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संवेदनशील दिल दुनिया को बेहतर बना सकता है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jul 2, 2024
  • 3 min read

July 2, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

यक़ीन मानियेगा दोस्तों, इंसान को अगर उद्देश्य मिल जाए तो जीवन बदलने में वक़्त नहीं लगता है। अपनी बात को मैं आपको एक ऐसे शख़्स की कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ, जिसने अपने जुनून का पीछा करते हुए कई लोगों के मुश्किल समय को, आसान बना दिया। बात आज से लगभग 37 वर्ष पहले की है, एक 20 वर्षीय युवा को किसी आवश्यक कार्य से मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के समीप जाना पड़ा। अस्पताल के समीप एक फुटपाथ पर खड़े-खड़े उसका ध्यान अचानक ही अस्पताल के मुख्य दरवाज़े की ओर गया जहाँ कैंसर के गंभीर मरीज़ों के साथ उनके परिजन खड़े थे। यह युवा उन सभी लोगों को बड़े ध्यान से देख रहा था और उनके चेहरे के दर्द, परेशानी और विवशता को महसूस कर पा रहा था।


कुछ ही पलों में इस दृश्य ने उस युवा को परेशान करना शुरू कर दिया। उसने देखा कि वहाँ मौजूद ज़्यादातर रोगी दूरदराज़ के इलाक़ों से आए हुए थे। जिन्हें यह भी नहीं पता था कि इलाज के लिए वे क्या करें; किससे और कहाँ मिलें? उन लोगों में से कई को देखकर उसे इस बात का भी एहसास हो रहा था कि इन लोगों के पास दवा और भोजन के भी पैसे नहीं होंगे। मुश्किल, परेशानी, दुख और दर्द से भरा यह दृश्य देख वह 20 साल का युवा भारी मन से घर लौट आया। उस रात उस युवा की आँखों में नींद नहीं थी। वह इस विषय में जितना ज़्यादा सोच रहा था, उतना ही इन लोगों की मदद करने का उसका विचार मज़बूत होता जा रहा था। सुबह होते-होते इस युवा ने ठान लिया था कि मैं इन दुखी और परेशान लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए कुछ ना कुछ करूँगा।


लगातार इस विषय में सोचने के कारण अंततः उस युवा को एक उपाय सूझा। जिसे हक़ीक़त का जामा पहनाने के लिए उसने अपने होटल को किसी और को किराए पर देकर कुछ पैसों का इंतज़ाम किया और उस पैसे से टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर कैंसर के रोगियों और उनके परिजनों के लिए निःशुल्क भोजन उपलब्ध करवाना शुरू कर दिया। इस धर्मार्थ याने चैरिटी के कार्य से शुरुआत में लगभग पचास लोगों को लाभ मिलने लगा।


जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था, वैसे-वैसे इसका दायरा भी बढ़ता जा रहा था। गुजरते वक़्त के साथ मरीज़ों और उनके परिजनों की संख्या बढ़ने पर, मदद के लिए हाथ भी बढ़ने लगे। आज यह संस्था सर्दी, गर्मी, बरसात याने हर मौसम में बिना रुके लगातार अपना कार्य कर रही है और समय के साथ अपने मदद के हाथों को बढ़ाते जा रही है। जी हाँ दोस्तों, आज जीवन ज्योत नाम की यह संस्था 37 वर्ष पूर्ण कर चुकी है और आज मुंबई, कोलकाता, जलगाँव, सांगली जैसे स्थानों पर बारह सेंटर्स के माध्यम से अपनी सेवा दे रही है।


दोस्तों, अब आप निश्चित तौर पर उस विशाल व्यक्तित्व का नाम जानना चाह रहे होंगे जो सैंतीस वर्षों तक लगातार सेवा करने के बाद भी 57 वर्ष की आयु में बीस वर्ष के युवा जैसी ऊर्जा के साथ यह पुनीत कार्य कर रहा है। तो चलिए पहले मैं आपको बता दूँ कि उस देवतुल्य इंसान का नाम हरकचंद सावला है। आज सावला जी द्वारा स्थापित संस्था जीवन ज्योत 60 से अधिक प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। जिसमें एक मेडिसिन बैंक है, जो मरीज़ों को निःशुल्क दवा की आपूर्ति करता है। इस सेवा को तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट की स्वैच्छिक मदद से चलाया जा रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए खिलौना बैंक भी बनाया है।


दोस्तों, अब आप समझ ही गए होंगे कि मैंने शुरुआत में यह क्यों कहा था कि ‘इंसान को अगर उद्देश्य मिल जाए तो जीवन बदलने में वक़्त नहीं लगता है।’ साथियों अगर आपका लक्ष्य भी हरकचंद सावला जी जैसा ज़िंदगी को काटना नहीं, जीना है, तो आज नहीं, अभी से ही ख़ुद से पहले सेवा को प्राथमिकता दीजिए। यह दुनिया जैसी आपको मिली है, उससे बेहतर बनाइये।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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