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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सही मनःस्थिति ही आपको जीने के लिए तैयार करती है…

May 28, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस दुनिया में कुछ लोग, कुछ ना होते हुए भी खुश और मस्त रह लेते हैं, तो कुछ लोग सब-कुछ होने के बाद भी परेशान और दुखी रहते हैं। मेरी नज़र में यह अंतर अक्सर मनःस्थिति की वजह से आता है। दोस्तों ताक़त, पैसे, संसाधन, परिवार, रिश्ते, दोस्त आदि का होना एक बात है और इन सब के होने से जीवन को बेहतर बनाना या पैसे, संसाधन जो भी आपके पास है उसे भोग पाना अलग बात है। जी हाँ दोस्तों, कई बार हम ख़राब या ग़लत विचार अथवा मनःस्थिति के चलते वरदान को भी अभिशाप बना लेते हैं। चलिए, अपनी बात को मैं आपको एक छोटी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ-


बात कई वर्ष पुरानी है, रामपुर नामक गाँव में मोहन नाम का एक बेहद ही भोला-भाला युवक रहा करता था। मोहन स्वभाव से इतना सरल और नरम दिल का था कि किसी परेशान या दुखी व्यक्ति को देखकर खुद दुखी हो ज़ाया करता था। एक दिन सभी गाँव वालों को सामूहिक रूप से संत के प्रवचन सुनने जाता देख उसने भी सोचा कि कहीं और समय बर्बाद करने से बेहतर है प्रवचन सुना जाए कम से कम कुछ अच्छा सीखने को मिलेगा। विचार आते ही मोहन सभी के साथ संत के प्रवचन सुनने चला गया। उस दिन संत ने बताया कि ईश्वर जब भी किसी की तपस्या से प्रसन्न होते हैं उसे मनचाहा वरदान दे देते हैं। मोहन ने सोचा लोगों की मदद करने के लिए इससे अच्छा और सरल कोई और मार्ग हो ही नहीं सकता। मैं भी वन में जाकर तपस्या करता हूँ और जब ईश्वर प्रसन्न होकर वरदान देंगे, तब उनसे लोगों के दुःख-दर्द दूर करने का उपाय पूछ लूँगा। विचार आते ही मोहन घने जंगल की ओर चल दिया।


जंगल में पहुँचकर मोहन ने एक कंदरा खोजी और फिर उसमें बैठ तपस्या में लीन हो गया। मोहन को कई सालों तक कठोर तपस्या करते देख ईश्वर प्रसन्न हुए और उसे दर्शन देते हुए बोले, ‘वत्स! उठो, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुआ, बोलो क्या वरदान चाहते हो?’ ईश्वर को समक्ष देख मोहन कुछ बोल ही नहीं पाया। ईश्वर के दूसरी बार पूछने पर वह बड़ी मुश्किल से, हिम्मत जुटाते हुए बोला, ‘प्रभु! आपके दर्शन ही मेरे लिए सब कुछ हैं। फिर भी अगर कुछ देना चाहें तो मुझे कुछ ऐसी युक्ति सुझाएँ जिससे मैं दीन-दुखियों की मदद कर सकूँ।’ ईश्वर मोहन की बात सुन मुस्कुराए और अपने पास से हरी पत्तियों की एक डाली उसे देते हुए बोले, ‘वत्स! यह पत्तियों की डाली सदैव हरी-भरी रहेगी। इसकी सहायता से तुम भूखे और दरिद्र व्यक्तियों की सेवा कर पाओगे। जब भी किसी भूखे या दरिद्र को देखो, इसमें से एक पत्ती तोड़कर उसका रस जरूरतमंद के मुख में डाल देना, वह उसी वक्त बलवान हो जाएगा। मोहन को आशीर्वाद देते ही ईश्वर अंतर्ध्यान हो गए।


ईश्वर का आशीर्वाद पाकर मोहन बहुत खुश था लेकिन आम मनुष्यों की तरह उसका मन चंचल ही था। ईश्वर का आशीर्वाद पा उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। जैसे, अब मैं गांव जाऊंगा और लोगों को यह आश्चर्यजनक कार्य करके दिखाऊंगा तो मेरा नाम होगा। लोग मुझे गांव का सरपंच बना देंगे, चारों ओर मेरी ख्याति फैल जाएगी। लेकिन तभी मन में आए एक नकारात्मक विचार ने उसके सपने को भंग कर दिया। वह सोचने लगा, ‘कहीं ईश्वर की दी इस पत्ती ने आशानुरूप काम नहीं किया तो सभी गाँव वाले मेरी हंसी उड़ाने लगेंगे। इस जग हंसाई से बचने के लिए क्यूँ ना मैं एक बार इन पत्तियों की शक्ति को आज़मा कर देख लूँ। विचार आते ही मोहन किसी भूखे या दरिद्र व्यक्ति को खोजने लगा, पर उस घने जंगल में उसे कौन मिलता? अचानक ही उसकी नज़र जंगल में पेड़ के नीचे, भूखे, प्यासे बेहोश पड़े एक दुर्बल शेर पर पड़ी। उसने सोचा क्यूँ ना इन पत्तियों की शक्ति को इसी पर आज़मा कर देख लिया जाए। विचार आते ही मोहन शेर के पास गया और ईश्वर द्वारा आशीर्वाद स्वरूप दी गई हरी पत्तियों की डाल में से एक हरी पत्ती तोड़कर उसका रस शेर के मुँह में डाल दिया। जैसे ही शेर के मुँह में उस पत्ती का रस गिरा, वह पहले की ही तरह बलवान और शक्तिशाली बन गया और उसने अपने सामने खड़े मोहन का शिकार कर अपनी भूख मिटा ली।


दोस्तों, मोहन की ही तरह अक्सर हम अपनी बेवक़ूफ़ी से अपने जीवन को मुश्किल बना लेते हैं और जो संसाधन या लोग हमारे जीवन में वरदान बनकर आते हैं, हम उन्हें अपने लिए अभिशाप बना लेते हैं। जीवन का असली मज़ा लेने के लिए आज से एक महत्वपूर्ण बात हमेशा याद रखिएगा, बिना अपनी मनःस्थिति ठीक रखें हम इस जीवन को ख़ुशी-ख़ुशी जी नहीं सकते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

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