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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

सीखा कहीं से भी जा सकता है…

Dec 10, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप सीखना और समझना चाहें तो आप कहीं से भी, किसी से भी, किसी भी उदाहरण से और किसी भी परिस्थिति में सीख सकते हैं। इस बात का एहसास मुझे हाल ही की एक रेल यात्रा के दौरान हुआ। जिस कोच में मैं यात्रा कर रहा था उसी कोच में कुछ बुजुर्ग तीर्थयात्री भी यात्रा कर रहे थे। वे सभी लोग कभी मिल कर भजन गा रहे थे, तो कभी एक दूसरे को जीवन दर्शन से संदर्भित किस्से सुना रहे थे। कुल मिलाकर कहूँ तो पूरी यात्रा के दौरान ऐसा लग रहा था मानो मैं एक सत्संग में बैठा हुआ हूँ।


यात्रा के दौरान एक बुजुर्ग सज्जन व्हाट्सएप पर से एक संदेश पढ़ते हुए बोले, ‘चलो बताओ, रोटी कितने प्रकार की होती है।’ उनके प्रश्न को सुन पहले तो थोड़ा हँसी-मजाक का माहौल बना और कोई मोटी, तो कोई पतली, तो कोई मिस्सी या फिर कोई ज्वार, बाजरा या मक्के के आटे की रोटी के बारे में बताने लगा। उन सभी लोगों के जवाब पूरे होते ही वे सज्जन अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘कुछ देर पहले तक मेरे भी विचार तुम्हारे समान ही थे। वो तो भला हो इस व्हाट्सएप मेसेज भेजने वाले का, जिसके कारण मुझे आज पता चला है कि भावना और कर्म के आधार से रोटी चार प्रकार की होती है।’


यकीन मानियेगा दोस्तों, उनके इतना कहते ही ना सिर्फ़ मेरे, बल्कि वहाँ बैठे हर इंसान के कान खड़े हो गए क्योंकि रोटी को भावना और कर्म के आधार पर भी बाँटा गया है या बाँटा जा सकता है, ऐसा वहाँ मौजूद किसी भी शख़्स ने कभी सोचा ही नहीं था। इसलिए सभी लोग अब उनकी ओर आश्चर्य मिश्रित निगाहों से देखने लगे। लेकिन वे सभी लोगों को लगभग नजरअंदाज कर, व्हाट्सएप पे नजरें गढ़ाते हुए बोले, ‘देखो सबसे पहली रोटी सबसे अधिक स्वादिष्ट होती है क्योंकि यह माँ की ममता और वात्सल्य से भरी होती है। इस रोटी से पेट तो हमेशा भरता है, लेकिन मन कभी नहीं भरता।’


इतना कहकर उन्होंने अपनी नजरें उठाई और सभी की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से इस तरह देखा मानो पूछ रहे हों, ‘सही कहा ना मैंने?’ वहाँ मौजूद उनके साथी शायद उनके अनकहे प्रश्न को भाँप गए थे। वे तपाक से बोले, ‘बात तो तुमने सोलह आने सच कही है। पर अब शादी के बाद, इस उम्र में माँ के हाथ की रोटी मिलती कहाँ है।’ इस पर वे सज्जन हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले, ‘तुमने भी सही कहा, इसलिए दूसरी रोटी पत्नी के हाथों की बनी होती है। इस रोटी में अपनापन और समर्पण का भाव होता है। इसलिए इस रोटी से पेट और मन दोनों भर जाता है।’


इतना सुनते ही वहाँ मौजूद उनके एक अन्य साथी अनायास ही बोले, ‘वाह! क्या गहरी बात कही है तुमने। ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं था। अब जल्दी से बताओ तीसरी रोटी किसकी होती है।’ वे सज्जन मुस्कुराते हुए बोले, ‘तीसरी रोटी बहू की होती है। जिसमें सिर्फ़ कर्तव्य का भाव होता है। यह रोटी थोड़ा स्वाद भी देती है, पेट भी भर्ती है और वृद्धाश्रम की अनजानी परेशानियों से भी बचाती है।’ उनके इस कथन ने वहाँ के माहौल को थोड़ा गंभीर कर दिया जिसके कारण वहाँ कुछ पलों के लिए चुप्पी भी छा गई। इस मौन को तोड़ते हुए उनके एक दोस्त बोले, ‘चलो, अब चौथी रोटी के विषय में भी बता दो।’ वे सज्जन इस बार पूर्ण गंभीरता के साथ बोले, ‘चौथी रोटी नौकरानी के हाथों की बनी होती है। जिससे ना तो इंसान का पेट भरता है, ना ही मन तृप्त होता है और स्वाद की कोई गारंटी नहीं। इसलिए इससे बचना ही बेहतर है।’


इतना कहकर वे सज्जन कुछ पलों के लिए रुके, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘इसलिए हमेशा माँ की पूजा करो, पत्नी को अपना सबसे अच्छा दोस्त बना कर जीवन जियो, बहू को बेटी समझो और उसकी छोटी-मोटी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करो, जिससे वह खुश रहे। याद रखना बहु ख़ुश रहेगी तो बेटा भी आपका ध्यान रखेगा और यदि गलती से हालात चौथी रोटी तक ले आए तो यह सोच कर ईश्वर का शुक्र बनाना की कम से कम उसने तुम्हें ज़िंदा तो रखा हुआ है।’


दोस्तों, पढ़ा तो उन सज्जन ने व्हाट्सएप मेसेज ही था, पर इससे उन्होंने ना सिर्फ़ अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए सीखा था, बल्कि वहाँ मौजूद हर किसी को सिखाया भी था। उन्होंने स्वाद के लिए खाने के स्थान पर, जीने के लिए खाने के विषय में बताया था ताकि जीवन अच्छे से काट सके; रिश्तों में संजीदगी बरक़रार रह सके और हम फ़ालतू की बातों पर ध्यान देने के स्थान पर महसूस कर पाएँ कि हम कितने ख़ुशक़िस्मत हैं। इसलिए ही दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ‘सीखा कहीं से भी जा सकता है…’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर


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