Feb 15, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, यह दुनिया भी बड़ी विचित्र चीज़ है। किसी को यह एकदम आसान, सरल और सुलझी हुई नज़र आती है, तो किसी को उलझन से भरी हुई। जो इसे आसान, सरल और सुलझी हुई मानता है, वह खुश, शांत और मस्त रहते हुए जीवन जीता है और जो इसे उलझन से भरा हुआ मानता है वह चिंतित और परेशान रहते हुए जीवन जीता है। ऐसे चिंतित और परेशान व्यक्ति को हर जगह समस्याएँ ही समस्याएँ नज़र आती हैं। दोस्तों, ऐसे दो एकदम विपरीत धारणाओं वाले लोगों को देख, मन में यह प्रश्न आना कि आख़िर कौनसी बात इन लोगों को इतना विपरीत बनाती है, एकदम स्वाभाविक ही है।
चलिए, इस प्रश्न के उत्तर को मैं आपको जलालुदीन रूमी नामक एक सूफी फकीर की कही बातों से समझाता हूँ। जलालुदीन रूमी कहते थे कि जब मैं जवान था तो मैं ख़ुदा से यह कहा करता था कि मुझे इतनी ताक़त दे दे कि मैं इस दुनिया को बदल सकूँ। लेकिन उस वक्त ख़ुदा ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। फिर समय बिता और मैं पालक बन गय। तब मैंने एक बार फिर ख़ुदा से कहा, ‘ऐ ख़ुदा!, मुझे इतनी ताक़त दे कि मैं अपने बच्चों को बदल सकूँ।’ लेकिन इस बार भी ख़ुदा ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया।
ऐसी ही प्रार्थनाओं के बीच फिर थोड़ा समय और गुजर गया और रूमी बूढ़े हो गए। उन्होंने एक बार फिर ख़ुदा से प्रार्थना करते हुए कहा, ‘ऐ ख़ुदा!, मुझे इतनी ताकत दे कि मैं खुद को बदल सकूँ।’ इस बार प्रार्थना करते ही रूमी के कानों में ख़ुदा का जवाब गुंजा, ‘यही प्रश्न रूमी तुमने अगर जवानी में पूछा होता तो कभी की क्रांति घट जाती और तुम्हारा जीवन कुछ और ही होता। तुम इस जहां को जन्नत बना चुके होते।’
बात तो एकदम सही है दोस्तों, इस दुनिया में चिंतित और परेशान रहने वालों की सबसे बड़ी परेशानी दूसरों से बदलने की आशा रखना ही है। जी हाँ साथियों, गृह क्लेश से परेशान पति, पत्नी को, तो पत्नी पति को बदलना चाहती है। इसी तरह सास बहु को, तो बहु सास को बदलना चाहती हैं, माँ-बाप को बच्चों से, तो बच्चों को माँ-बाप से समस्या है। इसलिए वे एक-दूसरे को बदलना चाहते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो हर इंसान दूसरों को बदलने में लगा हुआ है।
ठीक इसी तरह ख़ुशी पाने के लिए इंसान घर बदलता है, लिबास बदलता है, रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी जीवन भर परेशान रहता है। पता है क्यों? क्योंकि वह खुदको नही बदलता है। जी हाँ दोस्तों, खुद के सुख और शांति के लिए दूसरों में बदलाव की अपेक्षा रखना ही हमारे दुखों, परेशानियों और चिंता का सबसे बड़ा कारण है। शायद इसी वजह से हम दूसरों को, उनकी सफलताओं को, पूरी तरह स्वीकार नहीं पाते हैं। शायद इसीलिए मिर्जा गालिब ने कहा है, ‘उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा…'
याद रखिएगा, अगर आप दूसरों की सफलता को स्वीकार नहीं करते हैं, तो आप अपने अंदर ईर्ष्या पैदा करते हैं और इसीलिए परेशान और दुखी रहते हैं। इसके विपरीत अगर आप उन्हें जैसे है, वैसे ही स्वीकारते हैं अर्थात् आप उनकी सफलता, असफलता, अच्छाई, बुराई को स्वीकार लेते हैं, तो आप उनसे प्रेरणा ले, अपने जीवन को बेहतर बनाते हैं और खुश, शांत और मस्त रहते हुए जीवन जीते हैं। जी हाँ दोस्तों, विचारों से असहमत होते हुए भी, सहमति के बिंदुओं को खोजना ही सुखी जीवन का मूलमंत्र है...
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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