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समय और अवसर इंतज़ार नहीं करते…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Mar 5, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है

दोस्तों, यह जीवन कई बार आपको ऐसे प्रश्नों में उलझा देता है, जो हमें तब तक उलझाये रखता है जब तक हम उसका जवाब ना खोज लें। जी हाँ कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ सवाल हमारे दिलो-दिमाग़ में ऐसे घर कर जाते हैं कि जवाब जाने बिना चैन से सोना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ हमारी आज की कहानी के मुख्य किरदार राजा के साथ हुआ था। एक बार रात्रि विश्राम के ठीक पहले राजा के मन में तीन प्रश्न उठे। पहला, सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन सा होता है? दूसरा, परामर्श के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति कौन होता है? और तीसरा, किसी भी काम को करने का सबसे महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा होता है?


काफ़ी देर तक विचार करने के बाद भी जब राजा इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज पाया तो उसने अगले दिन इन प्रश्नों को अपने मंत्रियों और सभासदों से पूछा। जब वे इसका जवाब नहीं दे पाये तो राजा ने विद्वानों की एक सभा बुलाई और उनसे इन प्रश्नों के उत्तर माँगे। लेकिन अफ़सोस! कोई भी उनके सवालों के संतोषजनक जवाब नहीं दे सका। लेकिन उन विद्वानों में से एक ने राजा को सुझाव दिया कि जंगल के दूसरे कोने में रहने वाले महात्मा तुम्हारे सवालों के जवाब दे सकते हैं।


बिना एक क्षण भी गँवायें राजा एक दम सादे वेश में कुछ सैनिकों के साथ महात्मा जी के आश्रम की ओर चल दिया। कई दिनों की यात्रा कर राजा जब आश्रम पहुंचा तो वो यह देख दंग रह गया कि महात्मा जी अपनी कुटिया के पास खेत में कुदाल चला रहे थे। राजा उसी क्षण उनके पास गया और आदर के साथ प्रणाम करते हुए अपने तीनों प्रश्न पूछने लगा। इस पर महात्मा जी उत्तर देने के स्थान पर बोले, ‘पहले मेरी मदद करो।’ ‘जी’ कहकर राजा ने कुदाल उठाई और महात्मा जी के कार्य में हाथ बँटाने लगा। संध्या तक कुदाल से खोदते रहने के कारण राजा काफ़ी थक गया था।


सूर्यास्त के समय जब राजा आराम करने जाने के विषय में सोच ही रहा था कि कहीं से एक घायल व्यक्ति दौड़ता हुआ आया, जिसके पेट में तलवार का एक घाव था, जिसमें से ख़ून बह रहा था। राजा और सन्यासी ने मिलकर उसकी मरहम-पट्टी की। जिसकी वजह से घायल व्यक्ति को काफ़ी राहत मिली और कुछ ही देर बाद वह सो गया। अगले दिन जब घायल व्यक्ति सो कर उठा तो अपने समीप राजा को देख उनके पैर पकड़ कर बैठ गया और रोने लगा। राजा ने जब उससे इस विषय में पूछा तो वह बोला, ‘महाराज! वैसे तो मैं आपका घोर शत्रु था और यहाँ आपको मारने आया था। मैं आप पर हमला करता लेकिन उसके पहले ही आपके सैनिकों ने मुझे पहचान लिया और मुझ पर हमला कर दिया। इतना कहकर वह कुछ क्षणों के लिए शांत हो गया। फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘लेकिन अंत में आपने ही मेरी जान बचाई।’


राजा के एक नेक कार्य से उसका शत्रु अब पूरी तरह बदल चुका था और अब वह उसके दोस्त की तरह व्यवहार कर रहा था। यह सब देख और सुन राजा हैरान था। तभी अचानक महात्मा जी वहाँ आए और राजा से बोले, ‘राजन्, क्या आपको अपने सवालों के जवाब मिल गए?’ महात्मा की बात सुन राजा ने उनकी तरफ़ आश्चर्य मिश्रित भाव से देखा। इस पर महात्मा जी बोले, ‘राजन् सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य वही होता है जो अभी आपके सामने है। जैसे कुछ देर पहले आपके लिए खेत जोतना और घायल की सहायता करना सबसे महत्वपूर्ण कार्य था।’ दूसरी बात, सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति वही होता है जो इस क्षण आपके पास है क्योंकि मदद की ज़रूरत उसी को है जो आपके सामने है। और तीसरी बात, जो क्षण आपके सामने है वही सबसे महत्त्वपूर्ण समय होता है। याद रखना, बीता हुआ समय लौटेगा नहीं और भविष्य अनिश्चित है।’


बात तो दोस्तों, महात्मा जी की सटीक थी। इसलिए उपरोक्त कहानी के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान ही सबसे बड़ी शक्ति है और जो काम अभी आपके हाथ में है, वही सबसे ज़रूरी है और ठीक इसी तरह, जो व्यक्ति अभी आपके पास है, वही सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कल का भरोसा नहीं है, और आज हमारे हाथ में है! तो दोस्तों, आज से ही ये तीन बातें अपनी ज़िंदगी में उतारिए, पहली, अभी के काम को पूरी लगन से कीजिए। दूसरी, अपने आसपास के लोगों की कदर कीजिए और तीसरी जीवन में मिले हर क्षण का सम्मान कीजिए। साथ ही दोस्तों याद रखियेगा, ‘समय और अवसर किसी का इंतज़ार नहीं करते हैं।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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