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संघर्ष से पाएँ सफलता…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Nov 26, 2022
  • 3 min read

Nov 26, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, शायद आप मेरी बात से पूरी तरह सहमत होंगे कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। उसे पाने के लिए हमें संघर्ष करना पड़ता है और आज हम जहाँ भी पहुँच पाए हैं, उसी संघर्ष की वजह से पहुँच पाए हैं। लेकिन, आज हम यही बात बच्चों को सिखा नहीं रहे हैं, उन्हें ज़रूरत से ज़्यादा सुरक्षित और संरक्षित वातावरण में बड़ा कर रहे हैं। आप स्वयं सोच कर देखिएगा क्या इतना संरक्षित और सुरक्षित माहौल उनके भविष्य को बेहतर और सुरक्षित बना पाएगा? क्या वे इस तेज़ी से बदलती दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल पाएँगे? शायद नहीं… उसके लिए तो हमें उन्हें तराशना होगा और तराशने के लिए जीवन के कुछ अनुभव देने होंगे। अपनी बात को मैं आपको एक प्यारी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई साल पुरानी है, पहाड़ की चोटी से पत्थर की एक चट्टान वहाँ से बहने वाली नदी में गिर गई और बहते-बहते तराई क्षेत्र में नदी के किनारे पर पहुँच गई। नदी के उस किनारे पर अलग-अलग आकार के असंख्य पठारों का ढेर, पहले से ही पड़ा हुआ था। एक दिन उस ढेर में से एक खुरदुरे पत्थर का ध्यान पहाड़ की चोटी से बहकर आए पत्थर की ओर गया। वह उस पत्थर की सुंदरता अर्थात् आकर्षक गोल-मटोल, चिकने आकार को देख मंत्र मुग्ध हो गया। उसने इतना सुंदर पत्थर आज तक नहीं देखा था। वह आश्चर्य कर रहा था कि कोई पत्थर इतना भी सुंदर हो सकता है?


काफ़ी देर तक निहारते रहने के बाद उस खुरदुरे पत्थर ने उस सुंदर गोल-मटोल पत्थर से कहा, ‘भाई, तुम्हारी क़िस्मत तो बहुत ज़ोरदार है, मुझे तो लगता है ईश्वर ने तुम्हें बड़ा फ़ुरसत से बनाया है। ना मानो तो हमारी यात्रा को देख लो, हम दोनों ही ऊंचे पर्वतों से टूटकर इस नदी के साथ बहकर इतनी दूर आए हैं। लेकिन मैं इतना खुरदुरा और बदसूरत हूँ और तुम एकदम चिकने, गोल-मटोल और आकर्षक हो।’ खुरदुरे पत्थर की बात सुन गोल पत्थर मुस्कुराया और बोला, ‘मित्र, क़िस्मत के बारे में तो मुझे पता नहीं। लेकिन मैं तुम्हें एक बात ज़रूर बताना चाहूँगा, पहले मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह खुरदुरा और बेडौल था। लेकिन मैं कई सालों तक निरंतर इस नदी के तेज़ बहाव के साथ बहता रहा। बहाव के दौरान नदी की तेज़ धार ने मुझे काटा, रास्ते में नदी के थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका, उससे टकरा कर मैं कई बार टूटा, तब कहीं जाकर मैंने यह रूप पाया है।’


कुछ पल चुप रहने के पश्चात सुंदर पत्थर वापस से बोला, ‘जानते हो, मेरे पास भी विकल्प था कि मैं रास्ते में किसी किनारे पर रुक इन थपेड़ों, नदी की तेज धार या दूसरी चट्टानों पर पटके जाने से बच जाता। लेकिन मुझे इस बात का अहसास था कि जीवन में तकलीफ़ें, परेशानियाँ या विपरीत परिस्थितियाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ हमें बेहतर बनाने के लिए आती हैं। इसीलिए मेरा मानना है विपरीत परिस्थितियों से डर कर जीना, जीवन जीना नहीं, काटना है और यह मेरी नज़र में मौत से भी बदतर है। मेरा सुझाव है कि इस रूप से निराश होने के स्थान पर अपने संघर्ष को जारी रखो। देखना एक दिन तुम मुझ से भी बेहतर और सुंदर, आकर्षक, गोल-मटोल और चिकने पत्थर बन जाओगे।’


अब आप ही सोच कर निर्णय लीजिए कि हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित और संरक्षित वातावरण सही है या फिर उन्हें जीवन की चुनौतियों से दो चार होने देना। अगर वे बचपन से ही खुद विपरीत परिस्थितियों, चुनौतियों से निपटेंगे तो खुद को तराश कर बेहतर बना पाएँगे। याद रखिएगा, सुरक्षित और संरक्षित वातावरण सामान्यतः उस रूप को स्वीकारने के लिए मजबूर करता है जो आपके अनुरूप नहीं होता है। इसके विपरीत संघर्ष, इंसान के जीवन को बदल देता है। इसलिए परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों ना हो, संघर्ष और प्रयास करना ना छोड़ें, फिर चाहे आपको उसी वक्त उसका फल मिल रहा हो या नहीं। यक़ीन मानिएगा, फिर आपको दुनिया की कोई ताक़त सफल होने से रोक नहीं पाएगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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