Dec 14, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अगर आप गहराई से सोचेंगे तो पायेंगे कि जीवन में आपको कभी भी सुख भौतिक वस्तुओं से नहीं अपितु अनुभव, संतोष और कृतज्ञता जैसे भावों से मिला है। हो सकता है आप में से कुछ लोगों को मेरी बात अतिशयोक्तिपूर्ण लग रही होगी और मन में विचार आ रहे होंगे कि ‘ऐसी बातें सुनने में और पढ़ने में ही अच्छी लगती हैं, इनका असली जीवन से कोई लेना-देना नहीं है।’, अगर ऐसा है तो मैं आप से कहना चाहूँगा कि आप अपने जीवन के सबसे ख़ुशी और आनंद देने वाले पलों को याद करके देख लीजियेगा, आप पायेंगे कि वे सभी पल अनुभवों पर आधारित होंगे। जैसे माता-पिता के साथ बिताया समय, किसी जरूरतमंद को दी गई मदद, निस्वार्थ भाव से की गई सेवा, आदि। सही कहा ना?
इसीलिए दोस्तों, आपको कई लोग अपनी मस्ती में ही मस्त नजर आते हैं फिर उनके पास कुछ हो, या ना हो। इसी बात को चलिए हम एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। बात कई साल पुरानी है, एक बार एक साधु लोगों को धर्म का संदेश देने के उद्देश्य को लिए एक यात्रा पर निकले। इस यात्रा के दौरान वे अलग-अलग गाँव, कस्बों और नगर में रुक कर लोगों को भारतीय आध्यात्म के बारे में जागरूक किया करते थे।
एक दिन एक गाँव से गुजरते वक्त उन्हें एक बड़ा सुंदर सा प्राचीन मंदिर नजर आया। जिसे देख साधु के मन में भक्ति का भाव और गहरा हो गया और वे उसी पल यात्रा की वजह से धूल से सनी अपनी फटी-पुरानी धोती और कुर्ता को झाड़ कर ठीक करते हुए भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के अंदर गए और भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोले, ‘हे प्रभु, आप तो अत्यंत दयालु और कृपालु हैं! आपने मुझे बहुत कुछ दिया है। मैं आपकी इस कृपा के लिए हृदय से आभारी हूँ। आपका अनुग्रह मेरे ऊपर सदैव ऐसा ही बना रहे।’
साधु की इस प्रार्थना को सुनते ही मंदिर में बैठा एक नादान व्यक्ति हँसते हुए बोला, ‘अरे, तू तो एक फटी हुई पुरानी धोती में घूम रहा है। तेरे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी तू कहता है कि भगवान ने तुझे बहुत कुछ दिया है! मुझे तो लगता है तुझे इस बात का एहसास ही नहीं है कि यह दुनिया कहाँ पहुँच गई है और यहाँ कैसी-कैसी भोग-विलास की चीजें आ गई है। इसीलिए तू ये अजीबोगरीब बात कर रहा है।’ उस नादान युवा की बात सुन साधु जरा भी विचलित नहीं हुए और मुस्कुराते हुए बड़े शांत भाव से बोले, ‘बेटा अनजान मैं नहीं तुम हो। रही मेरी बात तो जब मैं इस दुनिया में आया था तो मेरे पास यह फटी धोती भी नहीं थी। भगवान ने मुझे जीवन दिया, इस धरती पर चलने के लिए पांव, खाने के लिए हाथ, सोचने-समझने के लिए मस्तिष्क, एक स्वस्थ शरीर, संतुष्ट मन और शांत जीवन आदि सब कुछ दिया। आज मैं जैसा भी हूँ और मेरे पास जो भी है, वह सब भगवान का दिया है। इसलिए मैं हमेशा उनके प्रति कृतज्ञ रहूँगा।’ साधु की गहरी बात और शांत और संतुष्ट भाव देख वह नादान युवा एकदम चुप हो गया और शायद उसे आज पहली बार एहसास हुआ कि असली धन भौतिक वस्त्रों में नहीं, बल्कि संतोष और कृतज्ञता में होता है!
वैसे दोस्तों, शायद इस कहानी को सुन अब आप भी पूर्व में कहीं मेरी इस बात से सहमत होंगे कि ‘हमें जीवन में असली सुख भौतिक वस्तुओं से नहीं अपितु अनुभव, संतोष और कृतज्ञता जैसे भावों से मिला है।’ तो आइए दोस्तों, आज से हम भौतिक लालसा आधारित जीवन जीने के स्थान पर संतोष और कृतज्ञता जैसे भावों पर आधारित जीवन जीना शुरू करते हैं और इस दुनिया को और ज़्यादा हसीन बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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