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संवेदनशीलता और करुणा बनाती है आपको महान…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Apr 15
  • 3 min read

Apr 15, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, जीवन को मेरी नजर में दो मुख्य दृष्टिकोणों के साथ देखा और जिया जा सकता है। पहला, जो केवल भौतिक संपत्ति को महत्व देता हो और दूसरा, जो संवेदनशीलता और करुणा को प्राथमिकता देता है। आइए, आज हम एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं कि एक अच्छा जीवन जीने के लिए कौन सा दृष्टिकोण बेहतर है।


अपने पूर्व किए वादे के अनुसार दो दोस्त काफ़ी लंबे अरसे के बाद आज एक उद्यान में मिलने वाले थे। इन दोनों दोस्तों में से एक अब बहुत अमीर बन चुका था। उसने इस मुलाक़ात के लिए विदेश से मंगवाया एक बहुत महंगा सूट पहना, मित्र को देने के लिए एक महंगा उपहार लिया और फिर अपनी लिमोज़िन लेकर दोस्त से मिलने के लिए निकला। वहीं दूसरी ओर उसका दोस्त बड़ा साधारण जीवन व्यतीत कर रहा था। वह तो बस इसी बात से खुश था कि सालों बाद उसे अपने दोस्त से मिलने का मौक़ा मिल रहा है। इसलिए वह तो बिना कुछ पूर्व तैयारी के एक घंटा पहले ही तय उद्यान में पहुँच गया।


सामान्य मुलाक़ात के बाद दोनों उद्यान में लगी एक बेंच पर बैठ कर बात करने लगे। कुछ देर की सामान्य बातचीत के बाद अमीर दोस्त ने गर्व से अपनी सफलता का जिक्र किया और अपने गरीब दोस्त की तुलना खुद से करने लगा। ग़रीब दोस्त उसकी तुलना भरी बातों को नजरंदाज करके पुरानी यादों पर चर्चा कर रहा था। कुछ देर पश्चात अमीर दोस्त एकदम से बोला, “हम दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई की, साथ बड़े हुए, लेकिन देखो, आज मैं कहाँ पहुँच गया और तुम अब भी वहीं के वहीं हो।”


ग़रीब दोस्त ने उसके इस तंज को नजरअंदाज करा और उद्यान के किनारे लगी झाड़ियों की ओर देखने लगा। अमीर दोस्त उसे ऐसे करता देख उत्सुकता के साथ बोला, “क्या हुआ मित्र?” ग़रीब दोस्त मुस्कुराता हुआ बोला, “कुछ नहीं! क्या तुम्हें भी मेरी तरह कोई आवाज सुनाई दी?” अमीर दोस्त ओह कहते हुए पीछे मुड़ा और नीचे झुक कर बेंच के किनारे पड़े सिक्के को उठाते हुए बोला, “ओह! यह तो मेरी जेब से गिरे पाँच रुपये के सिक्के की आवाज़ थी।”


ग़रीब मित्र उसकी बात को नजरंदाज करता हुआ उद्यान के किनारे लगी झाड़ी की ओर बढ़ा, जहाँ उसे एक तितली नजर आई जिसका एक पंख झाड़ी के काँटों में फँस गया था। जिसकी वजह से वह अपने एक पंख को जोर-जोर से फड़फड़ा रही थी। उसने बहुत ध्यान और कोमलता के साथ, बिना तितली को नुकसान पहुँचाये, काँटों से बाहर निकाला और आजाद कर दिया। अमीर दोस्त उसे ऐसा करता देख हैरानी के साथ बोला, “तुम्हें इस तितली की आवाज़ कैसे सुनाई दी?”


ग़रीब दोस्त मुस्कुराते हुए बोला, “मित्र, शायद हमारी सोच के अंतर की वजह से। तुम्हें आजकल सिर्फ़ धन की आवाज़ सुनाई देती है; तुम्हारी नज़रें अब सिर्फ़ धन को देखती हैं, जबकि मुझे आज भी पीड़ा में पड़े किसी भी जीव की आवाज महसूस होती है। याद रखना तुम्हारी दौलत तुम्हें भौतिक दुनिया में तो सफल बना सकती है, महान नहीं। लेकिन सेवा और संवेदनशीलता इंसान को वास्तव में महान बनाती है।


बात तो दोस्तों, ग़रीब मित्र की सोलह आने सच थी। वैसे इस कहानी से हम और भी बहुत सारी सीख ले सकते हैं। जैसे-

1) सफलता का मापदंड केवल धन नहीं होता।

2) संवेदनशीलता और करुणा व्यक्ति के वास्तविक मूल्य को दर्शाती हैं।

3) धन महत्वपूर्ण है, लेकिन दूसरों की मदद करने की भावना उससे भी अधिक मूल्यवान होती है।

4) सच्ची समृद्धि केवल बैंक बैलेंस में नहीं, बल्कि दूसरों की पीड़ा को समझने और दूर करने की क्षमता में होती है।

5) मित्र दौलत वाला नहीं करुणा और संवेदनशीलता वाला होना चाहिए।


अंत में दोस्तों, इस कहानी के सार के रूप में, मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि जीवन में केवल भौतिक उपलब्धियों को ही सफलता का पैमाना न मानें। एक संवेदनशील हृदय और दूसरों की सहायता करने की भावना ही व्यक्ति को सच्चे अर्थों में अमीर बनाती है। इसलिए, धन कमाने के साथ-साथ दयालुता और सेवा का भाव भी विकसित करें, क्योंकि यही हमें एक बेहतर इंसान बनाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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