझे नहीं पता उक्त कहानी से उस युवा को कुछ लाभ मिला होगा या नहीं। लेकिन मेरा मानना है कि अगर इंसान सत्संग की आदत ना डाले, तो उसे कुसंग अपने आप मिल जाएगा। कुसंग का साथ ऐसे लोगों को कुकर्मी बनाकर पतन की ओर ले जाता है। लेकिन इसके विपरीत सत्संग बुरे से बुरे इंसान को भी अच्छा और महान बनाकर, तार देता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

1 view0 comments

Comments


bottom of page