May 1, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, दोस्तों अक्सर लोग ‘ब्रांडिंग’ का अर्थ विज्ञापन से जोड़ कर चलते हैं। मेरी नज़र में यह धारणा इंटरनेट के चलन और सोशल मीडिया के आने के साथ और ज़्यादा बढ़ गई है। इसीलिए आज कई कम्पनियाँ सोशल मीडिया पर विज्ञापन, अच्छे फीडबैक, गूगल रेटिंग, ब्लॉग्स, एक्सपीरियंस शेयरिंग आदि पर काफ़ी पैसा खर्च करती हैं। लेकिन मेरा मानना इस विषय में थोड़ा सा अलग है। ब्रांड सिर्फ़ कोई एक नाम, लोगो, विज्ञापन या कंपनी द्वारा किए गए दावे, गुण और लाभ नहीं होता है। वह तो कंपनी द्वारा निर्मित लाखों समान अनुभवों का शुद्ध प्रभाव होता है। इसे आप ग्राहक और कंपनी के रिश्ते में अपेक्षाओं, वादों, व्यक्तित्व और पहचान को संक्षेप में प्रस्तुत करने का एक टेलीग्राफिक लेकिन विचारोत्तेजक तरीका भी मान सकते हैं। इसीलिए ब्रांड को एक जीवित और हमेशा विकसित होने वाली चीज़ के रूप में देखा जाता है। इसीलिए दोस्तों, कंपनी के रूप में हमारी प्राथमिकता ग्राहक से किए गए वादों और अपेक्षाओं को हर हाल में पूरा करने की होनी चाहिए, फिर चाहे उसकी शिकायत कितनी ही अजीब सी क्यों ना हों। अपनी बात को मैं आपको जनरल मोटर्स के एक क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ।
एक बार जनरल मोटर्स की पोंटिएक मॉडल की गाड़ी के विभाग को एक शिकायत प्राप्त हुई जिसमें लिखा था, ‘मैं आपको दूसरी बार लिख रहा हूँ। हालाँकि जवाब न देने के लिए मैं आपको दोषी नहीं ठहराता क्योंकि मेरी शिकायत आपको मजाक लग रही होगी। लेकिन यह पूरी तरह सच है। हमारे परिवार में हर रात डिनर के बाद मीठे के रूप में आइसक्रीम खाने की परंपरा है और हर रोज़ आइसक्रीम का फ्लेवर अलग होता है। डिनर के बाद पूरा परिवार वोट करता है कि हमें किस फ्लेवर की आइसक्रीम खानी चाहिए और फिर वही फ्लेवर मैं स्टोर से लाता हूँ।
मैंने हाल ही में आपकी कंपनी की पोंटिएक मॉडल गाड़ी खरीदी है। जब मैं इस गाड़ी में आइसक्रीम लाने जाता हूँ तो जब भी मैं स्टोर से वनिला फ्लेवर की आइसक्रीम खरीदकर वापस आता हूँ तो मेरी कार स्टार्ट नहीं होती और यदि मैं किसी अन्य फ्लेवर की आइसक्रीम लाता हूँ तो कार स्टार्ट हो जाती है। हो सकता है कि आपको मेरी शिकायत मूर्खतापूर्ण लगे लेकिन यह सच है। मैं चाहता हूँ कि इस पहेली को सुलझाने में आप मेरी मदद करें कि पोंटिएक में ऐसा क्या है जिसे वनीला फ्लेवर से समस्या है।
पोंटिएक विभाग के चीफ को शिकायत पर संदेह था लेकिन फिर भी उन्होंने इसकी जाँच करने के लिए एक इंजीनियर को भेज दिया। डिनर के बाद शिकायतकर्ता और इंजीनियर कार में बैठे और आइसक्रीम स्टोर पहुंचें। उस रात व्यक्ति को वनिला आइसक्रीम खरीदनी थी। जैसे ही दोनों वनीला आइसक्रीम लेकर वापस आए तो कार स्टार्ट नहीं हुई। इंजीनियर हैरान! अगली दो रात फिर इंजीनियर उस व्यक्ति के साथ गया। पहली रात उन्होंने चॉकलेट फ्लेवर और दूसरी रात स्ट्रॉबेरी फ्लेवर खरीदा और मज़े की बात यह है कि इन दोनों ही दिन गाड़ी स्टार्ट हो गई।
