Oct 17, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक बार एक भँवरे की मित्रता गोबरी कीड़े के साथ हो गई। दोनों की मित्रता का आलम यह था कि दिन उगने से लेकर दिन ढलने तक साथ रहा करते थे। एक संध्या के वक्त टहलते-टहलते गोबरी कीड़े ने भँवरे से कहा, ‘तुम मेरे सबसे प्रिय, सबसे अच्छे और पक्के मित्र हो। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कल संध्या को तुम अपने परिवार के साथ मेरे घर खाना खाने आओ।’
अगले दिन भँवरा सुबह उठते ही बाज़ार गया और अपने मित्र के लिये उपहार आदि लेकर आया और संध्या के समय अपने परिवार के साथ गोबरी कीड़े के यहाँ पहुँच गया। गोबरी कीड़ा अपने मित्र को परिवार सहित अपने यहाँ आया देख कर बड़ा उत्साहित और खुश था। उसने बड़े आदर के साथ अपने मित्र का सत्कार किया और सामान्य बातचीत के बाद परिवार को भीतर भोजन के लिए आमंत्रित किया। भोजन में कीड़े ने गोबर की गोलियाँ पड़ोसी और मित्र व उसके परिवार से उन्हें खाने के लिए कहा। भँवरा और उसका परिवार अचंभित था। वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस स्थिति में किया क्या जाए। तभी कीड़ा एकदम से बोला, ‘मित्र, रुक क्यों गए? खाओ भाई… खाओ… भँवरा सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाये। तभी उसके मन में विचार आया कि मैंने बुरे का संग किया है, तो अब गोबर खाना ही पड़ेगा। विचार आते ही भँवरे ने किसी तरह गोबर की गोलियाँ खाई लेकिन उसका परिवार वहाँ से खाने का नाटक कर भूखा ही लौट आया।
लौटते वक़्त भँवरे के परिवार से हर कोई भँवरे को टोक रहा था। बच्चे उससे कह रहे थे कि आप हमें ग़लत संगत से बचने के लिए कहते हैं और ख़ुद गोबर खाने वालों से दोस्ती रखते हैं। वहीं पत्नी का मत था कि किसी के घर जाने के पहले ज़रा जाँच पड़ताल करके देख लिया करो। गोबर खाने के कारण बच्चे बीमार पड़ गये तो कौन ज़िम्मेदार होगा? वहीं भँवरे के मन में कुछ और ही बातें चल रही थी। वह सोच रहा था कि मैंने बुरे का संग किया है, तो मुझे उसका परिणाम तो भोगना ही पड़ेगा। लेकिन गोबरी कीड़े को भी तो मेरा संग मिला, उसे भी तो इसका फल मिलना चाहिए। विचार आते ही भँवरे ने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध जाते हुए गोबरी कीड़े को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करते हुए कहा, ‘भाई आज मैं अपने परिवार के साथ तुम्हारे यहाँ भोजन के लिए आया था। अब कल तुम हमारे यहाँ भोजन करने के लिए आओ।’
अगले दिन गोबरी कीड़ा तैयार होकर भँवरे के यहाँ भोजन करने के लिए पहुँच गया। भँवरे ने कीड़े को गुलाब के फूल के ऊपर उठाया और उसे फूलों का रस पीने के लिए दिया। कीड़ा स्वागत के इस अनुभव से मंत्रमुग्ध सा था। उसे एहसास ही नहीं था कि गुलाब का आसन इतना नरम और ख़ुशबूदार व फूलों का रस इतना स्वादिष्ट हो सकता है। कीड़े ने खूब सारा रस पिया और मज़े किए। अंत में उसने मित्र को धन्यवाद दिया और कहा, ‘मित्र तुम तो बहुत सुन्दर और अच्छी जगह रहते हो और अच्छा खाते हो। क्या मैं तुम्हारे घर के पास वाले गुलाब के पौधे पर कुछ देर और रह सकता हूँ?’ भँवरे ने मुस्कुराते हुए हाँ कह दिया।
मित्र से इजाज़त पा गोबरी कीड़ा ख़ुशी-ख़ुशी पास वाले गुलाब पर जाकर बैठ गया और मस्ताने लगा। तभी पास के ही मंदिर के पुजारी आये और कीड़े समेत गुलाब के फूल को तोड़ कर ले गये और उसे मंदिर में प्रभु के चरणों में अर्पित कर दिया। कीड़े को अच्छे मित्र के साथ के कारण आज भगवान के दर्शन करने का मौक़ा मिला। इतना ही नहीं अब वह पूर्ण बेफ़िक्री के साथ प्रभु के चरणों में बैठा था। संध्या के समय पुजारी जी वापस आये और ईश्वर को चढ़े सभी फूलों को एकत्र कर गंगा माँ को अर्पित कर आये। कीड़ा गंगा जी की लहरों में अटखेली करते हुए अपनी क़िस्मत पर हैरान था। तभी भँवरा उड़ता हुआ कीड़े के पास आया और बोला, ‘मित्र बताओ यह सब कैसा लग रहा है?’ कीड़ा बोला तुम्हारे साथ से ही मुझे इतना पुण्य मिला कि जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति हो गई और जहाँ लोगों की अस्थियाँ मरने के बाद गंगा जी में प्रभावित की जाती हैं, वहीं मुझे ज़िंदा आने का सौभाग्य मिला है। अभी तक जिसको मैं अपनी जन्नत समझता था वो गन्दगी थी। आज तेरे कारण जो मिला है वह ही स्वर्ग है!’
दोस्तों, गोबरी कीड़े को भँवरे की अच्छी संगत का फल मिल गया था, जिसके कारण वह आज निहाल था। इसी लिये कहते हैं, ‘जैसे संग करोगे वैसे बन जाओगे!’ संग अगर शराबी का होगा तो शराबी बन जाओगे; जुआरी के साथ रहोगे तो जुआरी बन जाओगे; स्वार्थी या संग करोगे तो स्वार्थी और दानी का संग करोगे तो दानी बन जाओगे। इसलिए दोस्तों, जैसा जीवन जीना चाहते हो वैसी संगत में रहना और उनकी आदतों के आधार पर जीना शुरू कर दो। देखना जल्द ही आप भी वैसे ही बन जाओगे क्योंकि जैसी संगत वैसी रंगत..!!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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