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सीखने के लिए सुनना है ज़रूरी…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Updated: Jun 28, 2023

June 27, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में कई बार लोग अपनी धारणाओं के कारण इतने कंडिशंड हो जाते हैं कि वे कही गई बातों का सही अर्थ समझ ही नहीं पाते हैं। यह स्थिति उस वक्त और विकट हो जाती है जब आप किसी कार्यशाला के दौरान यह नज़रिया रखते हैं। कार्यशाला के दौरान कंडिशंड माइंड नई सूचनाओं या जानकारियों को धारणाओं के आधार पर प्रोसेस करता है, जिसके कारण आप कही गई बातों का अर्थ अपनी सोच के अनुसार ही निकालते है। जिसके कारण आप एक नया विचार, एक नई सीख या जीवन को दिशा देने वाली बातों को मिस कर जाते हैं। अपनी बात को मैं आपको दो घटनाओं के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ-


पहली घटना हाल ही में खंडवा के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान उस वक्त घटी जब मैं अतीत और भविष्य में रहने के नुक़सान और वर्तमान में रहने के फ़ायदे बता रहा था। उसी वक्त एक शिक्षक ने मुझसे प्रश्न करते हुए कहा, ‘सर, मेरे मानना है कि अतीत में रहे बग़ैर सीखना और भविष्य में जाए बिना जीवन में आगे बढ़ना सम्भव नहीं है। इसलिए मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ।’ प्रश्न सुन मैं हल्का सा मुस्कुराया क्योंकि जो बात वह सज्जन सुनना चाह रहे थे, वह मैं पहले ही कह चुका था। लेकिन सेलेक्टिव लिसनिंग के कारण वे उस पर ध्यान नहीं दे पाए थे। फिर भी मैंने पहले उन्हें अतीत में रहने और उससे सीखने के अंतर को एक बार फिर समझाया और इसके पश्चात मैंने उनसे वर्तमान में योजनाबद्ध तरीके से कार्य कर भविष्य के लक्ष्यों को हक़ीक़त में बदलने की प्रक्रिया पर चर्चा करी। इस पूरी चर्चा के दौरान वे अपनी धारणाओं के आधार पर बताई गई बातों को अपने तर्कों से तोल रहे थे और उस पर बेतुके प्रश्न कर रहे थे। हालाँकि इसके बाद भी मैंने लगभग 20 मिनिट लगाकर किसी तरह उन्हें संतुष्ट करने का प्रयास करा। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया ने उन सज्जन सहित वहाँ मौजूद लगभग 50 लोगों के 20 मिनिट बर्बाद कर दिए और उनसे कुछ नया सीखने का मौक़ा छीन लिया।


दूसरी घटना उज्जैन के एक प्रतिष्ठित विद्यालय के शिक्षकों को काउन्सलिंग सिखाने के दौरान घटी। पहले दिन काउन्सलिंग की थ्योरी सिखाने के बाद दूसरे दिन प्रेक्टिकल काउन्सलिंग सेशन के दौरान एक छात्रा, जो विषय चयन एवं अपने भविष्य को लेकर अनिश्चय की स्थिति में थी, अपने शिक्षकों के पास राय लेने के लिए आई। शुरुआती बातचीत के दौरान जब एक शिक्षक ने बड़ी चूक करी तो उन्हें सही तरीक़ा सिखाने के उद्देश्य से मैंने पहल करते हुए छात्रा से बात करना शुरू कर दिया। लगभग 5 मिनिट की बातचीत के दौरान जब छात्रा थोड़ी संतुष्ट नज़र आई तो अचानक ही वहाँ मौजूद शिक्षकों ने बीच में ही अपनी धारणाओं के आधार पर बातें करना शुरू कर दी। शिक्षकों द्वारा अचानक बीच में बोलने के कारण मुझे अपनी बात को बीच में ही रोकना पड़ा जिसकी वजह से दो बड़े नुक़सान हुए। पहला, एक जरूरतमंद छात्रा सही काउन्सलिंग से वंचित रह गई, जिसका असर उसके पूरे कैरियर पर पड़ सकता था। दूसरा, वहाँ मौजूद शिक्षक भी काउन्सलिंग करने के सही तरीक़े को सीखने से वंचित रह गए।


दोस्तों, अगर आप बारीकी से दोनों घटनाओं का आकलन करेंगे तो पाएँगे धैर्य ना रख पाने और अपनी मान्यताओं और धारणाओं के आधार पर सुनने के कारण दोनों ने नए नज़रिए से ज़िंदगी को देखने और जीवन को बेहतर बनाने वाली बातों को सीखने का मौक़ा छोड़ दिया था। याद रखिएगा साथियों, कानों में शब्दों का जाना और किसी की बात को सुनना, दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं। अगर आपके कानों में सिर्फ़ शब्द जा रहे हैं याने आप कहने वाले के भाव, उद्देश्य और शब्दों की गहराई को समझ नहीं पा रहे हैं तो यक़ीन मानिएगा आप कहे गए शब्दों के पीछे छुपे उसके मूल अर्थ को भी समझने का मौक़ा चूक रहे हैं। तो आईए दोस्तों, आज से हम पूर्ण गहराई के साथ सुनने की आदत विकसित करते हैं। जिससे हम नई बातों को सीखने के लिए खुद को तैयार कर सकें।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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