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सफलता के लिए पहचानें समय का मूल्य…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 7, 2024
  • 3 min read

May 7, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…


दोस्तों, अच्छे साहित्य को पढ़ना आपको अनावश्यक चिंता, परेशानी, जीवन की अनिश्चितता आदि से बचा लेता है। उदाहरण के लिए प्रसिद्ध रूसी साहित्यकार टालस्टाय की लिखित कहानी ‘तीन प्रश्न’ पढ़ने के बाद मुझे समय की क़ीमत का एहसास हुआ था। चलिए, आज उसी कहानी से मैं आपको समय का मूल्य समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कई साल पुरानी है एक राजा के मन में अक्सर तीन प्रश्न उठा करते थे और वो हर समय उसके उत्तर तलाशने का प्रयास किया करता था। एक बार उसने अपने मंत्रियों और सभासदों से इस बारे में विचार विमर्श करने का निर्णय लिया और उनके सम्मुख तीनों प्रश्न रखे-


1. सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य क्या होता है?

2. परामर्श के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन होता है?

3. किसी भी निश्चित कार्य को करने का महत्त्वपूर्ण समय कौन सा होता है?


लेकिन कोई भी मंत्री या सभासद उन्हें इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया। लेकिन इस सभा में राजा को एक ऐसे संन्यासी के बारे में पता चला जो उनकी इस जिज्ञासा का समाधान कर सकते थे। राजा ने उनसे मिलने का निर्णय लिया और भेष बदलकर सुदूर जंगल में उनकी कुटिया की ओर चल दिये। कुटिया से कुछ दूरी पर उन्होंने अपने सैनिकों को रुकने के लिए कहा और स्वयं अकेले ही संन्यासी से मिलने के लिये चल दिए।


थोड़ा आगे जाने पर राजा ने देखा कि संन्यासी अपने खेत में कुदाली लेकर काम कर रहे थे। राजा ने बीच में टोकने के स्थान पर इंतज़ार करने का निर्णय लिया। कुछ देर बाद संन्यासी की नज़र राजा पर पड़ी, तो उन्होंने राजा से आने का कारण पूछा, तब राजा ने संन्यासी से अपने तीनों प्रश्न पूछ लिए। सन्यासी ने राजा की अपेक्षा के विपरीत प्रश्नों का उत्तर देने के बजाए इशारे से कुदाली लाने को और फिर खेत जोतने को कहा। अब राजा भी कुदाल लेकर संन्यासी के साथ खेत जोत रहा था।


खेत में इसी तरह काम करते-करते शाम हो गई। इतने में ही कहीं से खून में लथपथ एक घायल व्यक्ति जिसके पेट में से खून की धार बह रही थी, वहाँ आया और अचेत होकर गिर पड़ा। राजा ने संन्यासी के साथ मिलकर तुरंत उसकी मरहम-पट्टी करी और उसे व्यवस्थित एक स्थान पर लेटा दिया। दर्द से राहत मिलते ही वह आगंतुक सो गया। सुबह जब उस आगंतुक की नींद खुली तो उसने राजा का धन्यवाद किया और क्षमायाचना करने लगा। यह देख राजा एकदम आश्चर्य में पड़ गया और उससे विस्तार में बताने का निवेदन करने लगा। आगंतुक अपना परिचय देते हुए राजा से बोला, ‘राजन कुछ देर पहले तक मैं आपको अपना घोर शत्रु मानता था क्योंकि आपने मेरे भाई को फाँसी की सजा दी थी। इसीलिए बदले का अवसर ढूँढते-ढूँढते में यहाँ तक आ गया था। यहाँ झाड़ियों में छुपकर मैं आपको मारने का अवसर खोज ही रहा था कि आपके गुप्तचरों ने मुझे पहचान लिया और सैनिकों से मुझ पर हमला करवा दिया। लेकिन उसके बाद भी आपने अपने शत्रु के प्राणों की रक्षा करी। परिणामतः मेरे मन का द्वेष समाप्त हो गया है। अब मैं आपके चरणों का सेवक बन गया हूँ। आप चाहे दण्ड दें अथवा मुझे क्षमादान दें, यह आपकी इच्छा।’ घायल की बात सुन राजा स्तब्ध था। वह मन ही मन इस अप्रत्याशित ईश्वरीय सहयोग के लिए प्रभु का धन्यवाद करने लगा। राजा को देख संन्यासी मुस्कुराये और बोले, ‘राजन, क्या अभी भी आपको अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले?’


संन्यासी की बात सुन राजा दुविधा में थे। वे कुछ कहते उसके पहले ही संन्यासी ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘राजन आपके पहले प्रश्न याने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य क्या होता है?’ का उत्तर है, ‘जो कार्य हमारे सामने होता है, वही सबसे महत्वपूर्ण होता है। जैसे, मेरे द्वारा मदद माँगने पर आपने सहानुभूति वश मेरी खेत जोतने में मदद करी। अगर आप यह सहानुभूति भरा व्यवहार ना करते तो आपके जीवन की रक्षा ना हो पाती। आपका दूसरा प्रश्न था कि ‘परामर्श के लिए कौन व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है?’ इसका उत्तर है, जो व्यक्ति आपके पास उपस्थित होता है, उसी से परामर्श मायने रखता है। जैसे, आपने अपने शत्रु, याने उस घायल व्यक्ति की सहायता कर उसके प्राण बचाए। परिणाम स्वरूप आपका शत्रु भी आपका मित्र बन गया। अब बचा आपका तीसरा और अंतिम प्रश्न कि ‘किसी भी निश्चित कार्य को करने का महत्त्वपूर्ण समय कौन सा होता है?’ तो मैं कहूँगा ‘अभी!’


दोस्तों, महान और मशहूर रूसी साहित्यकार टालस्टॉय की यह कहानी हमें सावधान करती है कि वर्तमान के महत्व को कभी भी भूलना नहीं चाहिए। भविष्य की चिंता में यदि वर्तमान बिगड़ गया तो हम हाथ ही मलते रह जाएँगे। इसलिए प्रस्तुत कार्य को पूर्ण मनोयोग से करना अथवा समय का सदुपयोग ही न केवल उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं की नींव होता है अपितु यही सर्वांगीण प्रगति का मूलमंत्र भी है!!!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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