Oct 27, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, हर माता-पिता यही चाहते हैं कि उनके बच्चे आत्मविश्वासी, सहानुभूतिशील और जिम्मेदार बनें और इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए वे बच्चों को अच्छे संस्कार और अच्छी शिक्षा देने का प्रयास करते हैं। लेकिन अक्सर बच्चों की सकारात्मक परवरिश की जानकारी ना होने के कारण वे ज़िंदगी के सबसे सुकून और संतोष दायक कार्य को अपने लिए चुनौतीपूर्ण बना लेते हैं। लेकिन अगर हम बच्चों की परवरिश शैली में जरा सा परिवर्तन कर दें, तो हम इस परेशानी से बच सकते हैं।
जी हाँ दोस्तों, जैसा कि हमने पिछले लेख में जाना था कि ‘सकारात्मक परवरिश’ याने बच्चों को प्रेम, दया और सहानुभूति के साथ मार्गदर्शन देते हुए जीवन में आगे बढ़ाना, हमें ना सिर्फ़ बच्चों के साथ विश्वास आधारित मजबूत रिश्ता बनाने का मौक़ा देता है, बल्कि पैरेंटिंग के हमारे अनुभव को सुखद भी बनाता है। इस शैली में हम गलती करने पर बच्चों को दंड देने के स्थान पर, उनकी भावनाओं, ज़रूरतों और व्यवहार को समझने का प्रयास करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि वे जीवन में जिम्मेदारी के साथ उचित निर्णय लेते हुए आगे बढ़ सकें और अच्छी आदतें अपना सकें, जिससे उनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास हो सके। इतना ही नहीं दोस्तों, पिछले लेख में हमने पॉजिटिव पैरेंटिंग याने सकारात्मक परवरिश के पाँच प्रमुख सिद्धांतों को भी समझा था। आइये, आगे बढ़ने से पहले हम उन्हें संक्षेप में दोहरा लेते हैं।
पहला सिद्धांत - गलती करने पर बच्चों को डराने, मारने या डाँटने के स्थान पर उनकी भावना और सोच को सहानुभूति और समझ के साथ डील करें।
दूसरा सिद्धांत - परिणाम के स्थान पर बच्चों के प्रयास; उसकी मेहनत की सराहना करें। अगर उसने कोई गलती करी है तो उसकी आलोचना करने के स्थान पर, उसकी छोटी से छोटी सफलता को सेलिब्रेट करें।
तीसरा सिद्धांत - बच्चों को उनकी सीमाएँ और रोजमर्रा के जीवन जीने के नियम स्पष्ट, तर्क संगत और स्नेहपूर्ण तरीक़े से इस तरह समझाएँ कि वे उनके पीछे का कारण समझ सकें।
चौथा सिद्धांत - बच्चों को स्वतंत्र रूप से सोचने और समस्याओं को स्वयं हल करने के लिए प्रेरित करें। ऐसा करना उनका आत्मविश्वास और चुनौतियों का सामना करने की उनकी क्षमता का विकास करता है। इतना ही नहीं, यह बच्चों में विश्वास भी जगाता है कि यदि उन्हें समस्या का हल निकालते वक़्त आपकी आवश्यकता महसूस हुई तो वे आपसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
पाँचवाँ सिद्धांत - बच्चे कही हुई बातों के स्थान पर आपको कार्य करता देख अधिक सीखते हैं। इसलिए उनके समक्ष वैसा ही व्यवहार करें जो आप उनको सिखाना चाहते हैं।
आइये दोस्तों, अब हम सकारात्मक परवरिश से मिलने वाले ५ लाभों पर चर्चा कर लेते हैं।
पहला लाभ - बच्चों के साथ मजबूत रिश्ता
सकारात्मक पालन-पोषण माता-पिता और बच्चे के बीच गहरे भावनात्मक संबंध को बढ़ावा देता है। जब बच्चे महसूस करते हैं कि उन्हें समझा और समर्थन किया जा रहा है, तो वे अपने माता-पिता पर भरोसा करते हैं और खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं।
दूसरा लाभ - अच्छा व्यवहार
बार-बार कहे सकारात्मक कथन और प्रोत्साहन बच्चों में अच्छी आदतों के साथ सकारात्मक व्यवहार को विकसित करने में मदद करता है। बच्चों को नियम पालन करने के लिए डाँटने या मजबूर करने के स्थान पर उन्हें नियम बनाने के पीछे की वजह समझाना उन्हें अधिक अनुशासित बनाता है और वे हर परिस्थिति में सकारात्मक नज़रिया रखते हुए अच्छा व्यवहार करते हैं।
तीसरा लाभ - उच्च आत्म-सम्मान
सकारात्मक पालन-पोषण में बच्चों के प्रयासों और ताकतों को नियमित रूप से पहचाना जाता है, जिससे उनका आत्म-सम्मान बढ़ता है। यह उन्हें अपने कौशल पर विश्वास करने और असफलता से डरने की बजाय उससे सीखने के लिए प्रेरित करता है।
चौथा लाभ - बेहतर भावनात्मक संतुलन
सहानुभूति के साथ बच्चों को उनकी भावनाओं को समझने में मदद करके माता-पिता उन्हें गुस्सा, निराशा या उदासी जैसी भावनाओं को स्वस्थ तरीकों से प्रबंधित करना सिखाते हैं। यह भावनात्मक बुद्धिमत्ता उनके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
पाँचवाँ लाभ - स्वतंत्रता और जिम्मेदारी बढ़ाना
बच्चों को समस्या के समाधान को खोजने के लिए प्रोत्साहित करना और उनकी उम्र के अनुसार ज़िम्मेदारियाँ सौंपना उन्हें स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाता है। इससे वे आलोचनात्मक रूप से सोचने, निर्णय लेने और अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी लेने में सक्षम बनते हैं।
दोस्तों, अंत में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि सकारात्मक परवरिश के माध्यम से हम बच्चों के साथ आपसी समझ आधारित विश्वास पूर्ण रिश्ता बना सकते हैं। जिसमें प्रोत्साहन और सहानुभूति के साथ माता-पिता अपने बच्चों को आत्मविश्वासी, जिम्मेदार और भावनात्मक रूप से बुद्धिमान इंसान के रूप में विकसित करते हैं। सकारात्मक पालन-पोषण की यात्रा में धैर्य की आवश्यकता होती है, लेकिन इसके फलस्वरूप माता-पिता और बच्चे के बीच मजबूत बंधन, बेहतर व्यवहार और खुशहाल परिवार का वातावरण बनता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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