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सकारात्मक दृष्टि से बनायें सकारात्मक सोच…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jun 8, 2023
  • 3 min read

June 9, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, हालाँकि सकारात्मक सोच, सकारात्मक नज़रिए आदि विषय पर मैं पूर्व में भी कई बार बात कर चुका हूँ। लेकिन यह विषय ही ऐसा है जिसपर जितनी बात की जाए, कम है। हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान एक सज्जन मुझसे मिले और बोले, ‘सर, काफ़ी लम्बे समय से आपके लेख पढ़ रहा हूँ। आप हमेशा सुख को मानसिक अवस्था बताते हैं, यह कैसे सम्भव है? इसी तरह आपके बताए अनुसार मैंने सकारात्मक रहने के लिए सकारात्मक सोच रखने का भी काफ़ी प्रयास करा, लेकिन कभी सफलता नहीं मिली।’


असल में दोस्तों, यह प्रश्न उन सज्जन ने पूछा ज़रूर था, पर मेरा मानना है कि यह हममें से ज़्यादातर लोगों की समस्या है और अगर यह ज़्यादातर लोगों की समस्या है, तो एक बात तो निश्चित है, इससे निजात पाना आसान नहीं होगा। जी हाँ, सकारात्मक रहना या नज़रिया रखना, हर हाल में सुखी और संतुष्ट रहने का सबसे आसान तरीक़ा है। लेकिन आसान तरीक़ा होने के बावजूद भी यह ज़्यादातर लोगों को मुश्किल इसलिए लगता है क्योंकि इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने के लिए हमें रोज़ाना एक निश्चित सूत्र को अपनाकर जीवन जीना पड़ता है। याने यह दैनिक जीवन में, रोज़ एक जैसी प्रैक्टिस माँगता है, जो ज़्यादातर लोग कर नहीं पाते हैं।


चलिए, आज एक नए तरीके से इस समस्या के समाधान को समझने का प्रयास करते हैं। असल में दोस्तों, सुख-दुःख, सकारात्मकता-नकारात्मकता एक मानसिक अवस्था है क्योंकि इनका लेना देना हमारे मन याने माइंड से होता है। अगर हम अपने मन को समझ जाएँ तो हम जैसे चाहें याने सकारात्मक या नकारात्मक अथवा सुखी या दुखी, रह सकते हैं। दोस्तों आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि हमारा मन, रोज़मर्रा के जीवन में मिलने वाले अनुभवों के संग्रह के अलावा कुछ और नहीं है। अगर आप रोज़मर्रा के जीवन में नकारात्मक अनुभवों को इकट्ठा करके रख रहे हैं, तो आप नकारात्मक रहेंगे और अगर आप सकारात्मक अनुभवों इकट्ठा करके रखेंगे, तो आप सकारात्मक रहेंगे।


ऐसा ही कुछ सुख और दुःख के साथ भी होता है। यदि आप केवल दुःख पर ध्यान लगाएँगे तो जीवन में दुःख बढ़ जाएँगे और अगर सुख पर ध्यान लगाएँगे तो सुखी हो जाएँगे। इसीलिए ‘जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी’, को मैं जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र शाश्वत नियम मानता हूँ। यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे, जिस पेड़ या पौधे की आप देखभाल करते हैं, वही फलता-फूलता है और दूसरा धीरे-धीरे मुरझा जाता है। इसका अर्थ हुआ दोस्तों जहां आप ध्यान देंगे वही सक्रिय हो जाएगा। वैसे, यही बात अब तो विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है। विज्ञान के अनुसार, ‘आप जीवन में जिस वस्तु की उपेक्षा करने लगोगे वह वस्तु धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो देगी। फिर भले ही वह प्रेम हो या करुणा अथवा जीवन का उल्लास हो या फिर सुख।


इसीलिए कहते हैं सकारात्मक सोच और नज़रिया; जीवन में सुख लेकर आता है और नकारात्मक सोच और नज़रिया; दुःख और विषाद। तो आइए दोस्तों, आज से हम खुद को एक चुनौती के लिए तैयार करते हैं कि हम रोज़मर्रा के जीवन में तमाम नकारात्मक लोगों से मिलने वाले नकारात्मक अनुभवों के बाद भी अपने मन तक सिर्फ़ और सिर्फ़ सकारात्मक अनुभवों को ही जाने देंगे क्योंकि हम जानते हैं कि सकारात्मक दृष्टि से ही सकारात्मक सोच और नज़रिया बनाया जा सकता है। यही नज़रिया हमें दुःख और विषाद जैसे अनावश्यक काल्पनिक शत्रुओं से बचा सकता है; उनका समूल नाश कर सकता है। इसके लिए हमें बस एक बात को स्वीकारना होगा, ‘जीवन में आजतक जो हुआ है, वह हमारे अच्छे के लिए हुआ है। आज हमारे जीवन में जो भी हो रहा है, वह भी अच्छे के लिए ही हो रहा है और आगे जो भी होगा, अच्छे के लिए ही होगा।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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