Dec 28, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरा मानना है कि खुद से सही प्रश्न ना पूछ पाना ही हमारी आधी से ज़्यादा समस्याओं की जड़ है। जी हाँ, सुनने में अजीब लगने वाली यह बात वास्तव में काफ़ी गहरी सोच अपने अंदर छिपाए हुए है। अपनी बात को समझाने या उस पर चर्चा करने से पहले मैं आपको महात्मा बुद्ध से जुड़ी एक प्यारी सी कहानी सुनाता हूँ।
एक दिन अपने दैनिक प्रवचन के दौरान महात्मा गौतम बुद्ध रस्सी लेकर पहुंचे। बुद्ध के हाथ में रस्सी देख शिष्यों को बड़ा अटपटा लगा क्यूँकि सामान्यतः महात्मा बुद्ध के हाथ में इस तरह की कोई चीज़ नहीं रहती थी। महात्मा बुद्ध ने प्रवचन प्रांगण में आसन ग्रहण करने के पश्चात सबसे पहले रस्सी में तीन गाँठ लगाई और शिष्यों से प्रश्न करते हुए बोले, ‘क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठ लगाने के पूर्व थी?’
प्रश्न सुन शिष्य दुविधा में पड़ गए, कुछ को लग रहा था रस्सी तो वही है, कुछ को वह बदली हुई दिख रही थी। कुछ देर की शांति के बाद एक शिष्य बोला, ‘गुरुजी प्रश्न सुनने में तो साधारण है, लेकिन इसका उत्तर एक नहीं हो सकता। एक नज़र से देखें तो रस्सी वही है इसमें कोई बदलाव नहीं आया है और दूसरी नज़र से देखें तो अब इसमें तीन गाँठ लगी हैं, इसलिए इसे बदला हुआ माना जा सकता है। वास्तव में यह हमारे नज़रिए पर निर्भर करेगा कि हम इसे कैसा मानते हैं?’ तभी एक अन्य शिष्य बोला, ‘महात्मा जी, मेरे अनुसार यह रस्सी बाहर से देखने में भले ही बदली हुई नज़र आ रही है, लेकिन इसका बुनियादी स्वरूप अपरिवर्तित है। अर्थात् उसका मूल स्वरूप पहले जैसा ही है।’ महात्मा बुद्ध हलके से मुस्कुराए और बोले, ‘चलो अब हम रस्सी के दोनों सिरों को खींच कर गाँठ को खोल देते हैं।’ उनके इतना कहते ही एक अन्य शिष्य बोला, ‘नहीं-नहीं महात्मा जी ऐसा करने से तो गाँठ और कस जाएगी। उसके बाद इसे खोलना और भी ज़्यादा मुश्किल होगा।’
शिष्य की बात सुन महात्मा बुद्ध प्रश्नवाचक निगाहों के साथ बोले, ‘फिर तुम ही बताओ इस गाँठ को खोलने के लिए क्या करना होगा?’ शिष्य मुस्कुराया और बोला, ‘महात्मा जी यह तो बड़ा आसान है। इसके लिए हमें गाँठों को थोड़ा गौर से देखना होगा, ताकि हम जान सकें कि इन्हें लगाया कैसे गया था? उसके बाद हम उसे उसी आधार पर खोल सकते हैं।’ शिष्य का जवाब सुनते ही महात्मा बुद्ध थोड़े गम्भीर हो गए और बोले, ‘जिस तरह बिना गाँठ का प्रकार या उसे लगाने का तरीक़ा जाने उसे खोलना लगभग असम्भव है, ठीक उसी तरह जीवन में किसी भी समस्या का समाधान बिना उसका सही कारण जाने नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बिना यह जाने कि हमें क्रोध क्यों आया, हम क्रोध का अंत कैसे करें विचार करने लगते हैं। ठीक इसी तरह बिना यह जाने कि हमारे अंदर अहंकार कहाँ से और कैसे आया, हम उसे ख़त्म करने का प्रयास करने लगते हैं।’
बात तो एकदम सही है दोस्तों, जिस तरह रस्सी में गाँठ लग जाने के बाद भी उसका मूल स्वरूप नहीं बदलता है, उसी प्रकार इंसानों में भी ग़ुस्सा, अहंकार, द्वेष जैसे दोष आ जाने से उसका मानवता या इंसानियत अर्थात् अच्छाई वाला मूल स्वरूप नहीं बदलता है। जैसे ध्यान से देखने पर हम रस्सी की गाँठ खोल सकते हैं, ठीक उसी तरह सजग रहकर खुद से सही प्रश्न पूछते हुए अपनी समस्याओं का हल खोज सकते हैं।
जी हाँ साथियों, इंसान ग़लतियों का पिटारा है, इसलिये जहाँ वह होगा वहाँ समस्याएँ भी होंगी और जहाँ समस्याएँ होगी, वहाँ इंसान की असीम शक्तियों के कारण समाधान भी होगा। बस हमें समस्या के सही कारण को जानने के लिए स्वयं से सही प्रश्न पूछना होगा, जिससे उस प्रश्न के उत्तर के रूप में हमें अपनी समस्या का सटीक हाल मिल जाए।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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