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संगत पर दें ध्यान…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

June 15, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, माता-पिता का बच्चों के सही पालन-पोषण को लेकर चिंतित रहना स्वाभाविक है। इसीलिए हर सेमिनार मैं मैंने देखा है कि सेमिनार का विषय कुछ भी क्यों ना हो, प्रश्नोत्तर राउंड में कोई ना कोई पेरेंटिंग सम्बन्धी प्रश्न पूछ ही लेता है। ऐसा ही कुछ कल एक विद्यालय में टीचर्स ट्रेनिंग के दौरान मेरे साथ हुआ। सेमिनार के दौरान बढ़ती उम्र के साथ बच्चों की बदलती प्राथमिकताओं, मेंटल एवं फ़िज़िकल डेवलपमेंट पर आधारित सीखने के तरीक़ों पर चर्चा करते समय एक शिक्षक ने मुझसे प्रश्न किया, ‘सर, आप जो भी बता रहे हैं, वह निश्चित तौर पर सही होगा। लेकिन पेरेंटिंग के विषय में मेरा अनुभव थोड़ा अलग है। मेरे दो बच्चे हैं, दोनों एक ही विद्यालय में पढ़ते हैं, दोनों को घर पर एक जैसा माहौल और सुविधाएँ मिलती हैं। लेकिन उसके बाद भी एक बच्चा बड़ा संस्कारी और पढ़ने में तेज है तो दूसरा थोड़ा बिगड़ा हुआ।’


जब मैंने दोनों बच्चों की दिनचर्या को बारीकी से समझा तो मुझे उक्त शिक्षक की परेशानी तुरंत समझ आ गई। असल में दोनों बच्चों के शौक़ भिन्न-भिन्न थे इसलिए उक्त शिक्षक दोनों बच्चों को अलग-अलग हॉबी क्लास में भेजा करते थे। एक बच्चा जहाँ स्पोर्ट्स अकादमी जाता था वहीं दूसरा म्यूज़िक क्लास। इसी वजह से उन दो घंटों में दोनों बच्चे बिलकुल अलग-अलग माहौल में रहा करते थे, जिसका असर उनके अलग-अलग व्यवहार में दिख रहा था। मैंने उन शिक्षक को एक कहानी सुनाने का निर्णय लिया जो इस प्रकार थे-


एक बार राजपुर के राजा के दरबार में एक महात्मा पधारे। राजा ने उन महात्मा की बहुत आव-भगत करी। जिसके कारण महात्मा बहुत खुश हो गए और उन्होंने अपना प्रिय पालतू तोता राजा को उपहार स्वरूप दे दिया। राजा ने बड़े स्नेह के साथ उक्त तोते के लिए काफ़ी बड़ा सोने का पिंजरा बनवाया और उसके लिए सभी सुख-सुविधाओं का प्रबंध किया। अब तोता रोज़ सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पहले जय श्री राम बोलता और फिर बड़े प्यार से राजा-रानी को आवाज़ देकर उठाता और कहता, ‘राजन, हमें यह दुर्लभ मानव तन सोने के लिए नहीं अपितु भगवान के भजन करने लोगों की सेवा करने के लिए मिला है। इतना ही नहीं राजा-रानी के उठने के बाद तोता कभी रामायण की चौपाई तो कभी गायत्री मंत्र बोलता और तो कभी गीता के श्लोक बोलता। कुछ ही दिनों में राजा को ऐसा लगने लगा जैसे तोते के रूप में घर में कोई संत आ गया है।


कहते हैं ना जो इस दुनिया में आता है एक ना एक दिन वापस भी जाता है। एक दिन इस तोते ने भी इस जहाँ में अंतिम साँस ली। राज-रानी और पूरे राज परिवार सहित पूरे राष्ट्र ने कई दिनों तक शोक मनाया। राजा, रानी और राजपरिवार को इस हाल में देख मंत्री ने उसी तोते समान दूसरे तोते को लाने का निर्णय लिया। काफ़ी दिनों तक खोजबीन करने के बाद मंत्री को एक कसाई के पास वैसा ही तोता दिखा जिसकी नासिका, पंख, आकार, चितवन सब कुछ पुराने वाले तोते समान था। जब मंत्री ने इस विषय में कसाई से बात करी तो पता चला कि बहेलिये ने एक ही वृक्ष से दो तोते पकड़े थे। एक उसने महात्मा जी को दे दिया था और दूसरा कसाई ने ख़रीद लिया था। मंत्री ने कसाई से आज्ञा ले उस तोते को राजमहल में राजा के पास भिजवा दिया। पुराने तोते समान नया तोता पा राजपरिवार बहुत खुश हुआ, उन्हें तो ऐसा लग रहा था मानों पुराना तोता नया जीवन पा वापस आ गया है। लेकिन राज परिवार की यह ख़ुशी ज़्यादा दिन नहीं चली क्योंकि अब रोज़ सुबह नया तोता राजा को वैसे ही उठाने लगा जैसे कसाई अपने नौकरों को उठाता था और कहता था, ‘उठ गधे, क्या राजा बनके बिस्तर पर पड़ा हुआ है। जा मेरे लिए नाश्ता ला नहीं तो डंडे पड़ेंगे।’


रोज़ सुबह नकारात्मक बातें सुन राजपरिवार और राजा परेशान हो गए। एक दिन यही बात बार-बार दोहराने पर राजा को बहुत ग़ुस्सा आया और उसने तोते को पिंजरे से निकाला और उसकी गर्दन मरोड़कर क़िले से बाहर फेंक दिया। कहानी पूरी होने के पश्चात कुछ पल चुप रहने के बाद मैंने उन शिक्षक से कहा, ‘, दोनों सगे भाई थे, दोनों दिखने में एक समान थे दोनों एक ही पेड़ पर रहते थे, लेकिन उसके बाद भी एक को गर्दन मरोड़कर मारा गया और दूसरे के मरने पर राजकीय शोक मनाया गया। आख़िर दोनों की गत में यह अंतर क्यों आया?’ बिना शिक्षक के जवाब का इंतज़ार किए मैंने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘असल में यह अंतर संगत का था। पहले तोते पर महात्मा की संगत का असर था इसलिए वो संत-महात्मा समान बातें किया करता था और दूसरे तोते पर कसाई की संगत का असर था इसलिए वह कसाई समान बात करता था। ठीक इसी तरह हमारे बच्चे भी जिस संगत में रहते हैं उसके अनुसार ही व्यवहार करते हैं।


जी हाँ दोस्तों, उक्त शिक्षक के बच्चों के व्यवहार में अंतर उनकी संगत की वजह से आया था। शिक्षक भले ही उन्हें घर और विद्यालय में एक समान माहौल देने का प्रयास कर रहे थे लेकिन अतिरिक्त समय में अलग-अलग माहौल उनपर अलग-अलग प्रभाव डाल रहा था। याद रखिएगा दोस्तों, कच्ची मिट्टी को जिस साँचे में डाला जाता है वह उसी रूप में ढल जाती है। ठीक उसी तरह बच्चे जैसी संगत में रहते हैं वैसे ही ढल जाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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