Aug 27, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को ग्लोबल हेराल्ड परिवार की ओर से कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। यकीनन दोस्तों, हम सभी क़िस्मत के बहुत धनी हैं क्योंकि हम सभी को कृष्ण भगवान की अध्ययन स्थली उज्जैन के आस-पास अपने जीवन को जीने का अवसर मिला है। लेकिन दोस्तों, अवसर मिलना और अवसर को भुनाना दो बिलकुल अलग-अलग बातें होती है। इसीलिए क़िस्मत को मानसिक सतर्कता और अवसरों को पहचानने की हमारी क्षमता का मिलन बताया गया है। आप भी सोच रहे होंगे त्यौहार के दिन कड़े शब्दों में क्यों बात कर रहा हूँ? तो पहले मैं आपको बता दूँ कि इसकी एक ही वजह है, इस विशिष्ट दिन याने कृष्णाष्टमी को भगवान कृष्ण के जीवन से कुछ सीखने का प्रयास करना, जिससे हम अपने जीवन के हर आने वाले दिन को पिछले दिन से बेहतर बना सकें। तो चलिए, आज के लेख की शुरुआत अपने जीवन के एक अनुभव को साझा करते हुए करता हूँ।
बात लगभग दो वर्ष पूर्व की है जब मेरे गुरु अपने परिवार के साथ उज्जैन घूमने के लिए आये थे। यात्रा के पहले दिन मेरे गुरु ने उन स्थानों की सूची बनाई जहाँ वे घूमने जाना चाहते थे। मुझसे घूमने में लगने वाले समय पर चर्चा कर उन्होंने मुझे संध्या में मिलने का कहा और अपनी इस धार्मिक यात्रा की शुरुआत गुरु सांदीपनी आश्रम से करी। गुरु के जाने के बाद मैं निश्चिंत था कि अगले कुछ घंटों में, मैं अपनी सभी व्यवसायिक ज़िम्मेदारियों को पूर्ण कर लूँगा। लेकिन मुझे ऐसा करने का मौक़ा मिला ही नहीं क्योंकि लगभग २ घंटों में ही मेरे गुरु वापस आ गये और उन्होंने मुझे कुछ चर्चा करने के लिए होटल बुला लिया।
मैं तत्काल अपने सभी कार्यों को बीच में छोड़ कर गुरु के पास पहुँचा तो उन्होंने बातचीत की शुरुआत कुछ इस तरह करी, ‘निर्मल, मेरा उज्जैन आना तो एक ही जगह के दर्शन कर सफल हो गया।’ उत्सुकता वश मैंने जब वजह जानने का प्रयास किया तो गुरु ने जवाब देने के स्थान पर मुझसे प्रश्न पूछा, ‘क्या तुमने सांदीपनी आश्रम के दर्शन किए हैं, जहाँ लगभग ५५०० साल पहले भगवान कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम और प्रिय दोस्त सुदामा के साथ ६४ दिन में १४ विधाओं और ६४ कलाओं को सीखा था?’ मैंने तुरंत ‘हाँ’ में सर हिला दिया। गुरु ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘अच्छा तो जरा जल्दी से उन १४ विद्याओं और ६४ कलाओं के नाम बताओ जिन्हें भगवान कृष्ण ने गुरु सांदीपनी से सीखा था।’ मेरे लिये यह प्रश्न सौ कौरवों के नाम बताने जितना ही कठिन था। मैं मूक दर्शक बना हुआ, एकटक गुरु को देख रहा था, ‘वे तत्काल मेरी स्थिति को भाँप गये और बोले, ‘निर्मल, अक्सर जो लोग मंदिर के क़रीब रहते हैं, वे भगवान से दूर हो जाते हैं। मेरी सलाह है कि तुम एक बार फिर सांदीपनी आश्रम जाओ और १४ विद्याओं और ६४ कलाओं को समझ कर आओ। मुझे भी वहाँ जाने के बाद एहसास हुआ कि अभी तो जीवन में बहुत कुछ सीखना बाक़ी है।’
दोस्तों, गुरु की सलाह के बाद मैंने एक बार फिर सांदीपनी आश्रम के दर्शन किए और अपने जीवन का सबसे बड़ा पाठ सीखा कि जिन विद्याओं और कलाओं ने भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण बनाया उनमें से एक भी विद्या या कला पैसा कमाना या उसे एकत्र करना नहीं थी। अर्थात् उस दिन मैंने जाना कि जिस पैसे के पीछे हम आज के युग में अपना जीवन गँवा रहे हैं, उसके बिना भी अपने जीवन को पूर्ण बनाया जा सकता है। याद रखियेगा दोस्तों, पैसा; कला, विद्या या लक्ष्य हो ही नहीं सकता है क्योंकि यह तो परिणाम है, अपनी विद्या और कला से इस दुनिया को बेहतर बनाने में योगदान देने का।
दोस्तों, अगर आप भी वाक़ई जीवन में स्पष्टता लाना चाहते हैं, तो एक बार गीता जी का पाठ कीजिए या सांदीपनी आश्रम जैसे स्थानों पर जाकर भगवान कृष्ण का, उनकी सीखों का अध्ययन कीजिए क्योंकि सर्वेश्वर भगवान श्री कृष्ण को शब्दों में परिभाषित करना असंभव है। वैसे भी ‘कृष्ण’ वही है, जिसके वर्णन के लिये सारे शब्द, सारी उपमाएँ कम पड़ जायें। एक बार फिर आप सभी को कृष्णाष्टमी की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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