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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

समस्या पर नहीं, समाधान पर लगाएँ ध्यान !!!

Sep 12, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

हाल ही में एक पब्लिक फ़ंक्शन पूर्ण होने के पश्चात एक सज्जन मेरे पास आए और बोले, ‘सर, अच्छे इंसान बनने के संदर्भ में आपके द्वारा बताई गई बातें सिर्फ़ सुनने में ही अच्छी लगती है। आज की दुनिया में इन बातों से काम नहीं चलता। सर, थोड़ा सा दुनिया को यथार्थ के नज़रिए से देखिए, आप पाएँगे कि चारों और बुराई, पाप और अत्याचार का ही बोलबाला है। छोटे से छोटा कार्य भी बिना रिश्वत के पूरा नहीं होता। आप ईमानदारी के साथ ना तो नौकरी और ना ही व्यापार कर सकते हो। हर जगह बेईमानी का ही राज है।’


उनकी बात सुन ऐसा लग रहा था मानो वे तय करके ही आए थे कि आज कुछ भी हो जाए, मैं अच्छाई के विषय में कुछ भी नहीं सुनूँगा। लेकिन मैं भी कहाँ हार मानने वाला था, मैंने मुस्कुराते हुए उन सज्जन से कहा, ‘किसी भी स्थान पर अंधेरा तब तक ही रहता है, जब तक वहाँ प्रकाश ना कर दिया जाए या दूसरे शब्दों में कहूँ तो सूर्य की पहली किरण द्वारा प्रकाश फैलते ही अंधेरा अपने आप भाग जाता है। इसी तरह कितनी भी गर्मी क्यूँ ना हो बारिश होते ही मौसम में ठंडक आ जाती है। आप कितने भी भूखे क्यूँ ना हों, भोजन करते ही भूख खत्म हो जाती है। उत्तम स्वास्थ्य के नियमों का पालन करते ही दुर्बलता, कमजोरी या ख़राब स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। ज्ञान की प्राप्ति अज्ञान को दूर करती है। कहने का मतलब है जब आप समाधान पर कार्य करते हैं तो समस्या अपने आप दूर हो जाती है।’


कुछ पल चुप रहने के बाद मैंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा। याद रखिएगा, आप जिधर ध्यान या समय लगाते है, वहाँ तरक़्क़ी होती है। अगर आप समस्या अथवा परेशानी पर ध्यान देंगे तो वह बढ़ जाएगी और अगर आप समाधान पर ध्यान देंगे तो स्थिति बेहतर हो जाएगी। इस वक्त आपके विचार, आपके अपने जीवन के अनुभव या शहरी क्षेत्रों में बढ़ती हुई बुराई, पाप या अत्याचार पर आधारित हैं। लेकिन मेरा अभी भी मानना है कि अगर बड़े परिदृश्य में देखा जाए तो अच्छाई करने वालों की संख्या बुराई वालों के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा है। लेकिन चलिए थोड़ी देर के लिए आपकी बात को सही मान भी लिया जाए तो उपरोक्त उदाहरण के आधार पर साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि संसार में से बुराइयों को हटाने के लिए अच्छाइयों का प्रसार करना होगा।


इतना कहते ही मैं एक बार फिर कुछ पलों के लिए चुप हो गया और उन सज्जन की प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा क्यूँकि उनके हाव-भाव बता रहे थे कि वे मेरी बात को कुछ हद तक समझ पा रहे थे। कुछ पल बाद वे एकदम से बोले, ‘शायद आप सही कह रहे हैं सर ‘अधर्म’ को हटाने के लिए ‘धर्म’ का ही सहारा लेना होगा। अगर कोई बीमारी है, तो हमें बीमारी पर ध्यान देने के स्थान पर रोग निवारण के तरीक़ों पर फ़ोकस करना होगा।’


मैंने एक बार फिर पासा अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं सर। चूँकि अब आप मेरी बात का सार समझ गए हैं, तो मैं आपको एक बात और बताना चाहूँगा। अगर समस्या व्यक्तिगत हो तो उपरोक्त तरीक़ा अच्छे से कार्य करता है। लेकिन अगर समस्या समाज में फैल गई हो, तो हमें उसे ठीक करने के लिए ‘दंड नीति’ के साथ-साथ उसे जड़ से ठीक करने के विषय में सोचना पड़ता है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्यूँकि दंड नीति आपको तात्कालिक लाभ तो दे सकती है लेकिन जड़ से ठीक नहीं कर सकती है। समस्या को जड़ से ठीक करने के लिए हमें कुढ़ने, इल्ज़ाम लगाने, उस पर लम्बी-लम्बी चर्चा करने, लड़ने के स्थान पर, स्नेह से सुधार के सरल मार्ग को अपनाना होगा जिसके लिए हमें सामाजिक स्तर पर जागृति बढ़ाने के लिए शिक्षा पद्धति का साथ लेना होगा।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com


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