top of page

समग्र नज़रिए से जीतें जहां…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Jan 30, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कुछ साल पुरानी है विद्यालय में गणित पढ़ा रही शिक्षिका ने बच्चों से प्रश्न करते हुए पूछा, ‘बेटा, अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूँ, तो आपके पास कितने सेब होंगे?’ सभी बच्चों ने जवाब दिया, ‘तीन सेब!’ सिवाये राजू के। उसका मानना था कि उसके पास चार सेब होंगे। शिक्षिका ग़लत उत्तर के बाद भी राजू के आत्मविश्वास को देख हैरान थी। उनकी अपेक्षा थी कि राजू सही जवाब के रूप में तीन सेब बोलेगा। राजू की बुद्धिमत्ता, पूर्व कक्षा में उसके परफ़ॉर्मन्स और फ़ोकस को देख शिक्षिका को लगा कि शायद राजू ने प्रश्न ठीक से ना सुना हो। उसने बच्चे को प्रेरित करते हुए कहा कि बेटा, ‘शायद आप मेरी बात ध्यान से नहीं सुन पाए हों इसलिए इस सरल से प्रश्न का उत्तर ग़लत दे रहे हो। इस बार बहुत ध्यान से सुनना। अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और एक सेब दूँ, तो आपके पास कितने सेब होंगे?’ चूँकि शिक्षक ने ध्यान से सुनने और जवाब देने का कहा था इसलिए इस बार उसने उँगलियों पर गणना करते हुए कहा, ‘चार।’ राजू का उत्तर सुनते ही शिक्षिका के चेहरे पर निराशा छा गई, लेकिन हार मानने के स्थान पर उन्होंने एक बार फिर प्रयास करने का निर्णय लिया। तभी उन्हें याद आया कि राजू को सेब के मुक़ाबले स्ट्रॉबेरी ज़्यादा पसंद है, इसलिए उन्होंने इस बार प्रश्न में सेब की जगह स्ट्रॉबेरी रखते हुए पूरे उत्साह से पूछा, ‘बेटा, अगर मैं आपको एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी और एक स्ट्रॉबेरी देती हूँ, तो आपके पास कुल कितनी स्ट्रॉबेरी होंगी।’ एक संकोच भरी मुस्कान के साथ, बच्चे ने उत्तर दिया, ‘तीन’ । शिक्षिका के चेहरे पर अब विजयी मुस्कान थी। उसे लगा कि इस बदले हुए दृष्टिकोण ने उसे सफलता दिलाई है। उसने मन ही मन ख़ुद की पीठ थपथपाई; ख़ुद को बधाई दी। तभी उसके मन में विचार आया क्यों ना एक बार फिर बच्चे से इसी प्रश्न को सेब के साथ दोहरा लिया जाये? विचार आते ही उन्होंने एक बार फिर बच्चे से पूछा, 'अब अगर मैं तुम्हें एक सेब और एक सेब और एक और सेब दूँ तो तुम्हारे पास कितने सेब होंगे?’ बच्चे ने तुरंत जवाब दिया, ‘चार!’

बच्चे का जवाब सुनते ही शिक्षिका का पारा चढ़ गया। वे चिड़चिड़ाते हुए, सख़्त आवाज़ में बोली, ‘कैसे! मुझे बताओ कैसे?’ बच्चा डर के साथ हिचकिचाते हुए बोला, ‘क्योंकि मेरे पास पहले से ही एक सेब है।’ बच्चे का जवाब सुन शिक्षिका स्तब्ध थी। अब उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार प्रतिक्रिया दी जाए।


ऐसा ही दोस्तों, अक्सर हमारे साथ होता है, जब भी कोई हमारी उम्मीद से अलग जवाब देता है तो अक्सर हम उसे बिना जाँचे-परखे सीधे ग़लत ठहरा देते हैं। उम्मीद से अलग होने का अर्थ यह क़तई नहीं होता कि सामने वाला ग़लत है। इसका तो अर्थ सिर्फ़ इतना सा है कि आप अभी तक उसका नज़रिया या उसका कोण नहीं समझ पाये हैं। याद रखियेगा दोस्तों, हर स्थिति परिस्थिति में तीन कोण होते हैं। पहला, आपके अनुसार क्या सही है? दूसरा, सामने वाले के अनुसार क्या सही है और तीसरा, हक़ीक़त में क्या सही है। जब हम विभिन्न दृष्टिकोणों से चीजों को देखना, समझना और सराहना करना सीखते हैं, तब हम सच्चाई के और समीप चले जाते हैं और जब भी हम दूसरों पर अपना दृष्टिकोण थोपते हैं तब हम ग़लतियों को पहचानने या खोजने में लग जाते हैं और हमेशा यही सोचते हैं कि क्या गलत हुआ?


इसलिए दोस्तों, अबसे जब भी कोई आपकी अपेक्षा के विपरीत बात रखे या किसी भी स्थिति-परिस्थिति में आपसे अलग दृष्टिकोण रखे तो नकारने से पहले उससे धीरे से पूछें, क्या आप मुझे इसे पुनः समझाने का प्रयत्न कर सकते हैं?’ और फिर जब वह आपको वापस से समझाने का प्रयास करे तब आप उसे सौ प्रतिशत फ़ोकस के साथ पूरा सुने; उसके दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करें, हो सकता है यह बदला हुआ नज़रिया आपके वार्तालाप का अंतिम परिणाम बदल दे…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

5 views0 comments

Comentarios


bottom of page