Jan 6, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जीवन के प्रति हमारा सही नज़रिया ही हमें नज़राना पाने का हक़दार बनाता है और अगर इंसान अपना नज़रिया सही ना रख पाये तो हाथ आए मौक़ों को चूकना और बाद में क़िस्मत या भाग्य को दोष देना, सामान्य सी बात है। अपनी बात को मैं आपको एक घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ। इंदौर की एक संस्था द्वारा मुझे ३० और ३१ दिसंबर को अपने स्टाफ की दो दिवसीय ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया गया। मैं तय समय पर संस्था द्वारा तय किए गए स्थान पर पहुँच गया और ट्रेनिंग हॉल की अंतिम लाइन में जाकर बैठ गया।
अभी मुझे बैठे कुछ ही मिनट हुए थे कि एक महिला हॉल में प्रवेश करते हुए बोली, ‘यार यह सर भी ना किसी ना किसी बहाने से हमारे मूड की बारह बजाते रहते हैं। आज की ही घटना को देख लो, भला कोई भी कंपनी ३०-३१ को ट्रेनिंग रखती है क्या? अरे भाई हर परिवार के; हर व्यक्ति के अपने ईयर एंड सेलिब्रेशन प्लान होते हैं।’ उस महिला की बात में हाँ में हाँ मिलाते हुए उसका साथी बोला, ‘सही कह रही हो तुम, सारा छुट्टी को मूड ख़राब कर दिया।’
उन दोनों सहकर्मियों की बातें सुन मैं मंद ही मंद मुस्कुरा रहा था और सोच रहा था कि सही नज़रिए के ना होने के कारण सामान्य लोग कैसे हाथ आए मौक़ों को गँवा देते हैं। वे दोनों एक दिन के सेलिब्रेशन के कारण जीवन को सेलिब्रेशन बनाने का मौक़ा छोड़ रहे थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि ख़ुशी किसी पल या दिन की मोहताज नहीं होती है। वह तो आपके जीवन को जीने के तरीक़े पर निर्भर रहती है। अगर आपने सही नज़रिया रख हर दिन को पूर्णता के साथ जीना सीख लिया तो आपको हर पल में ख़ुशी मिलेगी और अगर नहीं तो आप रोज़ खेद पूर्ण जीवन जिएँगे।
जी हाँ दोस्तों, आज के युग में सामान्यतः सभी लोग यह गलती कर रहे हैं और देने के स्थान पर पाने के लिए जीवन जी रहे हैं और शायद इसीलिए कर्म के महत्व को भूल, ग़लत प्राथमिकताओं पर आधारित जीवन जीकर ख़ुशी पाने का प्रयास कर रहे हैं। चलिए इसी बात को हम गुरु गोविंद सिंह से संबंधित एक क़िस्से से समझने का प्रयास करते हैं। एक बार एक वैध गुरु गोविंद सिंह जी के दर्शन करने के लिए आनन्दपुर साहिब गये। गुरुजी से मुलाक़ात के बाद जब वैध जी ने वापस जाने की आज्ञा माँगते हुए गुरुजी को प्रणाम करा तो गुरुजी बोले, ‘जाओ और जरूरतमंदों की सेवा करो, ईश्वर तुम्हारा भला करेगा।’ वैध जी गुरुजी के दर्शन कर वापस आते ही रोगियों की सेवा में जुट गये और जल्द ही पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गये।
एक बार भ्रमण के दौरान गुरु गोविंद सिंह जी स्वयं वैध के घर पर पहुँच गए। अपने गुरु को अचानक ही अपने सामने पा वह वैध बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी सेवा-सुश्रुषा में लग गया और उनसे भोजन करने का निवेदन करने लगा। जिसे गुरु गोविंद सिंह जी ने यह कहते हुए नकार दिया कि आज वे जरा जल्दी में हैं इसलिए ज़्यादा देर ठहरना उनके लिए संभव नहीं है। अभी उन दोनों की सामान्य बातचीत चल ही रही थी कि एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और बोला, 'वैद्य जी… वैध जी…, ज़रा जल्दी चलिए, मेरी पत्नी की तबियत बहुत खराब है। अगर हमने ज़रा भी समय गँवाया तो बहुत देर हो जाएगी।’
उस व्यक्ति का निवेदन सुन वैद्य जी असमंजस में पड़ गए। एक ओर गुरु थे, जो पहली बार उनके घर आये थे और दूसरी ओर एक ज़रूरतमंद। दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक ओर गुरु के सानिध्य का आनंद था, तो दूसरी ओर कर्म। एक पल में ही वैध जी ने कर्म प्रधानता दी और जड़ी-बूटियों का थैला लिए इलाज के लिए चले गए। लगभग दो घण्टे की मेहनत याने गहन चिकित्सकीय सहायता और देखभाल के बाद रोगी की हालत में सुधार हुआ। तब वैध जी बड़े उदास मन से वहां से अपने घर की ओर चले। रास्ते में वे सोच रहे थे कि गुरुजी तो वहाँ से चले गये होंगे क्योंकि उनके पास समय नहीं था। फिर भी वैद्य जी के मन के किसी कोने में गुरु जी से मिलने की आस थी इसलिए वे भागते हुए वापस घर पहुंचे और वहाँ गुरु जी को अपने सम्मुख पाकर घोर आश्चर्य से भर गए और उनके चरणों में गिर गये। गुरु गोविंद सिंह जी ने वैध जी को अपने हाथों से उठाया और गले से लगा लिया और कहा, ‘तुम मेरे सच्चे शिष्य हो। सबसे बड़ी सेवा जरूरतमंदों की मदद करना है।’ जी हाँ दोस्तों, अपने कर्म को प्रधानता देकर मानव मात्र की सेवा करना ही हमारी एक मात्र प्राथमिकता है, जिसे ट्रेनिंग के लिए आये सहकर्मी भूल गए थे और शायद इसीलिए दुविधा में थे। जी हाँ दोस्तों, जिस दिन आप सही नज़रिए के साथ सही प्राथमिकता आधारित जीवन जीना शुरू कर देते हैं उसी दिन से आपके लिये हर दिन जश्न के दिन से कम नहीं होता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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