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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

‘सिर्फ़ मैं ही सही हूँ’ के अहंकार से बचें…

Dec 20, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। जंगल में एक बार बहुत कड़ाके की सर्दी पड़ी जिसके कारण रोज़ाना कई जानवरों की मौत होने लगी। जिसके कारण सभी जानवरों में डर और घबराहट का माहौल फैल गया। एक दिन जंगल के राजा ने सभी जानवरों की मीटिंग बुलाई और उन्हें सुझाव दिया कि ठंड से बचाव के लिए रात्रि के समय सभी जानवर समूह में पास-पास रहें, जिससे उनके शरीर की गरमाहट बरकरार रहे और साथ ही अगर संभव हो तो आग के समीप रहें। सिवाये बंदरों के एक छोटे समूह के सभी जानवरों ने राजा का आभार व्यक्त करा और वहाँ से चले गए। लौटते वक़्त बंदरों के समूह में से एक बंदर बोला, ‘राजा जो कह रहे थे उसमें क्या नया था?’ तभी दूसरा बंदर उस पर प्रतिक्रिया देते हुए बोला, ‘छोटू, तुम बिलकुल सही कह रहे हो। हमारे बंदर राजा इससे बेहतर जानते हैं।’ दूसरे बंदर के इतना कहते ही समूह में मौजूद सभी बंदर अपने समूह के लीडर याने राजा बंदर की तारीफ़ करने लगे, जिसे सुन बंदर राजा चने के झाड़ पर चढ़ते जा रहे थे और इसी चक्कर में रात को ठंड से बचने के लिए कोई तैयारी नहीं कर पाए।


रात होते-होते बढ़ती ठंड के कारण अपने समूह के बंदरों को परेशान होता देख बंदर राजा ने सभी को ढाढ़स बँधाया और बोले, ‘तुम कुछ चिंता मत करो मैं अभी कुछ उपाय करता हूँ।’ इतना कहते ही बंदर राजा एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते हुए कुछ सोच-विचार करने लगे। कुछ पलों बाद उन्होंने अन्य सभी बंदरों को बुलाया और उन्हें कुछ सुखी लकड़ी एकत्र करने के लिए कहा जिससे वे उसमें आग लगाकर ताप सकें।


बंदर राजा से आदेश पा सभी बंदर इधर-उधर से लकड़ी लाने लगे और राजा बंदर उन लकड़ियों को जलाने के लिए आग का प्रबंध करने निकल पड़े। तभी अचानक राजा बंदर को एक जुगनू दिखाई दिया। राजा बंदर ने सोचा शायद यह चिंगारी है, इसलिए उसने उसे पकड़ा और समूह द्वारा एकत्र किए गए सूखे पत्तों और लकड़ी को जलाने का प्रयास करने लगे। अर्थात् बंदर राजा जुगनू को कभी पत्तों पर तो कभी सूखी लकड़ी पर रगड़ कर आग उत्पन्न करने का प्रयास करने लगे ताकि वे अपनी सभी बंदरों की ठंड भगा सकें। कुछ ही देर में उस जुगनू की जान निकल गई।


पास ही के पेड़ पर अपने घोंसले में बैठी चिड़िया यह सब देख रही थी। उसने बंदर राजा से कहा, ‘अरे यह कोई आग की चिंगारी थोड़ी है जिससे तुम लकड़ी जलाने का प्रयास कर रहे हो। यह तो एक जुगनू है, तुमने देखा नहीं थोड़ी देर पहले ही मैंने एक जुगनू का शिकार कर अपना पेट भरा है। अगर यह आग की चिंगारी होती तो मैं जल नहीं जाती? मेरी नज़र में तो तुम सभी बेकार की मेहनत कर रहे हो। चिड़िया की बात सुन राजा बंदर को ग़ुस्सा आ जाता है और वह अपने समूह को आदेश देकर उस चिड़िया को मरवा देता है।


उक्त कहानी दोस्तों, मुझे हाल ही में एक संस्था की हालत देख कर उस समय याद आई, जब मैंने संस्था संचालक को चाटुकारों, चमचों याने हाँ में हाँ मिलाने और झूठी तारीफ़ों के पुल बांधने वाले लोगों के समूह से घिरा पाया। ग़लत लोगों के समूह से घिरे संचालक महोदय की स्थिति ‘अंधों में काना राजा’ समान थी। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि ग़लत लोगों की सलाह संस्था में अच्छे और काबिल लोगों की बलि बिलकुल उसी तरह ले रही थी जिस तरह बंदरों के समूह ने मदद करने वाली चिड़िया की बलि ली थी। ग़लत सलाहकारों और ग़लत साथ के कारण बार-बार लिए गए ग़लत निर्णय उनकी संस्था को लगातार नुक़सान पहुँचा रहे थे।


इसी तरह दोस्तों, कई बार हम ग़लत लोगों को अपना आइडल मान लेते हैं और उसके जैसा बनने निकल पड़ते हैं। जैसे आईने में अपना चेहरा देख हीरो बनने निकल पड़ना। किसी को गाता देख, गायक बनने का प्रयास करना और किसी को क्षेत्र विशेष में सफल देख, उसके समान बनने का प्रयास करने लगना। यह स्थिति जुगनू से आग लगाने के समान ही है, जिसके कारण कई लोगों की आधी से ज़्यादा ज़िंदगी ऐसे ग़लत प्रयासों में निकल जाती है। याने उनका जीवन बीतता जाता है और उन्हें सफलता हाथ नहीं लगती है।


याद रखियेगा दोस्तों, एक सच्चा सलाहकार या साथी आपका सामना आईने से करवाता है जिसके कारण आप हक़ीक़त से रूबरू हो पाते हैं और अपने लक्ष्यों को जल्दी और बिना नुक़सान करे पा पाते हैं। इसलिए ‘सिर्फ़ मैं ही सही हूँ’ के अहंकार से बचें और ‘जुगनू’ और ‘चिंगारी’ के अंतर को समझ कर अपने जीवन को सफल बनाएँ।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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