Dec 05, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अपने स्कूल कंसलटेंसी के लम्बे अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि आजकल स्कूली बच्चों के ज़्यादातर माता-पिताओं के बीच एक होड़ लगी हुई है की कौन कितने अधिक नम्बर ला सकता है। अर्थात् जो बच्चा जितने ज़्यादा नम्बर लाएगा उसे उतना ही अधिक इंटेलीजेंट माना जाएगा और अगर ऐसा हो गया तो माता-पिता अपनी पेरेंटिंग को सफल मान लेंगे। फिर चाहे नम्बर लाने के लिए किए गए प्रयास ने बच्चे का कितना भी नुक़सान कर दिया हो।
जी हाँ साथियों, सिर्फ़ नम्बर 1 बनाने की चाह में हम बच्चों का जाने-अनजाने में बड़ा नुक़सान कर जाते हैं। जैसे हमारे द्वारा अपनायी जा रही वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों को ‘ज्ञान का स्पंज’ अर्थात् नई बातों या चीजों को सीखकर ज्ञानी बनाने के स्थान ‘रेकार्ड प्लेअर’ अर्थात् जानकारी को याद रखने और ज़रूरत पड़ने पर उसे दोहराने वाली मशीन बना रही है। अगर मेरी बात से सहमत ना हों तो स्वयं से एक छोटा सा प्रश्न पूछ कर देख लें, ‘आप बच्चे को सही उत्तर देना सिखा रहे हैं या फिर सही प्रश्न पूछना?’
साथियों बच्चों की स्कूली शिक्षा के दौरान हमारा सारा फ़ोकस सिर्फ़ एक बात पर रहता है, वह पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर दे सके। फिर भले ही उसे उत्तर आया कैसे समझ आया हो या नहीं। इसी वजह से बच्चे भी समझने के स्थान पर रटना और प्रतियोगी परीक्षा में ग़लत उत्तर पहचान कर सही उत्तर निकालना जैसे रास्ते अपनाते हैं।
इसके विपरीत अगर आप सफल लोगों को देखेंगे तो आप पाएँगे की वे सही प्रश्न पूछने की कला जानने के कारण ही आज वे तमाम विपरीत परिस्थितियों से जीतकर, इस मुक़ाम तक पहुंचे हैं। उदाहरण के लिए आप अमेरिका के अपने समय के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक, जॉन डी रॉकफेलर को ही ले लीजिए। जॉन के दोस्त उन्हें ‘द स्पंज’ कहा करते थे क्यूँकि वे हर पल नई चीजों को जानने के बारे में उत्सुक रहा करते थे।
चीजों को सीखने और समझने या यूँ कहूँ नया ज्ञान लेने की उनकी ललक का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हनीमून पर जाते समय उन्होंने गाड़ी चालक से इतने सवाल किए थे की उसने सवारी ले जाने के स्थान पर उन्हें छोड़ना उचित समझा। इसके बाद उन्होंने स्वयं गाड़ी चलाने का निर्णय लिया और एक ऐक्सिडेंट के शिकार भी हुए हालाँकि उन्हें कोई गम्भीर चोट नहीं लगी। ठीक इसी तरह एक बार उन्होंने अपने टूर गाइड से इतने सवाल किए की उसने अंत विनती कर निवेदन किया की अब वे और सवाल ना पूछें क्यूँकि उसने उन्हें हर वो कहानी सुना दी है, जो पता थी।
वैसे यहाँ मैं आपसे जॉन के विषय में एक बात और साझा करना चाहूँगा, उनके प्रश्न सिर्फ़ इतिहास को लेकर या सामने वाले को परेशान करने के उद्देश्य को लेकर नहीं होते थे। व्यवसाय में भी अगर कोई उनके पास नया प्रस्ताव लेकर आता था तो वे उनसे भी हर सम्भव प्रश्न इस तरह से पूछते थे की वे उस विषय में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी या ज्ञान को अवशोषित कर सकें। वे अपने समय का ज़्यादातर हिस्सा महत्वपूर्ण बातों को सीखने और समझने में लगाते थे।
मेरा तो मानना है कि जॉन डी रॉकफेलर अपनी जिज्ञासु प्रवृति के कारण ही सबसे धनी व्यक्तियों में से एक बन पाए। याद रखिएगा दोस्तों, जिज्ञासु मन अजेय है इसलिए सही प्रश्न पूछने वाला व्यक्ति कभी जीवन में भटक नहीं सकता है। वह अपना रास्ता खोज ही लेता है। इसलिए दोस्तों, ना सिर्फ़ अपने बच्चों में बल्कि खुद के अंदर भी कभी ख़त्म ना होने वाली जिज्ञासा विकसित करें। अपनी और बच्चों की उत्सुक्ता को उस स्तर पर ले जाएँ जहाँ दूसरों की जिज्ञासा शांत होने के बाद भी आपके अंदर विषय की और गहराई में जाने की इच्छा ज़िंदा रहे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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