Jan 14, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
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दोस्तों, हर इंसान में सफल होने की चाह और लोगों से प्रशंसा की अपेक्षा स्वाभाविक रूप से होती है। लेकिन सफलता क्या है? इसे पाने के लिए अपनी कमियों को दूर करना होगा या फिर अपनी अच्छाइयों पर फ़ोकस करना होगा? या फिर उसके लिए दुनिया को देखने का एक अलग नज़रिया होना आवश्यक है? अथवा सारा खेल क़िस्मत का है… सफलता के लिए करें क्या?जैसे ढेरों विचार उसे उलझन में डाल देते हैं और वह अक्सर ऐसी तमाम उलझनों की वजह से अपनी राह मुश्किल बना लेता है।
सफलता के विषय में सबसे पहली बात तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि इसकी परिभाषा हर इंसान के लिए अलग-अलग होती है। अर्थात् हम किसी अन्य सफल व्यक्ति को देख उसकी नक़ल कर सफल हो जाएँ, थोड़ा मुश्किल ही है। कुछ लोगों के लिए भौतिक सुख तो किसी के लिए यह किसी विशेष पद को पाना तो फिर किसी के लिए यह सिर्फ़ मन की एक अवस्था हो सकती है, तो कोई इसे सामाजिक प्रतिष्ठा अथवा शोहरत से भी जोड़ कर देख सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो इसे पूर्णता के साथ परिभाषित करना ही मुश्किल है इसीलिए यह कभी भी पूर्ण नहीं होती है। इसे हम सापेक्षता के सिद्धांत के साथ जोड़ कर देख सकते हैं। इसीलिए दोस्तों मैं इसे अंतिम मंज़िल नहीं अपितु एक अल्पविराम का स्थान मानता हूँ।
इसीलिए दोस्तों किसी मंज़िल को पाकर खुद को सफल मान संतुष्ट होना, मेरी नज़र में असम्भव ही है। यक़ीन मानिएगा लोगों के बीच रहने या उनके बीच लगातार काम करने के बाद भी मुझे आज तक तो एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला है जो अपनी सफलता से संतुष्ट हो। फिर चाहे वह अभिनेता हो, खिलाड़ी हो, बड़ा व्यवसायी हो, राजनीतिज्ञ हो या फिर कोई बड़े से बड़ा नामचीन व्यक्ति। मैंने हमेशा इन्हें प्रतिस्पर्धी माहौल में ही देखा है। शायद इसीलिए ज़्यादातर लोग इस दुनिया में दूसरों को सफल देख अपनी स्थिति का आनंद नहीं ले पाते हैं।
मैंने सफलता को हमेशा अपने उद्देश्य को पहचानकर, उसे पाने के लिए बेहतर करने और आगे बढ़ने का संदेश या रास्ता माना है क्यूँकि यह सोच आपको अपनी कमियों को पहचानने, अपनी खूबियों को और बेहतर बनाने, चुनौतियों को स्वीकार कर, विपरीत परिस्थितियों में भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रेरित करती है। इसीलिए मैं युवाओं को हमेशा सफलता के मायने पूछने पर अपने जीवन का उद्देश्य तलाशने के लिए कहता हूँ। अगर आप अपने जीवन का उद्देश्य पहचान जाएँगे या उसकी थोड़ी धुंधली तस्वीर भी देख पाएँगे तो उसी के अनुसार अपने जीवन को दिशा दे पाएँगे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आप खुद को पहचानकर उसके अनुसार अपना कैरियर बनाने की दिशा में आगे बढ़ पाते हैं और खुद को धोखा देने से बच जाते हैं।
ऐसी स्थिति में आप फ़ालतू की होड़ याने एक-दूसरे से आगे निकलने के अनावश्यक दबाव से बच जाते हैं। बिना उद्देश्य के साथियों मैंने कई अच्छी प्रतिभाओं को बीच भंवर में भटकते हुए देखा है। मेरे साथ ट्रेनर, मोटिवेशनल स्पीकर बनने का प्रयास कई लोगों ने किया था, उन्होंने मेरे साथ ही मेरे गुरु से ट्रेनिंग भी ली थी। लेकिन वे खुद को भूलकर दूसरों के साथ स्पर्धा में लग गए। उनमें में से कुछ लोगों को अवसर भी मिला था, लेकिन वे उसे भुनाने में नाकामयाब रहे। ऐसे लोग अक्सर अपनी कमियों को भी नहीं स्वीकार पाते हैं और साथ ही किसी अन्य को अपने से बेहतर नहीं मान पाते हैं। वे तो बस उनसे रेस कर, उनकी नक़ल कर उनसे आगे निकालना चाहते हैं और अगर ऐसे में अगर उन्हें असफलता हाथ लगती है तो वे खुद को दोषी मानने के स्थान पर दूसरों की सफलताओं को षड्यंत्रों, सेटिंग आदि का परिणाम मान खुद को धोखा देते हैं। देखा जाए दोस्तों तो ऐसे लोग हक़ीक़त में खुद के प्रति ही ईमानदार नहीं रहते हैं।
दोस्तों, उपरोक्त आधार और अपने अनुभव के आधार पर अंत में मैं सिर्फ़ इतना ही कहना चाहूँगा कि सफलता कुछ और नहीं बल्कि संपूर्णता की एक भावना है। यह एक ऐसी मृग मरीचिका है, जिसका हम पीछा करते हैं तो यह ग़ायब हो जाती है क्यूँकि पीछा करते समय हम खुद की जगह दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं और अपना वक्त और ऊर्जा ग़लत जगह बर्बाद करते हैं। इसलिए दोस्तों अगर सही मायने में सफल होना चाहते हो तो खुद को पहचानो और फिर खुद के साथ प्रतिस्पर्धा करो, खुद को रोज़ खुद से बेहतर बनाओ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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