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सुख और दुख दोनों को देखें समान दृष्टि से…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Feb 10, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, जीवन है तो सुख-दुख, अच्छा-बुरा, ऊँचा-नीचा आदि सब कुछ चलता ही रहना है। याने सुख-दुख तो आते-जाते रहना है, लेकिन इन सब के बीच ख़ुद को स्थिर, शांत, संतोषी बनाए रखना ही जीवन जीने की असली कला है। अर्थात् ख़ुद को शांत, संतोषी और सुखी रखते हुए, चुनौतियों या विपरीत परिस्थितियों से निपटना सीख लिया जाये, तो माना जा सकता है कि हमने जीवन जीना सीख लिया है। तो आइए, आज सुख-दुख के उतार-चढ़ाव भरे दौर को कैसे जिया जाये, हम इस विषय को समझने का प्रयास करते हैं।


चलिए शुरू करते हैं जीवन जीने के एक साधारण लेकिन महत्वपूर्ण नियम के साथ, ‘सुख हो या दुख कभी अकेले नहीं आते!’ जी हाँ! जब सुख आता है, तब वह अपने साथ अहंकार लेकर आता है और जब दुख आता है, तो ढेर सारी परीक्षाएं लेकर। सहमत ना हों तो इतिहास के पन्नों में झांक कर देख लीजिएगा, आपको रावण से लेकर दुर्योधन तक और कंस से लेकर नंदवंश के अंतिम सम्राट तक, एक जैसे चरित्र दिखाई देंगे। इन सभी महान राजाओं के जीवन में सुख और विलासिता की कभी कोई कमी नहीं थी, लेकिन इन्हें इनकी सबसे बड़ी कमजोरी अहंकार ने मिटा दिया था।


इसका अर्थ हुआ सुख का दौर हमें सिर्फ़ आनंद की अनुभूति ही नहीं करवाता है, बल्कि वह हमारी परीक्षा भी लेता है। अर्थात् सुख का दौर यह जानने या देखने की कोशिश करता है कि ‘क्या हम इस सुख को अपने अहंकार का कारण बना रहे हैं?’ इसके याने सुख के ठीक विपरीत, दुख व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा लेता है। जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, तो यह हमारे धैर्य और सहनशीलता को परखता है। लेकिन अक्सर बड़े-बड़े महारथी भी इस परीक्षा में फेल हो जाते हैं। अर्थात् दुख के दौर में उनका धैर्य भी टूट जाता है। इसलिए इंसान को समय रहते सीख लेना चाहिए कि दुख सहना मजबूरी नहीं, बल्कि एक कला है। जो इस कला में निपुण हो जाता है, वह दुख के क्षणों में ख़ुद को समझदारी और धैर्य के साथ सम्भाल कर जीवन में आगे बढ़ जाता है। इसलिए दुख के दौर को समझदारी और धैर्य से पार करने को जीवन को सफल बनाने की दिशा में पहला कदम माना गया है। दोस्तों, अब आप सोच रहे होंगे, ‘यह सब तो ठीक है लेकिन सुख और दुख का सामना कैसे किया जाये, जिससे हम संतुलित जीवन जी सकें? तो चलिए इसे तीन सूत्रों के रूप में सीखते हैं-


पहला सूत्र - सुख में संतुलन बनाए रखें

जब जीवन में सुख का दौर चल रहा हो तब ख़ुद को याद दिलायें कि यह स्थाई नहीं है। जिस तरह दुख का दौर चला गया है, ठीक उसी तरह एक दिन सुख का दौर भी चला जायेगा। इसलिए अहंकार करने के स्थान पर, इसे विनम्रता के साथ स्वीकारें।

दूसरा सूत्र - दुख में धैर्य रखें

जब जीवन में दुख का दौर चल रहा हो याने जब समय चुनौतीपूर्ण और कठिन चल रहा हो, तब अपने मन को शांत रखें। इसके लिए ख़ुद को समझायें कि जल्द ही यह समय गुज़र जायेगा। याद रखियेगा, दुख में धैर्य और समझदारी से काम लेना आपको इसे मजबूती से डील करने में मदद करता है।

तीसरा सूत्र - जीवन को एक सीख के रूप में देखें

जीवन में मिला हर अनुभव, फिर चाहे वह सुख का हो या दुख का, हमें कुछ ना कुछ सिखाता है। इसलिए हर अनुभव से सीखें और इसे अपने विकास का हिस्सा बनाएं।


दोस्तों, जीवन एक महासंग्राम है, इसे सुख के समय में अहंकार को जीत कर और दुःख के समय धैर्य बनाए रख कर ही जीता जा सकता है। अर्थात् जो व्यक्ति सुख और दुख दोनों दौर के बीच संतुलन बनाए रखता है, वही इस परीक्षा में सफल होकर सच्चे मायनों में विजेता बन पाता है। तो आइए दोस्तों, जीवन रूपी इस यात्रा को समझदारी से पूर्ण करने के लिए आज से ही सुख और दुःख दोनों को समान दृष्टि से देखना शुरू करते और विनम्रता और धैर्य के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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