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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

साधन-संसाधन नहीं बल्कि मनःस्थिति बनाती है, आपको सुखी !!!

Aug 11, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप जीवन में वाक़ई सफल होना चाहते हैं तो परिस्थितियों को ठीक करने से ज़्यादा मनःस्थिति को ठीक रखना ज़रूरी है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण से समझाने का प्रयास करता हूँ। मान लीजिए, आप घर से बहुत अच्छे से तैयार होकर पार्टी में जाने के लिए निकलते हैं। अभी आप आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि तेज़ बारिश शुरू हो जाती है। चूँकि आप पार्टी के लिए तैयार थे इसलिए आपका बारिश में भीगने से बचना आवश्यक है। अब आप बताइए बारिश से बचने के लिए आप क्या करेंगे या शायद यह कहना बेहतर रहेगा कि आप इन दो उपायों में से किसे चुनेंगे? पहला, बारिश को रोकने के लिए योजना बनाएँगे, उस पर काम करेंगे। दूसरा, बारिश से बचने के लिए एक शेड खोजेंगे।


आप भी सोच रहे होंगे क्या फ़ालतू का प्रश्न पूछा है? निश्चित तौर पर बारिश से बचने के लिए शेड खोजेंगे क्यूँकि बारिश को रोकना हमारे हाथ में नहीं है। मैं निश्चित तौर पर आपकी बात से सहमत हूँ कि पहला उपाय कोरी कल्पना से अधिक कुछ भी नहीं है, पर दोस्तों यही गलती तो हम जीवन में आने वाली समस्याओं या चुनौतियों के समाधान खोजते वक्त करते हैं और समस्या को दूर करने के लिए मनःस्थिति के स्थान पर परिस्थिति को ठीक करने या दोष देने लग जाते हैं।


वैसे मन में यह दुविधा होना कोई नई बात नहीं है, पुरातन काल से ही यह इंसान इन दो विचारों के द्वन्द में उलझकर दो हिस्सों में बँटा हुआ है। पहले समूह का मानना है कि संसाधनों की बहुलता से ही प्रगति और प्रसन्नता को पाया जा सकता है। इसके पीछे लोगों की यह सोच काम करती है कि अगर हमारे पास संसाधन उपलब्ध होंगे तो हम किसी भी समस्या का समाधान निकाल लेंगे। इसके विपरीत दूसरी विचारधारा कहती है कि मनःस्थिति ही परिस्थितियों को जन्म देती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अगर मनःस्थिति सही होगी तो ही आप साधनों का सही उपयोग कर पाएँगे अन्यथा ज़रूरत की सभी वस्तुएँ पर्याप्त मात्रा में होने के बावजूद भी आपको उनका अभाव ही महसूस होता रहेगा, जो आपके मन में असंतोष को बढ़ाता रहेगा।


पहली विचारधारा कहती है, यदि हम अपने मन को साध लें, तो जितने भी साधन उपलब्ध हैं उसमें आराम से अच्छा जीवन जिया जा सकता है। अगर कहीं आपको लगता भी है कि वाक़ई कुछ कमी है तो आप संयम, संतोष, सहानुभूति जैसे सद्गुणों की सहायता से अपना जीवन अच्छे से संतुष्टि के साथ आगे बढ़ा सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो अगर मन पर कंट्रोल है तो कोई भी अभाव आपको परेशान नहीं कर सकता। वहीं दूसरी विचारधारा कहती है जितने अधिक साधन, उतना अधिक सुख। अर्थात् साधन सम्पन्न और समर्थ होने से हम किसी भी तरह की स्थितियों में मनचाहे तरीके से मौज करते हुए जीवन जी सकते हैं।


दोस्तों, अपनी सोच के समर्थन में दोनों तरह के लोगों के अपने तर्क हो सकते हैं और उसके आधार पर अपनी जीवनशैली हो सकती है। पर मेरी नज़र में दूसरी विचारधारा अर्थात् साधनों के आधार पर परिस्थितियों को साध कर सुखी रहने की चाह रखने वाले लोगों की तुलना में पहली विचारधारा वाले लोग अर्थात् मन को साध कर जीने वाले लोग ज़्यादा संतुष्ट और खुश रहते हुए जीवन जी पाते हैं क्यूँकि साधन जुटाने के लिए भी संसाधन की ज़रूरत पड़ती है। इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ‘सफल होना चाहते हैं तो परिस्थितियों को ठीक करने से ज़्यादा मनःस्थिति को ठीक रखने पर ध्यान दें।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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