Nov 2, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
‘संतोषी सदा सुखी!’, निश्चित तौर पर आपने भी इसे कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, किसी ना किसी से सुना ही होगा। अक्सर मेरे मन में विचार आता था कि आख़िर इस वाक्य में ऐसा क्या है, जो हर कोई इसका इस्तेमाल कभी ना कभी करता है। शुरू में तो मुझे लगा शायद यह हार मान लेने वाले लोगों के मन को समझाने या फिर हारे हुए लोगों को दिलासा देने वाला एक अचूक वाक्य है। लेकिन जब मैंने ‘संतोषी होने’ के व्यापक अर्थ को समझा तो एहसास हुआ कि यह कमज़ोरों का नहीं बल्कि समझदार और ज्ञानियों का सुखी और शांत जीवन जीने का एक अतिआवश्यक सूत्र है।
जी हाँ साथियों, संतोषी होने का अर्थ किसी भी रूप में अकर्मण्यता नहीं है अर्थात् बिना कर्म किए संतोष के साथ बैठे रहना नहीं है अपितु परिणाम के प्रति अनासक्त रहते हुए लगातार प्रयत्न कर, प्रसन्न रहना है। यही तो भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के पूर्व गीता के रूप में अर्जुन के माध्यम से हम सभी को उपदेश दिया था, 'कर्म करो और फल की चिंता मत करो'। लेकिन अक्सर सामान्य लोगों द्वारा प्रयत्न ना करने या कर्म ना करने को संतोष समझ लिया जाता है। हालाँकि मैं इससे भी इनकार नहीं करता हूँ कि कई लोग संतोषी होने की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छुपा लेते हैं। लेकिन सोच कर देखिएगा साथियों, ऐसा करके वे किसका नुक़सान कर रहे हैं? निश्चित तौर पर खुद का!
याद रखिएगा दोस्तों, आज के तेज़ी से बदलते इस युग में आपके पीछे रह जाने से इस दुनिया को कोई फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है। यह दुनिया पहले भी अपनी गति से चल रही थी और आगे भी चलती रहेगी। लेकिन अगर आप अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं, सफल होना चाहते हैं तो समझना होगा कि संतोष का अर्थ प्रयत्न न करना नहीं है अपितु प्रयत्न करने के बाद जो भी मिल जाए उसमें प्रसन्न रहना है।
लेकिन अगर आप इसके बाद भी असंतोषी रहकर सफल बनना चाहते हैं, अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो फिर प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहें। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ, हमें सफलता और जीवन की सार्थकता के लिए प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाना होगा और यह तभी सम्भव है जब हम हर पल, सोते-जागते अपने लक्ष्य से जुड़े रहें। वैसे भी दोस्तों भगवान श्री कृष्ण ने हमें गीता के उपदेश के माध्यम से समझाया था फल की इच्छा रखते हुए कोई भी काम करना अर्थात् फल की इच्छा के साथ कर्म करना हमें दुःख देता है। अतः सुखी रहना है तो सिर्फ कर्म करो और वह भी निष्काम भाव से।
जी हाँ साथियों, सफलता का इससे साधारण सूत्र कोई और हो ही नहीं सकता। बस कर्म करते वक्त एक बात याद रखिएगा, ‘मेरी दुनिया, मेरी सफलता, मेरे ऊपर ही निर्भर करती है, मेरे कर्म ही मेरे जीवन की दिशा और दशा तय करेंगे। अगर आपका लक्ष्य शांतिपूर्ण, आनंददायक जीवन जीना है तो कर्म करने के पश्चात सब कुछ प्रभु पर छोड़ दो, प्रभु के शरणागत हो जाओ और फिर परिणाम में जो प्राप्त हो, उसे प्रेम से स्वीकार कर लो।’ साथियों, अगर आप इस साधारण से सूत्र को अपने जीवन का मंत्र बना पाए तो आप नहीं आपकी सफलता आपके बारे में लोगों को बताएगी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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