June 22, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरी नज़र में धर्म हमें जीवन जीने का सही मार्ग सिखाता है। लेकिन अक्सर कुछ लोग मेरी इस बात को अपनी आस्थाओं और मान्यताओं के आधार पर तोलने लगते हैं। कई बार कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘धर्म, ढकोसले से अधिक कुछ नहीं है। हम इस पर क़तई विश्वास नहीं करते है।’ ऐसे नास्तिक प्रवृति के लोगों से मैं अक्सर कहता हूँ कि धर्म को नहीं मानते हो कोई बात नहीं, लेकिन उसमें बताई बातों याने कथाओं को कहानी मान कर सुन लो और उसमें से सीख लेकर अपने जीवन को बेहतर बना लो। यही धर्म का मूल उद्देश्य भी है।
जी हाँ दोस्तों, अगर नास्तिकता के नज़रिए से भी देखा जाए तो हमारे पूर्वजों ने धर्म के नाम पर डराकर भी हमको सही राह दिखाने का ही प्रयास करा होगा। इस आधार पर देखा जाए, तो आस्तिक या नास्तिक होने का संबंध जीवन को बेहतर बनाने के लक्ष्य से, बिलकुल भी टकरा नहीं सकता है। अपनी बात को मैं आपको भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में से एक ‘नवगुंजर’ अवतार से संबंधित एक प्रचलित किवदंती से समझाने का प्रयास करता हूँ। हालाँकि सामान्य तौर पर भगवान विष्णु के इस अवतार का ज़िक्र सामान्य धर्मग्रन्थों में नहीं मिलता है। लेकिन उड़ीसा की लोक कथाओं और १५वीं शताब्दी में उड़ीसा के आदि कवि माने जाने वाले श्री सरला दास द्वारा रचित महाभारत में भगवान विष्णु के इस विचित्र अवतार का वर्णन मिलता है। कुछ लोग इस अवतार को भगवान श्री कृष्ण का अवतार भी मानते हैं।
श्री सरला दास जी ने महाभारत के अतिरिक्त उड़िया बिलंका रामायण की भी रचना की है। इनके द्वारा लिखित महाभारत का मूलस्वरूप तो महर्षि व्यास की लिखी महाभारत का ही है, किन्तु इसमें इन्होंने अपनी अपूर्व मौलिकता का परिचय देते हुए कुछ बातों को अपनी ओर से जोड़ा है, जिसका वर्णन मूल महाभारत में नहीं मिलता है। नवगुंजर अवतार भी उन्हीं में से एक है। इस अवतार का नाम ‘नवगुंजर’ इसके ९ प्राणियों के मिश्रण होने के कारण पड़ा। इस प्राणी का सर मुर्गे का था; गर्दन, मयूर की; कूबड़, ऋषभ का ; कमर, शेर की; पिछला बाँया पैर, बाघ का; पिछला दायां पैर, अश्व का; अगला बाँया पैर, गज का;
अगला दायां पैर: मनुष्य का और पूँछ, सर्प की थी।
सरला दास जी रचित महाभारत में बताया गया है कि अर्जुन ने अपने निर्वासन के दौरान मणिभद्र की पहाड़ी पर तपस्या करते वक़्त इस अद्भुत जीव के दर्शन किए थे। इस जीव का पूरा शरीर नौ भिन्न पशुओं का मिश्रण था और इसका आकर बहुत बड़ा था। इस प्राणी को नौ अलग-अलग दिशाओं से देखने पर मनुष्य को अलग-अलग जीव दृष्टिगोचर होते थे, जबकि हक़ीक़त में वो एक ही प्राणी था। जब अर्जुन ने इन्हें देखा तो वे घबरा गए और उन्होंने अपनी रक्षा के लिए गांडीव धारण कर उस जीव पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। तभी उनके मन में विचार आया कि ऐसा कोई जीव तो इस पृथ्वी का हो ही नहीं सकता। विचार आते ही उन्होंने उस जीव को ध्यान से देखा तब उन्हें उस प्राणी के हाथों में कमल का पुष्प दिखाई दिया। यह देखते ही वे समझ गये कि हो ना हो यह भगवान विष्णु का ही अवतार है। सत्य से परिचित होते ही श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और बताया कि विश्वरूप की ही भाँति ये भी इनका एक रूप है। अपने इस अवतार से वे यह समझाना चाहते थे कि इतनी विविधताओं से भरे जीवों को मिला कर भी एक सम्पूर्ण मनुष्य की रचना हो सकती है।
भगवान के इस नवगुंजर अवतार का महत्व अद्वैत साहित्य में बहुत है। इस अद्भुत अवतार की कलाकृति पुरी जगन्नाथ मंदिर में स्थापित है। इसके अतिरिक्त जगन्नाथ मंदिर के नील चक्र पर ८ नवगुंजरों की आकृति उकेरी गयी है, जिसे देखने दूर-दूर से लोग वहाँ आते हैं। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में खेले जाने वाले एक प्राचीन खेल ‘गंजपा’ में भी नवगुंजर एवं अर्जुन एक पात्र के रूप में उपस्थित होते हैं। ये श्रीकृष्ण के विष रूप का ही एक रूप माना जाता है।
दोस्तों, अब अगर इस प्रचलित कथा से मिलने वाली सीखों पर विचार किया जाए, तो अर्जुन द्वारा डर कर गांडीव उठाना और फिर ना चलाना हमें सिखाता है कि परिस्थिति कितनी भी विपरीत क्यों ना हो; आपको कितना भी डर क्यों ना लग रहा हो, बिना सोचे-समझे, अच्छे से विचारे प्रतिक्रिया ना दो। अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो सकता है। इसी तरह ९ दिशाओं से अलग-अलग प्राणी के दृष्टिगोचर होना हमें सिखाता है कि अगर किसी भी इंसान को अलग-अलग लोगों द्वारा देखा या परखा जाएगा तो वह सभी को भिन्न नज़र आएगा। इसकी मुख्य वजह दृष्टिकोण का अलग होना है। साधारण भाषा में कहा जाये तो इस अवतार के द्वारा भगवान ने हमें ‘एकम सत् विप्रा बहुधा वदन्ति’, का सूत्र दिया। अर्थात्, सत्य एक ही होता है, जिसे ज्ञानी मनुष्य अलग-अलग नामों से बुलाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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