तीसरी रात वो वनिला फ्लेवर लेकर आए तो कार फिर से स्टार्ट नहीं हुई। इंजीनियर एक तार्किक व्यक्ति था तो उसने यह मानने से इनकार कर दिया कि शिकायतकर्ता की कार को वनिला फ्लेवर से एलर्जी है। उसने फैसला लिया कि जब तक समस्या का हल नहीं हो जाता वह हर रात उस व्यक्ति के साथ स्टोर आता रहेगा। इंजीनियर ने अब रात को आइसक्रीम लेने जाते वक़्त नोट्स लेना शुरू किया। अब वह सभी प्रकार का डाटा नोट करता था। जैसे, समय, गैस के उपयोग का प्रकार, आगे और पीछे ड्राइव करने का समय आदि। थोड़े दिन बाद इंजीनियर को एक सुराग मिला। उसने पाया कि शिकायतकर्ता को किसी भी अन्य फ्लेवर की तुलना में वनिला खरीदने में कम समय लग रहा था। असल में सबसे लोकप्रिय फ्लेवर होने के कारण वनिला फ्लेवर स्टोर में गेट के पास रखा जाता था, जबकि आइसक्रीम के अन्य सभी फ्लेवर स्टोर के पीछे एक अलग काउंटर पर रखे जाते थे। इसलिए वहाँ से पसंदीदा फ्लेवर ढूंढने में काफी समय लगता था। अब इंजीनियर के सामने सवाल यह था कि समय कम लगने पर कार स्टार्ट क्यों नहीं होती? अब समस्या वनिला आइसक्रीम नहीं समय था! इंजीनियर ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे समझ आ गया कि समस्या गाड़ी का वेपर लॉक याने वाष्प लॉक होना है।
अन्य सभी फ्लेवर को लाने में शिकायतकर्ता को ज्यादा समय लगता था इसलिए गाड़ी का इंजन शुरू होने के लिए पर्याप्त रूप से ठंडा हो जाता था। जबकि वनीला फ्लेवर स्टोर में गेट के नज़दीक रखा होने के कारण उसे लाने में कम समय लगता तो गाड़ी का इंजन ठंडा नहीं हो पाता और वेपर लॉक हो जाने के कारण गाड़ी स्टार्ट नहीं होती थी। इस घटना के बाद जनरल मोटर्स ने पोंटिएक मॉडल के इंजन में ज़रूरी बदलाव किए और शिकायतकर्ता को एक नई गाड़ी भी दी।
दोस्तों, अगर आप वाक़ई एक बड़ा ब्रांड बनाना चाहते हैं तो कभी भी अपने ग्राहकों की शिकायत को हल्के में न लें। याद रखियेगा अजीब और हास्यास्पद या अजीब सी लगने वाली समस्याएँ भी कभी-कभी सच होती हैं और जब हम शांत होकर समाधान ढूंढते हैं तो सभी समस्याएँ सरल लगती हैं और उनका हल निकालना आसान हो जाता है। ऐसा करना आपको ग्राहक को अपेक्षित सेवा देकर समान अनुभव देने का मौक़ा देता है, जो गुजरते समय के साथ आपको ब्रांड बनाने में मदद करता है। इसीलिए मैं सफलता कोई लंबी या ऊँची छलांग नहीं बल्कि छोटे-छोटे, समान कदमों की मैराथन मानता हूँ। वैसे इस क़िस्से से हम यह भी सीख सकते हैं कि समस्या के प्रति आपका नज़रिया और दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण होता है। अगर आप अपनी सोच, नज़रिया और दृष्टिकोण सही रखेंगे तो पायेंगे कि कोई भी समस्या जटिल नहीं है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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