Dec 21, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, रोज़मर्रा के जीवन में एक आम इंसान कई तरह के कार्यों को करता है। जैसे, व्यक्तिगत, पारिवारिक, व्यवसायिक, सामाजिक आदि। सामान्यतः मशीन किसी भी एक कार्य को सटीक तरह से करती है, जबकि इंसान एक साथ अलग-अलग क्षेत्रों के कार्यों को सहजता और गुणवत्ता के साथ आसानी से करता है। ऐसे में इन कार्यों को करते वक्त गलती होना स्वाभाविक है। यह ग़लतियाँ सामान्यतः हमें नुक़सान नहीं पहुँचाती हैं, बल्कि मेरा तो मानना है कि रोज़मर्रा के जीवन में की गई यही ग़लतियाँ हमें बेहतर बनाती है।
लेकिन जब हम इन ग़लतियों को करने के बाद स्वीकारने और सुधारने के स्थान पर इनका दोष दूसरों पर मढ़ने लगते हैं, तब हम अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती करते हैं। जी हाँ साथियों, ग़लतियाँ या त्रुटियाँ कोई भी हों, किसी की भी हों लेकिन उसका ज़िम्मेदार दूसरों को ठहराना या दूसरों को दोष देना, हमारा स्वभाव बन गया है। हम ठोकर खाकर गिरने पर पत्थर को, डूबने पर पानी को, जलने पर आग को और जीवन में कुछ बड़ा ना कर पाने पर भाग्य को दोष देते हैं।
साथियों अगर गहराई से इस स्थिति का आकलन कर देखेंगे तो आप पाएँगे कि ग़लतियाँ करने पर दूसरों को दोष देने के स्वभाव की वजह से हम दो बड़े नुक़सान कर लेते हैं। पहला, हम सिद्ध कर देते हैं कि हममें ग़लतियों को स्वीकार करने का सामर्थ्य नहीं है और दूसरा, हम स्वयं खुद में सुधार की सम्भावनाओं को अपने हाथों से नष्ट कर लेते हैं। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था स्वयं के जीवन में या कार्यशैली में दोष होने से ज़्यादा घातक या नुक़सानदेही, दूसरों को दोष देना है। ऐसा कहने की एक और मुख्य वजह है। ग़लतियाँ करने या कोई चूक होने पर दूसरों को दोष देने की प्रक्रिया में हम अपना क़ीमती समय बर्बाद करने के साथ-साथ हम खुद को छलते या धोखा देते हैं और अपनी क़िस्मत बनाने का मौक़ा चूक जाते हैं। यह स्थिति आपको समस्या से एक और नई समस्या की ओर बढ़ाती है।
अगर आप यही गलती अपने व्यवसायिक जीवन में कर रहे हैं तो याद रखिएगा आप कभी भी अच्छे लीडर नहीं बन पाएँगे क्यूँकि लीडर ना सिर्फ़ खुद के लिए बल्कि अपनी टीम के लिए भी ज़िम्मेदार होता है। वह लोगों पर दोष नहीं दे सकता है। अपनी असफलताओं, अपनी अक्षमताओं के लिए दूसरों को, भाग्य को या अवसर ना मिलने को दोष देना आपको कमजोर बनाता है। अगर आपका लक्ष्य खुद की असीमित क्षमताओं को खोजना, उन्हें पाना है तो आपको दोष देने की आदत से निजात पाना होगा और अपने अंदर ज़िम्मेदारी लेने की आदत को विकसित करना होगा। जब हम अपने जीवन की ज़िम्मेदारी खुद लेते हैं तभी जीवन में आगे बढ़ पाते हैं, बेहतर बन पाते हैं। याद रखिएगा दोस्तों, अंतिम परिणाम पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ता है कि दोष या गलती किसकी थी। प्रकृति की न्याय व्यवस्था में दोष या गलती किसकी थी का निर्णय आपके हिसाब से नहीं, बल्कि परमेश्वर के अपने तरीके से होता है।
आईए दोस्तों, आज से हर पल खुद को बेहतर बनाने के लिए अपना समय दूसरों की ग़लतियों को खोजने, उन्हें दोष देने या खुद को हमेशा सही ठहराने के स्थान पर, स्वयं को हक़ीक़त के धरातल पर पहचानने में लगाते हैं। जी हाँ साथियों, समय का सदुपयोग खुद की कमियों, खुद के दोषों को खोज कर उन्हें दूर करने या कुछ नया सीखने में लगाने पर ही हम बेहतर बन सकते हैं। यही भाव हमें दुर्भावनाओं, कुभावों से दूर रख आपसी सद्भाव विकसित कर सफल जीवन जीने में मदद करेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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