July 24, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आजकल एक समस्या ऐसी है जिसने किसी ना किसी रूप में हम सभी लोगों को किसी ना किसी स्तर पर सोचने को मजबूर किया है और वह है, ‘गिरता हुआ जीवन मूल्य!’ जी हाँ साथियों, विचार करके देखिएगा, आज की तारीख़ में हम किसी ना किसी रूप में युवाओं को जमाने की चकाचौंध में भटका हुआ पाते हैं। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह युवाओं के पास सही रोल मॉडल का ना होना है और इसके लिए वे नहीं, कहीं ना कहीं हम या हमारी पीढ़ी ज़िम्मेदार है क्योंकि हमने उन्हें कभी बताया ही नहीं कि जीवन का असली लक्ष्य क्या है और उसके आधार पर हमारी प्राथमिकताएँ क्या होना चाहिए?
इतना ही नहीं, हमने तो उन्हें समाज, संस्कृति, संस्कार, मानवता और राष्ट्र को प्राथमिकता देने के स्थान पर किताबी ज्ञान, अच्छा कैरियर, बहुत सारे पैसे या भौतिक सुविधाओं के बारे में बताया। इसलिए उन्होंने चकाचौंध और चकाचौंध के बीच अपना जीवन जीने वाले लोगों को अपने रोल मॉडल के रूप में चुना। मेरे कहने का अर्थ यह क़तई नहीं है साथियों कि विद्यालय या महाविद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा, पैसा और अच्छे भविष्य के बारे में सोचना या उसे बच्चों को देना ग़लत है। मेरे कहने का अर्थ तो सिर्फ़ इतना है कि सिर्फ़ इसके बारे में बताना अधूरी जानकारी देने के समान है।
अगर आपका लक्ष्य खुद को और अपने बच्चों को सुख-शांति के साथ भौतिक और सामाजिक रूप से सफल बनाकर देश का अच्छा नागरिक बनाना है तो आपको वर्तमान शिक्षा के साथ उसे अच्छे संस्कार देकर समाज और संस्कृति से जोड़ना भी होगा। इसके लिए हमें उसे महापुरुषों के बारे में बताकर सही रोल मॉडल चुनने में मदद करना होगी। जिससे वह महापुरुषों के चिंतन करने के तरीके को सीख कर अपने आचरण को उनके जैसा बनाने का प्रयास कर सके। आप स्वयं सोच कर देखिए महापुरुषों को अपना रोल मॉडल मान उनके समान सोच विकसित करना, उनके समान कार्य करना, क्या उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन लाकर उनकी मान्यताओं, इच्छाओं और आकांक्षाओं को नहीं बदलेगा? मेरी नज़र में तो निश्चित तौर पर बदलेगा, हमें बस इस दिशा में कुछ व्यवहारिक कदम उठाने होंगे।
मेरी नज़र में तो साथियों, आने वाली पीढ़ी को सही शिक्षा देने का यही एकमात्र सही तरीक़ा है क्योंकि यह मन और इंद्रियों को सही दिशा दे सकता है। जिसके भटकने के कारण ही सारी परेशानी है। यह मन और इंद्रियाँ ही हमें और उसे असहाय बनाती हैं और कभी सामाजिक तो कभी सांस्कृतिक रूप से गड्डे में धकेलती है। जिसके कारण इंसानियत या मानवता या सही मूल्य दम तोड़ते हुए दिखाई देते हैं।
आप स्वयं सोच कर देखिए, इंद्रियाँ हमसे जाने क्या-क्या करा लेती हैं। ठीक इसी तरह मन भी हमें न जाने क्या-क्या करने के लिए कहता रहता है और हम असहाय और गुलामों की तरह इन दोनों का कहना मानते रहते हैं और राह से भटक जाते हैं। साथियों, अब हमें इनको बदल देना चाहिए। मेरी नज़र में इसके लिए इससे अच्छा समय और कोई हो ही नहीं सकता है। इसके लिए हमें अपनी इंद्रियों और मन का स्वामी बनना पड़ेगा और यही बात अगली पीढ़ी को सिखाना पड़ेगी। इसकी शुरुआत महापुरुषों और सही लोगों को अपना रोल मॉडल बनाकर की जा सकती है। महापुरुषों की जीवनशैली ही हमें प्रेरणा देकर हमारे मन और इंद्रियों को भटकने से बचा सकती है। इसकी सहायता से ही हम अपने मन और इंद्रियों को नौकर बनाना सीख सकते हैं। याद रखिएगा साथियों, मन और इंद्रियों पर हुकूमत करना सीख कर ही हम सही समाज का विकास कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ी को सही जीवन मूल्य सिखा सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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