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सफलता - विश्वास, अभ्यास, धैर्य और अथक प्रयास का परिणाम

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 21, 2024
  • 3 min read

Mar 20, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। गुरुकुल में आज शिष्यों की शिक्षा का अंतिम दिन था। गुरु ने सभी शिष्यों को बाहर मैदान में एकत्र होने की आज्ञा दी। सभी शिष्य अगले कुछ ही मिनिटों में बाहर मैदान में एकत्र हो गए। गुरु ने उन सभी शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा, ‘शिष्यों, आज तुम्हारी शिक्षा का अंतिम दिन है। इसके बाद तुम सभी अपने-अपने घरों के लिए प्रस्थान करोगे। मैं चाहता हूँ कि इस आश्रम से जाने के पहले तुम मेरा एक अंतिम काम कर दो।’


गुरु के मुख से ‘अंतिम कार्य’ के विषय में सुनते ही सभी शिष्य एकदम से तैयार हो गए और गुरुजी से कार्य बताने के लिए निवेदन करने लगे। गुरुजी ने सभी शिष्यों को एक समान बांस की टोकरी दी और उनसे कहा, ‘तुम सभी समीप में बहने वाली नदी तक जाओ और इस टोकरी में पानी लाकर आश्रम के सभी पौधों में डाल दो।’ गुरु की बात सुन सभी शिष्य उलझन में पड़ गए और सोचने लगे कि गुरु जी ने यह कैसा अजीब सा काम दे दिया है। भला इस सैंकड़ों छेद वाली जालीदार टोकरी में कोई कैसे पानी भर कर ला सकता है? लेकिन गुरु की कही बात का विरोध तो कर नहीं सकते थे, इसलिए सभी शिष्य नदी की ओर चल दिए।


नदी पर पहुँच कर शिष्यों ने टोकरी में जल भरा और उसे ऊपर आश्रम ले जाने का प्रयास करने लगे, लेकिन उनमें से किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली। जैसे ही वे टोकरी में जल भरकर ऊपर लाते, सारा जल रास्ते में ही टोकरी के छिद्रों से बहकर बाहर निकल जाता। कुछ शिष्यों ने इस कार्य को असंभव मान कर छोड़ दिया और अपनी टोकरी को वही फेंक दिया। लेकिन अभी भी ५-१० शिष्य ऐसे थे जो यह देख विचलित नहीं हुए और वे कुछ और देर तक प्रयास करते रहे। लेकिन अंत में कोई सकारात्मक परिणाम ना निकलता देख उन्होंने भी हार मान ली।


अब अंत में सिर्फ़ तीन शिष्य बचे थे, जो अपने गुरु में पूर्ण आस्था और विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि गुरु कोई भी कार्य बिना वजह नहीं करा सकते हैं। इसलिए वे बार-बार टोकरी में भरकर पानी ऊपर लाने का प्रयास करते रहे और वहाँ मौजूद उनके कुछ सहपाठी उनका मजाक बनाते रहे, तो कुछ उन्हें समझाने का प्रयास करते रहे कि क्यों अपनी ऊर्जा बेकार के काम में बर्बाद कर रहे हो। लेकिन गुरु के प्रति अपनी आस्था और विश्वास के कारण इन शिष्यों ने दोनों ही समूह की बातों को नजरअंदाज करा और प्रयास करते रहे। लगभग एक घंटे बाद उन तीनों दोस्तों ने महसूस किया कि अब थोड़ा पानी टोकरी में रुकने लगा है। इससे उन तीनों शिष्यों का मनोबल और बढ़ गया और उन्होंने और ज़्यादा जोश के साथ प्रयास करना शुरू कर दिया।


लगभग २ घंटे पूरे होते-होते तीनों शिष्यों ने महसूस किया कि टोकरी में पानी भरने पर अब वह नीचे नहीं गिर रहा है। शिष्यों ने क्यारियों में पानी देने के बाद ध्यान से देखा तो तो उन्हें एहसास हुआ कि पानी में लगातार भीगे रहने की वजह से टोकरी में बंधे बांस फूलकर आपस में चिपक गए थे, जिसके कारण टोकरी के सभी छिद्र लगभग बंद होगे थे। इसके पश्चात तीनों दोस्तों ने गुरु की आज्ञानुसार आश्रम के सभी पौधों को पानी दिया।


शिष्यों द्वारा कार्य पूर्ण करने के पश्चात गुरुजी ने सभी शिष्यों को एक बार फिर शिक्षा स्थल पर एकत्रित होने का आदेश दिया और उन सभी को समझाया कि किसी भी कार्य को शुरुआती असफलता के आधार पर असंभव नहीं मानना चाहिए। बात तो दोस्तों गुरुजी की एकदम सरल और सटीक थी। अगर सभी शिष्य गुरु की बातों को पूर्ण आस्था और समर्पण के साथ मानते तो उनके लिए लक्ष्य को पाना और आसान हो जाता। इसीलिए दोस्तों सफलता को विश्वास, अभ्यास, धैर्य और अथक प्रयास का परिणाम माना जाता है। तो आईए दोस्तों, लक्ष्यों को पाने के लिए हम आज से ही इस साधारण से सूत्र को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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