सिर्फ़ बोलना नहीं, सुनना भी सीखिये…
- Nirmal Bhatnagar

- Jul 18
- 3 min read
July 18, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, किसी की कही बात को सुनना और उसे ध्यान से सुन कर समझना दोनों दो बिल्कुल अलग-अलग बातें हैं। आवाज का कानों में जाना एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में हम सिर्फ़ आवाज़ को महसूस करते हैं। लेकिन कानों में गई आवाज को समझना और उसमें छुपे भावों को महसूस करना, असली लिस्निंग याने आवाज को ध्यान से सुनकर, भावों को समझना है।
यकीन मानियेगा दोस्तों, रिश्तों के तेज़ी से बदलते समीकरणों के समय में आज यह सबसे आवश्यक कला है। आज हर कोई बोलने के लिए बोलता है और सुनने वाला जवाब देने के लिए सुनता है, याने कही गई बात को सुन कर समझने के लिए ज्यादातर लोग तैयार ही नहीं है। जबकि ध्यान से सुनकर, कहे गए शब्दों के भावों को समझे बिना गहरी समझ और जानकारी पर आधारित अच्छे रिश्ते बनाना संभव ही नहीं है।
यह बात शिक्षा के संदर्भ में भी ठीक इसी तरह लागू होती है। याने शिक्षा में भी ध्यान से भावों को समझकर सुनने का महत्व है। एक छात्र अगर ध्यान से सुनना सीख ले, तो उसकी सीखने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। शिक्षक द्वारा दी गई जानकारी और निर्देश को ध्यान से सुनने वाला बच्चा न केवल बेहतर अंक लाता है, बल्कि अवधारणाओं को भी गहराई से समझता है। यही कारण है कि टॉप करने वाले बच्चे अक्सर बेहतरीन श्रोता होते हैं।
लेकिन डिजिटल विकर्षणों याने डिजिटल डिस्ट्रैक्शंस की वजह से तेज़ी से बदलते इस नए युग ने सबसे ज़्यादा इंसान की इसी योग्यता को चुनौती दी है। मोबाइल, सोशल मीडिया और मल्टीटास्किंग ने किसी भी बात या कार्य पर हमारी ध्यान देने की क्षमता कम कर दी है। जिसके कारण आज कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग चुनौतीपूर्ण जीवन जी रहे हैं।
दोस्तों, मेरी नजर में इस समस्या का एक ही समाधान है, सक्रिय सुनने याने ऐक्टिव लिस्निंग की आदत डालना और हाँ सिर्फ़ पढ़ते समय नहीं, बल्कि जीवन के हर रिश्ते में यह महत्वपूर्ण है। जी हाँ दोस्तों, ध्यान से सुनाना कितना महत्वपूर्ण है, इस बात का अंदाजा आप शिक्षक-विद्यार्थी, डॉक्टर-रोगी, वकील-मुवक्किल, पति-पत्नी, पेरेंट्स और बच्चे आदि किसी भी रिश्ते के विषय में सोच कर लगा सकते हैं। आप पाएँगे कि इन सभी रिश्तों की बुनियाद समझ और भरोसे पर है और यह भरोसा तभी बनता है, जब हम ध्यान से सुनते हैं। याने जब हम सिर्फ़ कानों से नहीं बल्कि दिल से भी सुनते हैं। दूसरे शब्दों में कहूँ तो ‘सुनना’ और ‘सुनाई देना’, दो अलग-अलग बातें हैं। जब आप सिर्फ़ सुनते हैं तो शब्द कानों से गुजर जाते हैं, लेकिन जब आप ध्यान से सुनते हैं तो वे आपके दिल को छू जाते हैं।
दोस्तों, ध्यान से भावों सहित सुनने के वैसे तो अनेकों लाभ हैं, लेकिन उनमें से कुछ महत्वपूर्ण लाभ निम्न है-
1) हम कहने वाले को बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं।
2) कानों के साथ दिल से सुनना हमारे रिश्तों को मजबूत बनाता है.
3) हम अधिक ज्ञान और अनुभव अर्जित करते हैं।
4) यहाँ तक कि प्रकृति की सूक्ष्म ध्वनियों को सुनकर ही एक कवि प्रेरणा पाता है।
5) सुनना हमें सिर्फ़ जानकारी नहीं देता, बल्कि यह हमारे व्यक्तित्व को भी निखारता है।
दोस्तों, अगर आप जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो सिर्फ़ बोलना नहीं, सुनना भी सीखिए। यह एक ताकत है, जो आपको हर क्षेत्र में आगे बढ़ाती है। यह एक ऐसी कला है, जो आपको ज्ञान भी देती है और लोगों का विश्वास भी।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर




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