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  • Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सिर्फ़ आप सही हैं, ऐसा कभी नहीं हो सकता…

Apr 24, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरे समान आपने भी बचपन में 'पाँच अंधे और एक हाथी' की कहानी सुनी होगी, लेकिन फिर भी संक्षेप में उसे आपको सुनाते हुए आज के लेख की शुरुआत करता हूँ। एक गाँव में पाँच अंधे दोस्त रहा करते थे। एक दिन गाँव में हाथी आने पर उन पाँचों ने अपनी जिज्ञासा, ‘हाथी कैसा होता है?’, दूर करने का निर्णय लिया। वे वहाँ मौजूद अन्य गाँव वालों से बोले, ‘भाइयों, हम पाँचों ने हाथी के बारे में सिर्फ़ सुना ही सुना है कि वह बहुत ही विशालकाय होता है। लेकिन आँखें ना होने के कारण हम कभी उसे देख नहीं पाए। हम पाँचों हाथी को छू कर महसूस करना चाहते हैं कि वह कैसा होता है।


गाँव वालों को उनकी बात उचित लगी और उन्होंने उनकी जिज्ञासा शांत करने का निर्णय लिया। वे उन पाँचों को हाथी के पास ले गए और उन्हें हाथी को छू कर देखने का कहा। गाँव वालों की बात सुन पाँचों अंधे उत्साहित थे, उनमें से पहला अंधा आगे बढ़ा और हाथी का पैर छूते हुए बोला, ‘मैं समझ गया हाथी एक खम्भे के समान बड़ा होता है।’ तभी दूसरा अंधा, जो हाथी की पूँछ पकड़ कर उसे महसूस करने का प्रयास कर रहा था, बोला, ‘हाथी तो रस्सी की तरह होता है।’ तीसरा व्यक्ति जो हाथी की सूंड छू कर देख रहा था बोला, ‘मुझे तो लग रहा है कि हाथी एक मोटे पाइप के समान है।’ तीनों की बात सुन चौथा व्यक्ति जो हाथी के कानों को छू कर देख रहा था, मुस्कुराया और बोला, ‘तुम लोग क्या फ़ालतू की बात कर रहे हो हाथी तो एक बड़े हाथ के पंखे के समान होता है।’ पाँचवा व्यक्ति हाथी के पेट पर हाथ रखता हुआ बोला, ‘तुम सब लोगों को इतनी भी समझ नहीं है कि छू कर सही-सही बता सको की हाथी कैसा होता है? हाथी तो एक दीवार के समान बहुत बड़ा होता है।’ पाँचवे व्यक्ति की बात सुन सारे अंधे आपस में बहस करने लगे और खुद को सही साबित करने का प्रयास करने लगे। बीतते समय के साथ उनकी आवाज़ थोड़ी तल्ख़ और रूखी होती जा रही थी और कुछ ही देर में पाँचों सही होने के बावजूद भी आपस में झगड़ने लगे।


सोच कर देखिएगा दोस्तों कहीं यही स्थिति तो हम सबकी नहीं है? ज़रा-ज़रा सी बात पर बिना सामने वाले व्यक्ति के तर्क की वज़ह जाने खुद को सही साबित करने में लग जाते हैं और रिश्तों में खटास पैदा कर लेते हैं, जैसा कि उन पाँच अंधों के साथ हुआ था। असल में देखा जाए दोस्तों तो सत्य, सच तथा सच्चाई कभी भी अलग नहीं होती है। उसे तो बस हमारा देखने का नज़रिया अलग बना देता है, जिसे दृष्टि भेद भी कहा जा सकता है। वैसे मतों का भेद सिर्फ़ आपसी सम्बन्धों या कुछ लोगों के बीच नहीं होता है, अपितु यह तो जीवन के हर क्षेत्र में होता है। जैसे व्यवसायिक जगत में खुद को दूसरे से अलग या बेहतर दिखाने के प्रयास में हम एक ही चीज़ को अलग-अलग तरह से परिभाषित करने का प्रयास करते हैं। जैसे, एक व्यक्ति बोलेगा कि दिन के बाद रात होती है तो दूसरा व्यक्ति पहली बात का खंडन करते हुए कहेगा कि नहीं-नहीं दिन के बाद रात नहीं, अपितु रात के बाद दिन होता है। यही शायद आज धर्म के नाम पर भी हो रहा है।


थोड़ा गहराई से सोचकर देखिएगा दोस्तों, समझ के इस फेर के कारण ही इंसान अपनी ऊर्जा, समय और बहुमूल्य जीवन को बर्बाद कर रहा है। जी हाँ साथियों, आजकल समझ की इस छोटी सी भूल के कारण लोग जीवन को जीने के स्थान पर मनमुटाव के चलते, आपसी झगड़े या विवाद में बर्बाद कर रहे हैं। अगर आप इस अनावश्यक विवाद से बचना चाहते हैं तो सबसे पहले स्वीकारें कि कोई सुबह की धूप में हिमालय को देख उसे सुनहरा बता सकता है तो कोई उसे चाँदनी रात में देखकर चाँदी के समान चमकता हुआ बता सकता है। अर्थात् दोस्तों ऐसी परिस्थितियों में हमें स्वीकारना होगा कि न तो पहले व्यक्ति का कथन झूठा है और ना ही दूसरे का, दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही हैं। इसीलिए भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनेकांतवाद में कहा है कि परम सत्य केवल एक होने पर भी वह अलग-अलग कोणों से देखने पर अलग - अलग ही नजर आयेगा। तुम सत्य हो सकते हो ये बात बिल्कुल सही है, लेकिन केवल तुम ही सत्य हो सकते हो ये कदापि संभव ही नहीं।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com



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