Oct 12, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा कुछ लोग बेहतरीन टीम और अपने कार्य में माहिर होने के बाद भी अपने व्यवसायिक जीवन में उतनी सफलता नहीं पा पाते हैं, जिसके वो हक़दार होते हैं। इस स्थिति को आप अपने आस-पास मौजूद उन व्यवसायियों को देख कर लगा सकते हैं, जिनके पास व्यवसायिक सफलता के लिए आवश्यक योग्यता, संसाधन, टीम, कौशल आदि सब कुछ होता है, लेकिन फिर भी वे अपने व्यवसाय को अगले पायदान पर नहीं ले जा पाते हैं। उनकी इस असफलता के पीछे मुझे मुख्य रूप से तीन कारण नज़र आते हैं। पहला, रचनात्मकता की कमी; दूसरा, हर कार्य को खुद करने की उनकी सोच; और तीसरा नज़रिया। अपनी बात को मैं आपको एक बहुत ही पुरानी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-
गाँव के बाहरी इलाक़े में एक बहुत ही नामी व्यवसायी रहा करता था। कार्य के प्रति उसका समर्पण इतना अधिक था कि वह हर पल उसी में डूबा रहता था। पूरे दिन में अगर उससे कोई भी किसी भी विषय में मदद माँगता था तो उसका जवाब ‘ना’ में रहता था। जब भी उससे इस विषय में पूछा जाए तो उसका जवाब रहता था, ‘मैं अपने ही कार्य पूरे नहीं कर पा रहा हूँ दूसरों की मदद कैसे करूँ?’
एक दिन अचानक उस आदमी की मृत्यु हो जाती है। मृत्यु के पश्चात यमराज उससे कहते है, ‘वत्स, तुमने अपना सारा कार्य एकाग्रता से, बिना किसी को नुक़सान पहुँचाए किया है। इसलिए मैं तुम्हें अपनी इच्छानुसार स्वर्ग या नर्क में से किसी एक को चुनने का विकल्प देता हूँ।’ यमराज की बात सुन वो व्यवसायी खुश हो जाता है। लेकिन उसी पल उसके मन में विचार आता है कि स्वर्ग या नर्क में से किसी एक को चुनने से पहले अगर उसे देख लिया जाए तो बेहतर रहेगा। वह यमराज को प्रणाम करते हुए, उनसे दोनों जगह को देख लेने का निवेदन करता है।
यमराज उसके निवेदन को स्वीकारते हुए, अपने एक दूत को आदेश देते हैं कि वो उसे स्वर्ग और नर्क दोनो ही जगह दिखा लाए। दूत उस आदमी को पहले नर्क लेकर जाता है। नर्क में उस व्यवसायी को एक बहुत बड़ा हॉल नज़र आता है जिसके मध्य में तमाम स्वादिष्ट व्यंजनों से सजी एक बहुत ही बड़ी मेज लगी रहती है। उन व्यंजनों से निकलती सुगंध उस व्यवसायी को लुभाने लगती है। तभी उसका ध्यान नर्क में मुरझाए और बेजान चेहरे लिए मेज़ के पास खड़े लोगों पर जाता है। उन्हें देखकर ही इस व्यवसायी को लगा इन्होंने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है। चारों और सुंदर खाना बिखरा देख उसे और आश्चर्य होता है। उसने गौर से देखा तो उसे एहसास हुआ, उन लोगों के हाथों पर लम्बे-लम्बे छुरी और कांटे बंधे हुए थे। जिसकी वजह से वे अपने हाथों को मोड नहीं पा रहे थे और तमाम व्यंजन उपलब्ध होने के बाद भी खाना नहीं खा पा रहे थे।
नर्क देखने के पश्चात यमराज का दूत व्यवसायी को स्वर्ग दिखाने के लिए लेकर जाता है। शुरुआत में तो व्यवसायी को नर्क और स्वर्ग में कोई फ़र्क़ ही नज़र नहीं आता है क्यूँकि स्वर्ग में भी नर्क के समान ही एक बड़े हाल के मध्य में तमाम व्यंजनों से सजी मेज़ लगी रहती है, जिसके दोनों ओर हाथों में लम्बी-लम्बी छुरी और काँटे बंधे लोग नज़र आते हैं। ध्यान से देखने पर उस व्यवसायी को एहसास होता है कि वे सभी लोग स्वस्थ, खुश और संतुष्ट नजर आते हैं। आश्चर्य से भरा वह व्यक्ति दूत से हाथ बंधे होने के बाद भी लोगों के स्वस्थ, खुश और संतुष्ट होने का कारण पूछता है। दूत उसे एक बार फिर सभी लोगों को ध्यान से देखने के लिए कहता है। इस बार व्यवसायी को एहसास होता है कि वे सभी लोग बंधे हुए हाथ से खुद भोजन खाने के स्थान पर एक दूसरे को भोजन करा रहे थे। एक दूसरे की मदद से वे सभी लोग भरपेट खाना भी खा पा रहे थे और उसका आनंद भी ले पा रहे थे। जिसका नतीजा था - ख़ुशहाली, आनंद और संतुष्टि। वैसे दोस्तों, मुझे नहीं लगता कि अब आपको बताने की ज़रूरत है कि उस व्यवसायी ने स्वर्ग और नर्क में से किसे चुना होगा?
इसी कहानी को अगर हम व्यवसाय को अगले पायदान पर ना ले जा पाने की स्थिति से जोड़ कर देखेंगे तो आप पाएँगे कि जो लोग खुद को सर्वश्रेष्ठ मान हर कार्य खुद करने का प्रयास करते हैं या हर पल खुद के लाभ के विषय में सोचते हैं और सिर्फ़ खुद को ही बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं, वे ही अपनी क्षमताओं के अनुसार अपने व्यवसाय को नई ऊँचाइयों पर नहीं ले जा पाते हैं। इसके विपरीत जिस तरह स्वर्ग में रहने वाले लोग सिर्फ अपने बारे में ही नहीं, बल्कि सबके बारे में सोच रहे थे। ठीक उसी तरह यही बात हमारे जीवन, हमारे कार्य और हमारी ग्रोथ पर भी लागू होती है। जब हम अपनी टीम के हर मेम्बर की ग्रोथ को प्लान करते है, उन्हें सफल बनने में मदद करते हैं, उनकी सफलता के लिए कार्य करते हैं, तो हमारी ग्रोथ खुद-ब-खुद हो जाती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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