Apr 29, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, अक्सर इस दुनिया में ज़्यादातर लोगों को आप परेशान, उलझा हुआ पाते हैं। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह ग़लत प्राथमिकताओं के आधार पर जीवन जीना है। उदाहरण के लिए हम बच्चों के लिए सफलता, ख़ुशी, शांति, सुख जैसी जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीजों को परिभाषित करते समय उन्हें भविष्य से
उदाहरण के लिए हम बच्चों को सफलता, ख़ुशी, शांति, सुख जैसी महत्वपूर्ण चीजों को अपना लक्ष्य बनाने के लिए प्रेरित तो करते हैं लेकिन बताते समय जान करके इन्हें भविष्य से जोड़ देते हैं। अर्थात् पहले तुम इस परीक्षा को अच्छे से उत्तीर्ण करो तो तुम्हें यह सब मिलेगा। याने हम ही उस बच्चे को वर्तमान छोड़ भविष्य में रहना सिखा रहे हैं और जब वह भविष्य में रहना सीख बड़ा हो, अपने कैरियर को बनाने निकल जाता है, तब हम उसे समझाने का प्रयास करते हैं कि अपने जीवन, अपने स्वास्थ्य, अपने परिवार पर ध्यान दो। अपनी बात को और ज़्यादा गहराई से समझाने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, एक दिन गाँव में 3 साधु आए और एक घर के बाहर चबूतरे पर जाकर बैठ गए। उस घर में रहने वाली महिला बाहर आई और बोली, ‘महात्मन, मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ?’ तीनों में से एक साधु बोला, ‘बेटी हम भोजन करना चाहते हैं।’ उस महिला ने दोनों हाथ जोड़ते हुए उन्हें अपने घर के अंदर आने का आमंत्रण दिया, जिसे तीनों महात्माओं द्वारा यह कहते हुए नकार दिया कि हम तीनों किसी घर में कभी एक साथ प्रवेश नहीं करते हैं। तुम हममें से किसी एक को अपने घर में बुला सकती हो।’ उस महिला ने उसी पल इसकी वजह पूछी तो बीच में खड़े साधु बोले, ‘बेटी, मेरे सीधे हाथ की ओर खड़े साधु का नाम ‘धन’ और उल्टे हाथ की ओर खड़े साधु का नाम ‘सफलता’ है। मेरा नाम प्रेम है। अब तुम बताओ कि तुम हम तीनों में से किसे बुलाना चाहती हो।’
महात्मा का जवाब सुन वह महिला बहुत खुश हुई और धन को अपने घर में बुलाने का सोचने लगी। तभी उसके मन में ख़याल आया कि क्यों ना इस विषय में पति की राय भी ले ली जाए। विचार आते ही उसने तीनों महात्माओं से हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘महात्मन, अगर आप इजाज़त दें तो क्या मैं अपने पति से विचार विमर्श कर लूँ। साधु महाराज ने तुरंत हाँ में सर हिला दिया। वह महिला उसी वक्त खुश होते हुए घर के अंदर गई और अपने पति को पूरी बात बताते हुए बोली, ‘मैं धन को अपने घर में बुलाने के विषय में सोच रही हूँ। उनके आने से हमारा घर धन-दौलत से भर जाएगा और फिर कभी पैसों की कमी नहीं होगी।’ पति जो सारी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था, कुछ विचार करते हुए बोला, ‘क्यों न हम सफलता को बुला लें, उसके आने से हम जो करेंगे वो सही होगा, और हम देखते-देखते धन-दौलत के मालिक भी बन जाएँगे।’ दो पल चुप रहने के बाद पत्नी बड़े गम्भीर स्वर में बोली, ‘बात तो तुम्हारी सही है, पर इसमें हमें मेहनत बहुत करनी पड़ेगी। इसलिए मुझे तो लगता है धन को बुलाना ही ठीक है।’
काफ़ी देर तक दोनों की इस विषय पर बहस चलती रही लेकिन वे फिर भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए। ऐसे में पत्नी ने कहा कि हम महात्माओं को ही कह देंगे कि सफलता या धन में से जो आना चाहे वो आ जाए। वह महिला उसी पल बाहर गई और महात्माओं के सामने अपनी बात को दोहरा दिया। उस महिला का जवाब सुन तीनों साधु मुस्कुराए और बिना कुछ बोले वहाँ से चल दिए। महिला ने जब उन्हें रोकते हुए ऐसे जाने का कारण पूछा तो वे बोले, ‘पुत्री, दरअसल हम तीनों साधु इसी तरह द्वार-द्वार जाते हैं, और हर घर में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं। जो व्यक्ति लालच में आकर धन या सफलता को बुलाता है, हम वहां से लौट जाते हैं, और जो अपने घर में प्रेम का वास चाहता है, उसके यहाँ हम दोनों भी बारी-बारी से प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए इतना याद रखना कि जहाँ प्रेम है, वहां धन और सफलता की कमी नहीं होती।’
आशा है दोस्तों, अब आप मेरा आशय समझ गए होंगे कि बच्चों को शुरू से ही सही प्राथमिकताएँ सिखाना क्यों ज़रूरी है। जब आप सही प्राथमिकताओं के आधार पर जीवन जीना शुरू कर देते हैं तब सफलता, ख़ुशी, शांति, सुख जैसी जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें अपने आप व्यक्ति के जीवन में आ जाती हैं। उसके जीवन को सार्थक बना जाती हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
Comments