top of page

समझौता - शांति और सुख का आधार

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Dec 16, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है कि समझौता ही सामान्य जीवन में मानसिक शांति और सुख का आधार है। मेरी इस बात के महत्व को आप धरती पर उगी घास से समझ सकते हैं। जब आँधी-तूफ़ान आता है, तब अकड़े खड़े पेड़ तो धराशायी हो जाते हैं लेकिन हवा के रुख़ की तरफ़ झुक जाने वाली घास का तूफ़ान कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। यही स्थिति सदा झुकी रहने वाली लचीली बेंत की भी होती है, वह भी आँधी-तूफ़ान को खड़े-खड़े ही झेल जाती है।


लेकिन यही बात दोस्तों, हम जीवन के विषय में समझ या सीख नहीं पाते है। चलिए अपनी बात को मैं एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। हाल ही में एक सज्जन मेरे पास आए और अपनी पत्नी की एक आदत के बारे में बताते हुए बोले, ‘सर, मैं उसे लाख बार समझा चुका हूँ। लेकिन वह सुधरने के लिए तैयार ही नहीं है।’ हालाँकि मैं उनकी बात बड़े ध्यान से और धैर्यपूर्वक सुन रहा था, लेकिन उसके बाद भी मेरे चेहरे पर स्वतः ही मुस्कुराहट आ गई। मैंने किसी तरह ख़ुद को सम्भाला और उन्हें अपने स्वभाव में कुछ परिवर्तन लाने का सुझाव दिया। मेरी बात सुनते ही वे थोड़ा असहज हो गये और बोले, ‘सर, आप मुझे समझौता करते हुए जीवन जीने का बोल रहे हैं।’ मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘उसमें क्या बुराई है? कम से कम आपका रिश्ता ख़राब होने से बच जाएगा।’ शायद वे सज्जन मेरी बात की गहराई समझ नहीं पाये और बीच में ही बात को बदल कर, मौक़ा देखते ही वहाँ से चले गए।


दोस्तों, अक्सर लोग समझौता कर जीवन जीने को नकारात्मक भाव या नकारात्मक रूप में देखते हैं। जबकि मेरी नज़र में यह शांतिपूर्ण जीवन जीने का एक तरीक़ा है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारी संस्कृति में रिश्तों को छोड़ना या उन्हें टीवी/फ्रिज आदि पर मिलने वाले एक्सचेंज की तरह बदल लेना संभव नहीं है। फिर भले ही वह रिश्ता कितना भी कटु क्यों ना हो। जी हाँ दोस्तों, रिश्ता पति-पत्नी का हो या माँ-बाप का या फिर अधिकारी-कर्मचारी का। हमारी संस्कृति में रिश्तों को तोड़ना सही नहीं माना जाता है। सामान्यतः आप रिश्तों को अंत तक ही निभाते हैं, फिर चाहे आप उसे ख़ुशी-ख़ुशी निभायें या फिर दुखी रह कर।


याद रखियेगा दोस्तों, जो अड़ा, वो कटा याने अगर आप अड़ियल और ज़िद्दी रवैये के साथ चलेंगे तो अकेले रह जाएँगे याने परिवार और समाज से कट जाएँगे। वैसे अड़ियल रवैये का एक और नुक़सान है, अड़ियल रवैया आपको हमेशा ख़ुद को श्रेष्ठ मानने के लिए मजबूर करता है और जब आप ख़ुद को श्रेष्ठ मान लेते हैं तो आप सुनना और सीखना बंद कर देते हैं, जिसके कारण बीतते समय के साथ व्यक्ति गर्त में गिरता चला जाता है। इसलिए साथियों, अड़ो मत! हमेशा मत कहो कि मैं ही सही हूँ; सभी को मेरी बात मानना पड़ेगी। यह भी मत सोचो और समझो कि तुम ही सबसे श्रेष्ठ, निर्दोष और बुद्धिमान हो।

इसके स्थान पर खुला दिमाग़ और नज़रिया रख कर सबकी बात सुनो। हो सकता है, जिन परिस्थिति या हालात में वे अपना जीवन जी रहे हैं उसके अनुसार वे सही हों अर्थात् उन विशेष स्थितियों में उनके लिए वैसा ही सोचना, बनना, करना आदि सब कुछ स्वाभाविक हो। इसीलिए अड़ने के स्थान पर थोड़ा सा झुककर; थोड़ा सा समझौता कर, दूसरों को समझना, उनके दृष्टिकोण से चीजों को देखना आपको भिन्नता को स्वीकारने के लिए तैयार करता है; आपको नए मौक़ों को पहचानने लायक़ बनाता है। याद रखियेगा साथियों, व्यवसायिक दुनिया पूरी की पूरी याने पूरा बाज़ार एक-दूसरे को समझने और स्वीकारने की नींव पर खड़ा है।


तो आइए साथियों, अपने जीवन को बेहतर बनाने, रिश्तों को सुधारने, ख़ुद की स्वीकार्यता बढ़ाने, ख़ुद को लोकप्रिय बनाने और सबसे महत्वपूर्ण ख़ुद को और दूसरों को सफल बनाने के लिए हम थोड़ा सा झुकना और जब तक हमारे जीवन मूल्य प्रभावित ना हों तब तक समझौता करना प्रारंभ करते हैं और ख़ुशी के साथ शांतिपूर्ण जीवन जीते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

Comments


bottom of page